चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने छत्तीसगढ़ पुलिस अकादमी के निलंबित निदेशक गुरजिंदर पाल सिंह की अपील पर यह टिप्पणी की. सिंह ने जबरन उगाही के आरोप में तीसरी एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद दंडात्मक कार्रवाई से बचाव का अनुरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सत्तासीन नेताओं और पुलिस अधिकारियों के बीच कथित गठजोड़ को देश में नया चलन करार देते हुए सोमवार को मौखिक रूप से सवाल किया कि सरकार बदलने के बाद ऐसे पुलिस अधिकारियों का आपराधिक मामलों में बचाव क्यों किया जाना चाहिए?
चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने छत्तीसगढ़ पुलिस अकादमी के निलंबित निदेशक गुरजिंदर पाल सिंह की अपील पर यह टिप्पणी की.
दरअसल सिंह ने 2016 में एक घटना के संबंध में कांग्रेस नीत राज्य सरकार द्वारा उनके खिलाफ तीसरी एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद दंडात्मक कार्रवाई से बचाव का अनुरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
पीठ ने राज्य सरकार से जवाब मांगा और सिंह को तीन सप्ताह के लिए तीसरी एफआईआर के संबंध में किसी भी कठोर कार्रवाई से राहत दी.
पीठ ने निलंबित पुलिस अधिकारी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह की दलीलों पर गौर किया और कहा कि सत्ता के साथ निकटता अन्य लोगों के सरकार में आने पर ऐसी स्थिति की ओर ले जाता है, जिसका सामना याचिकाकर्ता को करना पड़ रहा है.
पीठ ने कहा, ‘जब आप सरकार के इतने करीब होते हैं और ये चीजें करते हैं तो आपको एक दिन आपको ब्याज के साथ इसका भुगतान करना होता है. जब आपके सरकार के साथ अच्छे संबंध होते हैं, तो आप पैसे कमाते हैं, लेकिन जब दूसरी सरकार आती है तो आपको उसका वापस भुगतान करना पड़ता है.’
पीठ ने कहा, ‘यह हद है, हम ऐसे अधिकारियों को सुरक्षा क्यों दें? यह देश में एक नया चलन है. उन्हें जेल जाना चाहिए. अदालत इस तरह के अधिकारियों को संरक्षण क्यों दें?’ पीठ ने कहा, ‘आप इस बेहूदगी के जिम्मेदार हैं. आप जाएं, आत्मसमर्पण करें और नियमित जमानत लें.’
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि जो अधिकारी ईमानदार और सही हैं और जिनका सर्विस रिकॉर्ड बेहतरीन हैं, उन्हें बचाया जाना चाहिए और सिंह उनमें से एक हैं जिनके खिलाफ सरकार द्वारा तीन एफआईआर दर्ज की गई हैं.
जबरन उगाही, आपराधिक धमकी मामले में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत इस साल 28 जुलाई को सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी, जिस मामले में दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा के लिए उन्होंने याचिका दायर की.
यह एफआईआर 2016 की एक कथखित घटना के संबंध में कमल कुमार सेन की शिकायत पर दर्ज की गई थी.
अदालत ने सिंह की याचिका पर सुनवाई अक्टूबर के पहले हफ्ते में तय की है और सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को उनकी पहली दो याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है.
बता दें कि गुरजिंदर पाल सिंह 1994 बेंच के आईपीएस अधिकारी हैं, जो तत्कालीन भाजपा के शासनकाल में रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर में पुलिस महानिरीक्षक रहे हैं. उन पर तीन आपराधिक मामलों की जांच चल रही है.
इस साल 26 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने सिंह को राजद्रोह और आय से अधिक संपत्ति मामले सहित दो आपराधिक मामले में सुरक्षा प्रदान की थी.
राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) और आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) द्वारा सिंह के परिसरों पर छापेमारी के बाद शुरुआत में उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया गया था.
सरकार के खिलाफ दुश्मनी और षडयंत्र रचने में उनकी कथित संलिप्तता के आधार पर उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला भी दर्ज किया गया था.
पुलिस के मुताबिक, एसीबी-ईओडब्ल्यू की छापेमारी के दौरान बरामद किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि सिंह सरकार के खिलाफ कथित तौर पर साजिश रचने में शामिल थे.
सिंह ने निष्पक्ष जांच के लिए मामले की जांच सीबीआई या अन्य स्वतंत्र जांच एजेंसियों को सौंपने की मांग की है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)