चीफ जस्टिस एनवी रमना ने यह टिप्पणी उस समय की, जब सुप्रीम कोर्ट की पीठ छत्तीसगढ़ के निलंबित अतिरिक्त डीजी गुरजिंदर पाल सिंह के ख़िलाफ़ राजद्रोह, भ्रष्टाचार और जबरन वसूली के आरोप में राज्य सरकार द्वारा दर्ज तीन एफ़आईआर के संबंध में तीन अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना का कहना है कि उन्हें देश में नौकरशाहों और पुलिस के व्यवहार को लेकर बहुत आपत्तियां हैं और उन्होंने एक समय पर इनके खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए एक समिति का गठन करने का भी विचार किया था.
चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा, ‘मुझे इस बात पर बहुत आपत्ति है कि नौकरशाही विशेष रूप से इस देश में पुलिस अधिकारी जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘मैं एक समय में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में नौकरशाहों विशेषकर पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अत्याचारों और शिकायतों की जांच के लिए स्थायी समितियां बनाने के बारे में सोच रहा था. अब मैंने यह विचार छोड़ दिया है, मैं इसे अभी नहीं करना चाहता.’
उन्होंने यह टिप्पणी उस समय की, जब जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ छत्तीसगढ़ के निलंबित अतिरिक्त डीजी गुरजिंदर पाल सिंह के खिलाफ राजद्रोह, भ्रष्टाचार और जबरन वसूली के आरोप में राज्य सरकार द्वारा दर्ज तीन एफआईआर के संबंध में तीन अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
गुरजिंदर पाल सिंह ने राज्य पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज उगाही के मामले पर सुरक्षा की मांग करते हुए याचिका दायर की है. गुरजिंदर सिंह के खिलाफ दो और एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें उन पर राजद्रोह और आय से अधिक संपत्ति का आरोप लगाया गया है.
सुप्रीम कोर्ट से सिंह को पहले ही इन मामलों में गिरफ्तारी से सुरक्षा मिल गई है.
भारतीय पुलिस सेवा के 1994 बैच के अधिकारी गुरजिंदर पाल सिंह पर शुरुआत में आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मामला दर्ज किया गया था. वह भारतीय जनता पार्टी की सरकार के दौरान रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर के आईजी रह चुके हैं. बाद में सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचने और शत्रुता को बढ़ावा देने में कथित संलिप्तता के आधार पर उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा भी दर्ज किया गया.
बहरहाल इस मामले में फैसला सुरक्षित रखते हुए पीठ ने संकेत दिया कि वह निलंबित अधिकारी को राजद्रोह और जबरन वसूली के अपराध के लिए दर्ज दो मामलों में किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करेगी. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से सिंह की याचिकाओं पर आठ सप्ताह के भीतर फैसला करने को कहा.
पीठ ने कथित तौर पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के लिए भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत दर्ज तीसरे मामले में कहा कि पुलिस अधिकारी उचित कानूनी उपाय का लाभ उठाने के लिए स्वतंत्र होंगे, क्योंकि उन्होंने केवल राज्य पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर रोक लगाने और सीबीआई को मामले के स्थानांतरण का अनुरोध किया है.
शुरू में राजद्रोह मामले में सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एफएस नरीमन ने कहा कि राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के नेता को फंसाने की साजिश रचने से इनकार करने पर पुलिस अधिकारी पर आरोप लगाए गए हैं.
भ्रष्टाचार और जबरन वसूली मामले में पुलिस अधिकारी की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुरक्षा दिए जाने के बाद राज्य सरकार ने 2016 में हुई एक कथित घटना के लिए 12 सितंबर को जबरन वसूली के अपराध के लिए तीसरी प्राथमिकी में एक गैर-जमानती प्रावधान जोड़ दिया था.
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और वकील सुमीर सोढ़ी राज्य सरकार की ओर से पेश हुए और पीठ से कहा कि जांच के दौरान पुलिस द्वारा जुटाए गए साक्ष्य और आरोपों के कारण पुलिस अधिकारी किसी भी तरह की राहत के लायक नहीं है.
बीते 26 अगस्त को मामले की सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ पुलिस अकादमी के निलंबित निदेशक गुरजिंदर पाल सिंह को गिरफ्तारी से संरक्षण देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार बदलने पर राजद्रोह के मामले दायर करना एक ‘परेशान करने वाली प्रवृत्ति’ है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि यह परेशान करने वाली प्रवृत्ति था कि पुलिस सत्तारूढ़ दल का पक्ष लेती है.
सीजेआई रमना ने कहा था, ‘देश में हालात बहुत दुखद हैं. जब एक राजनीतिक दल सत्ता में होता है तो पुलिस अधिकारी उस विशेष दल का पक्ष लेते हैं, लेकिन जब एक नई पार्टी सत्ता में आती है तो सरकार उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर देती है. यह एक नया चलन है, जिसके रोके जाने की जरूरत है.’
सुनवाई के दौरान पीठ ने सिंह की ओर से मामले में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एफएस नरीमन से कहा था, ‘यह परेशान करने वाला ट्रेंड हैं और पुलिस विभाग खुद इसके लिए जिम्मेदार है. यह मत कहिए कि आपका मुवक्किल (सिंह) निष्पक्ष था. आपके मुवक्किल ने यकीनन तत्कालीन सरकार के निर्देशों पर काम किया होगा.’
गुरजिंदर पाल सिंह का दावा है कि ये मामले उनके खिलाफ राज्य सरकार द्वारा प्रतिशोध का नतीजा है, क्योंकि वह राज्य के पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री को झूठे मामले में फंसाने को लेकर सहमत नहीं थे.
उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज मामलों की सीबीआई जांच कराने की भी मांग की है.
वहीं, दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ पुलिस का दावा है कि भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो द्वारा की गई छापेमारी के दौरान सिंह के आवास के पीछे नाले से कुछ कागज के टुकड़े पाए गए और जब इन टुकड़ों को जोड़ा गया तो पता चला कि ये कागज के नोट किसी सरकारी प्रतिनिधि के खिलाफ थे.
इसके आधार पर उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया. उन पर सरकार की छवि को धूमिल करने और शांतिभंग करने का आरोप है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)