दिल्ली हाईकोर्ट ने किशोरों के ख़िलाफ़ एक साल से अधिक समय से लंबित मामले ख़त्म करने का आदेश दिया

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही अधिकांश बच्चों को पुलिस ने पकड़ा नहीं है या पकड़े जाने पर तुरंत उनके माता-पिता को सौंप दिया जाता है, लेकिन मामला कलंकित करने वाला है और बच्चे की गरिमा को प्रभावित करता है. इसलिए इस स्थिति को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. 

(फाइल फोटो: पीटीआई)

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही अधिकांश बच्चों को पुलिस ने पकड़ा नहीं है या पकड़े जाने पर तुरंत उनके माता-पिता को सौंप दिया जाता है, लेकिन मामला कलंकित करने वाला है और बच्चे की गरिमा को प्रभावित करता है. इसलिए इस स्थिति को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में राष्ट्रीय राजधानी में उन सभी मामलों को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया है, जिनमें नाबालिगों के खिलाफ कथित छोटे अपराधों में किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के समक्ष जांच लंबित है और जिन पर एक साल से अधिक समय से कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

अदालत ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम (जेजे अधिनियम) की धारा 14 के तहत आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया है कि छोटे अपराध करने वाले किसी बच्चे के खिलाफ जांच, बोर्ड के समक्ष पहली बार पेश होने की तारीख के बाद चार महीने में समाप्त हो जानी चाहिए.

अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में जांच की अवधि को अधिकतम दो माह के लिए ही बढ़ाया जा सकता है. प्रावधान कहता है कि यदि जांच अनिर्णायक रहती है, तो ऐसी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी.

जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और अनूप जयराम भंभानी ने कहा, ‘हम न्यायिक व्यवस्था में त्रुटि को ठीक करने के लिए यह आदेश पारित कर रहे हैं, क्योंकि हमारा मानना ​​है कि ऐसे मामलों को अब और लंबित रखने का कोई औचित्य नहीं है.’

पीठ ने 29 सितंबर को पारित और शुक्रवार को उपलब्ध अपने आदेश में कहा, ‘बच्चों/किशोरों के खिलाफ छोटे-मोटे अपराधों का आरोप लगाने वाले ऐसे सभी मामलों में जांच को तत्काल समाप्त कर दिया जाए, जिनमें जांच लंबित है और एक वर्ष से अधिक समय तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है. इसमें इस बात को नहीं देखा जाएगा कि बच्चे/किशोर को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया गया या नहीं.’

दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) द्वारा अदालत को सूचित किया गया था कि इस साल 30 जून तक, किशोरों द्वारा किए गए छोटे अपराधों से संबंधित 795 मामले यहां छह किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष छह महीने से एक वर्ष की अवधि तक लंबित हैं और ऐसे 1,108 मामले एक वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम (जेजे अधिनियम) के तहत अधिकतम तीन साल तक की कैद होती है. इनमें मारपीट, चोरी, जालसाजी आदि अपराध शामिल हैं.

हाईकोर्ट ने यह आदेश किशोर न्याय बोर्ड-2, दिल्ली गेट के प्रधान मजिस्ट्रेट द्वारा एक आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें कहा गया है कि कानून का उल्लंघन करने वाला बच्चा भी देखभाल और सुरक्षा का आवश्यक हकदार होता है.

आपराधिक संदर्भ को एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के माध्यम से दायर एक याचिका के साथ जोड़ा गया था. संगठन की ओर से पेश वकील प्रभसहाय कौर ने किशोर न्याय बोर्ड में छोटे-मोटे अपराधों के लंबित रहने पर प्रकाश डाला था.

डीसीपीसीआर ने बीते मार्च महीने में जेजे अधिनियम की धारा 14 के तहत बच्चों की रिहाई की सिफारिश की थी, जिसमें कहा गया है कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे के खिलाफ छोटे अपराधों से संबंधित जांच को समाप्त कर दिया जाना चाहिए यदि यह चार महीने के बाद अनिर्णायक रहता है. अगर वैध कारण है तो उसे दो महीनों तक बढ़ाया जा सकता है.

अदालत ने कहा कि भले ही अधिकांश बच्चों को पुलिस ने पकड़ा नहीं है या पकड़े जाने पर तुरंत उनके माता-पिता को सौंप दिया जाता है, लेकिन मामला कलंकित करने वाला है और बच्चे की गरिमा को प्रभावित करता है.

अदालत ने कहा, ‘इसलिए, इस स्थिति को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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