बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना की अपनी मांग को दोहराते हुए कहा कि इससे विकास की दौड़ में पिछड़ रहे समुदायों की प्रगति में मदद मिलेगी. इसकी मांग न केवल बिहार बल्कि कई राज्यों से आ रही है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में जाति के आधार पर जनगणना को ख़ारिज करते हुए कहा था कि पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना ‘प्रशासनिक रूप से कठिन और दुष्कर’ है.
नई दिल्ली: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना की अपनी मांग को दोहराते हुए रविवार को कहा कि यह राष्ट्रीय हित में है और इससे विकास की दौड़ में पिछड़ रहे समुदायों की प्रगति में मदद मिलेगी.
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की ओर से दाखिल हलफनामे के बारे में पूछे जाने पर नीतीश ने संवाददाताओं से कहा कि यह बिल्कुल सही नहीं है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह मामला सीधे तौर पर जातिगत जनगणना के मुद्दे से संबंधित नहीं था.
मालूम हो कि केंद्र ने अपने हलफनामे में जाति के आधार पर जनगणना को एक तरह से खारिज कर दिया था.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना ‘प्रशासनिक रूप से कठिन और दुष्कर’ है और जनगणना के दायरे से इस तरह की सूचना को अलग करना ‘सतर्क नीति निर्णय’ है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली आए जनता दल (यू) नेता ने जातिगत जनगणना के खिलाफ सभी तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि इसकी मांग न केवल बिहार बल्कि कई राज्यों से आ रही है.
नीतीश ने कहा कि वह इस मुद्दे पर बिहार में विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों से बात करेंगे और उसके बाद आगे की रणनीति का खाका तैयार करेंगे.
उन्होंने देशभर में जातिगत जनगणना के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए राज्य के एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था.
हालांकि, केंद्र ने बीते 23 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पिछड़े वर्गों की जातिगत जनगणना का काम प्रशासनिक रूप से कठिन और बेहद बोझिल है और इस तरह की जानकारी को जनगणना के दायरे से बाहर करना एक सचेत नीति के तहत लिया गया फैसला है.
शीर्ष अदालत में दायर एक हलफनामे में सरकार ने कहा है कि सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य में जातिगत जनगणना 2011 में जाति गणना गलतियों और अशुद्धियों से भरी थी.
बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन सरकार चला रहे नीतीश ने कहा, ‘जातिगत जनगणना देश के हित में है और इससे देश के विकास में मदद मिलेगी.’
केंद्र के रुख के बाद बिहार में कई भाजपा नेताओं ने इस कदम का जोरदार बचाव किया और जातिगत जनगणना की आवश्यकता पर सवाल उठाया.
भाजपा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राजनीतिक रूप से उलझे हुए मुद्दों पर उसका रुख कई राजनीतिक दलों से अलग हो सकता है, जिसमें उसके कुछ सहयोगी दल भी शामिल हैं. भाजपा ने कहा कि वह ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सिद्धांत में विश्वास करती है.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने जाति जनगणना पर सहयोगी जदयू के रुख से पार्टी के रुख को अलग किया.
उन्होंने कहा, ‘साल 2011 की गलती को दोहराने का अधिकार नहीं है. यह अव्यवहारिक मांग है. 2011 की जाति जनगणना के दौरान लोगों द्वारा भरे गए कॉलम के माध्यम से लगभग 4.28 लाख जातियां पाई गईं.’
उन्होंने जोर देकर कहा कि 2011 के सामाजिक-आर्थिक जनगणना में अधिकांश लोगों ने अपनी जाति का उल्लेख नहीं किया था. केंद्र को इसके लिए 4.28 लाख कॉलम बनाना अव्यावहारिक लगता है.
उन्होंने कहा, ‘हर राज्य जाति जनगणना पर काम करने के लिए स्वतंत्र है. लेकिन केंद्र के लिए अब जनगणना 2021 के हिस्से के रूप में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को छोड़कर सभी के लिए जातियों की गणना करना संभव नहीं है.’
वहीं, राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने लोगों से ओबीसी मंत्रियों और भाजपा के सांसदों का बहिष्कार करने का आग्रह किया, अगर वे जाति जनगणना के समर्थन में नहीं आते हैं.
उन्होंने कहा, ‘भाजपा और आरएसएस पिछड़ी जातियों से इतनी नफरत क्यों करते हैं? जातिगत जनगणना से सभी वर्गों को फायदा होगा और सभी की हकीकत सामने आ जाएगी.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)