पॉक्सो में ‘यौन उत्पीड़न’ की परिभाषा को पीड़ित के नज़रिये से भी देखा जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के विवादित ‘स्किन टू स्किन टच’ फ़ैसले के ख़िलाफ़ दो याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखते हुए शीर्ष अदालत ने ‘यौन अपराध करने के इरादे’ पर ज़ोर देते हुए कहा कि अगर ‘शारीरिक संपर्क’ शब्द की व्याख्या इस तरह से की जाती है जहां अपराध तय करने के लिए ‘त्वचा से त्वचा का संपर्क’ आवश्यक हो, तो इसके नतीजे बेहद ख़तरनाक होंगे.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के विवादित ‘स्किन टू स्किन टच’ फ़ैसले के ख़िलाफ़ दो याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखते हुए शीर्ष अदालत ने ‘यौन अपराध करने के इरादे’ पर ज़ोर देते हुए कहा कि अगर ‘शारीरिक संपर्क’ शब्द की व्याख्या इस तरह से की जाती है जहां अपराध तय करने के लिए ‘त्वचा से त्वचा का संपर्क’ आवश्यक हो, तो इसके नतीजे बेहद ख़तरनाक होंगे.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत बच्चों के खिलाफ यौन हमले के अपराध को परिभाषित करने वाले प्रावधान को पीड़ित के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए और यदि कोई सेक्सुअल इरादा मौजूद है तो अपराध को ‘त्वचा से त्वचा’ (Skin to Skin Contact) का संपर्क हुए बिना भी अपराध माना जाना चाहिए.

रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने ‘यौन अपराध करने के इरादे’ पर जोर देते हुए कहा कि अगर प्रावधान में ‘शारीरिक संपर्क’ शब्द की व्याख्या इस तरह से की जाती है, जहां अपराध तय करने के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क आवश्यक हो, तो इसके नतीजे बेहद खतरनाक होंगे.

इससे पहले अटॉर्नी जनरल और राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई कर रहे उच्चतम न्यायालय ने 27 जनवरी को उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें एक व्यक्ति को पॉक्सो अधिनियम के तहत बरी करते हुए कहा गया था कि बिना ‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’ के ‘नाबालिग के वक्ष को पकड़ने को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है.’

शीर्ष अदालत ने इसके खिलाफ दायर दो अपीलों पर सुनवाई पूरी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

उल्लेखनीय है कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने दो फैसले सुनाए थे, जिसमें कहा गया था कि ‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’ के बिना नाबालिग के वक्ष को छूना पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन हमला नहीं कहा जा सकता है.

अदालत ने कहा था कि आरोपी ने क्योंकि बिना कपड़े निकाले बच्चे के वक्ष को छुआ, इसलिए इसे यौन हमला नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह आईपीसी की धारा 354 के तहत एक महिला की गरिमा भंग करने का अपराध है.

जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की तीन सदस्यीय पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुना और उनसे कहा कि वे लिखित कथन भी दाखिल करें. इस मामले में न्यायालय फैसला बाद में सुनाएगा.

पीठ ने पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 की परिभाषा पर चर्चा की, जो बच्चों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के अपराध से संबंधित है.

इसका प्रावधान कहता है, ‘जो कोई भी यौन इरादे से बच्चे की योनि, लिंग, गुदा या स्तन को छूता है या बच्चे को व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति की योनि, लिंग, गुदा या स्तन को छूने को कहता या ऐसा करवाता है या सेक्सुअल इरादे से ही कोई ऐसा काम करता है, जिसमें बिना किसी पेनेट्रेशन (शरीर में कुछ प्रवेश करवाए) के बिना शारीरिक संपर्क शामिल है, तो इसे यौन हमला कहा जाएगा.’

पीठ ने उच्च न्यायालय द्वारा की गई व्याख्या पर अपनी असहमति रखते हुए कहा कि इसलिए महत्वपूर्ण बात यही है कि यदि यौन इरादा साबित हो जाता है तो सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा.

‘त्वचा से संपर्क’ पर क्या कहता है कानून

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, लीगल एड सोसाइटी की ओर से एमिकस क्यूरी के बतौर दोषी की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने तर्क दिया कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न का मामला तय के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क आवश्यक है.

उन्होंने प्रावधान का उल्लेख करते कहा कि प्रावधान के पहले हिस्से के साथ कुछ मसले हैं, जहां कहा गया था कि यदि कोई आरोपी यौन इरादे से बच्चे की योनि, लिंग, गुदा या स्तन को छूता है या बच्चे से अपने या किसी अन्य के साथ ऐसा करवाता है, तो यौन उत्पीड़न का अपराध बनता है.

उन्होंने तर्क दिया कि धारा 7 के दूसरे भाग में, चूंकि ‘संपर्क’ शब्द के बाद ‘शारीरिक’ लिखा है, इसलिए अर्थ यह होगा कि यौन उत्पीड़न का अपराध तय करने के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क आवश्यक होगा. उन्होंने कहा कि प्रावधान के दूसरे भाग की संवेदनशील व्याख्या की जरूरत है.

उन्होंने आगे कहा कि आईपीसी की धारा 354 (एक महिला का शील भंग करना) और पॉक्सो की धारा 7 के बीच महत्वपूर्ण अंतर यह था कि आईपीसी की धारा 354 के तहत कपड़े को छूने पर भी बल या आपराधिक बल प्रयोग करने के तौर पर देखा जाएगा.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस पर कोर्ट ने पूछा कि ‘स्पर्श’ और ‘शारीरिक संपर्क’ में अंतर क्यों है. कोर्ट ‘अगर दोनों का तात्पर्य एक ही है तो कानून में दो अलग-अलग शब्दों का उपयोग क्यों हुआ है? क्या हम कह सकते हैं कि शारीरिक संपर्क स्पर्श से कुछ अलग है?’

इस पर लूथरा ने कहा कि ‘शारीरिक संपर्क’ जरूरी है अन्यथा अभियोजन रोजमर्रा की गतिविधियों को भी आपराधिक बना सकता है.

इस पर जस्टिस ललित ने पूछा, ‘आपके अनुसार शारीरिक संपर्क को स्किन टू स्किन टच के रूप में ही क्यों समझा जाना चाहिए? यह कपड़े या किसी भी चीज  के माध्यम से क्यों नहीं हो सकता है? यह क्यों प्रावधान के पहले भाग पर लागू होता है दूसरे पर नहीं?’

इस पर लूथरा का कहना था, ‘क्योंकि संपर्क को शारीरिक संपर्क के अर्थ में समझा जाता है और स्पर्श को नहीं.’

इस पर पीठ ने कहा, ‘अगर हम आपकी बात स्वीकारें, तो हमें किस तरह के नतीजे मिलेंगे? हमारे अनुसार तो परिणाम विनाशकारी होंगे!’

इसने आगे देखा, ‘किसी बात को परखने के लिए विभिन्न परिस्थितियों पर भरोसा करना चाहिए कि क्या दी जा रही व्याख्या तार्किक रूप से सही भी है कि नहीं. यह भी देखा गया कि जब कोई अपराध स्पष्ट रूप से निर्धारित हो गया हो, तो क्या उसे लेकर किसी के तर्क बढ़ाने और अन्य प्रावधानों पर भरोसा करने की कोई जरूरत है भी या नहीं.’

यह जोर देते हुए कि पीड़ित के नजरिये से भी चीजों को देखा जाना चाहिए, अदालत ने कहा, ‘अगर किसी को पेन चुभाया जाता है, तो त्वचा से त्वचा का स्पर्श नहीं होता है और तर्कों के अनुसार, कोई यौन हमला नहीं होता है, लेकिन यह बच्चे की निजता का हनन और मर्यादा का उल्लंघन है.’

राष्ट्रीय महिला आयोग का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा ने पी. रामनाथन अय्यर की द लॉ लेक्सिकन का हवाला देते हुए कहा कि ‘स्पर्श’ और ‘शारीरिक संपर्क’ पर्यायवाची हैं और दोनों के बीच कोई अंतर नहीं किया जा सकता.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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