पैंडोरा पेपर्स: कारोबारी, नेता, अभिनेता समेत 300 से ज़्यादा भारतीयों ने टैक्स हैवेंस में धन छुपाया

पैंडोरा पेपर्स नामक अंतरराष्ट्रीय ख़ुलासे में बताया गया है कि सैकड़ों बड़े भारतीय नाम टैक्स से बचने के लिए अपनी संपत्तियों को टैक्स हैवेंस में छिपाने, ऑफशोर कंपनियां खोलने, कुल संपत्तियों का खुलासा न करने में शामिल हैं. इस सूची में कारोबारी अनिल अंबानी, हीरा व्यापारी नीरव मोदी, क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, अभिनेता जैकी श्रॉफ, बायोकॉन की कार्यकारी अध्यक्ष किरण मजूमदार शॉ, दिवंगत कांग्रेस नेता सतीश शर्मा जैसे लोगों के नाम शामिल हैं.

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पैंडोरा पेपर्स नामक अंतरराष्ट्रीय ख़ुलासे में बताया गया है कि सैकड़ों बड़े भारतीय नाम टैक्स से बचने के लिए अपनी संपत्तियों को टैक्स हैवेंस में छिपाने, ऑफशोर कंपनियां खोलने, कुल संपत्तियों का खुलासा न करने में शामिल हैं. इस सूची में कारोबारी अनिल अंबानी, हीरा व्यापारी नीरव मोदी, क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, अभिनेता जैकी श्रॉफ, बायोकॉन की कार्यकारी अध्यक्ष किरण मजूमदार शॉ, दिवंगत कांग्रेस नेता सतीश शर्मा जैसे लोगों के नाम शामिल हैं.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: आईसीआईजे)

नई दिल्ली: दुनियाभर के तमाम धनकुबेरों, नेताओं, व्यापारियों, खिलाड़ियों, सेलिब्रिटीज जैसे कई ताकतवर लोगों द्वारा टैक्स चोरी करने, टैक्स से बचने के लिए अपनी संपत्तियों को टैक्स हैवेंस में छिपाने, ऑफशोर कंपनियां खोलने, अपनी कुल संपत्तियों का खुलासा न करने और कानूनी एजेंसियों द्वारा दागी करार दिए गए लोगों के साथ व्यापार करने का बहुत बड़ा मामला एक बार फिर से सामने आया है.

इस सूची में भारत से जुड़े कई लोगों जैसे कि उद्योगपति अनिल अंबानी, हीरा व्यापारी नीरव मोदी, क्रिकेटर और भारत रत्न सचिन तेंदुलकर, अभिनेता जैकी श्रॉफ, बायोकॉन की कार्यकारी अध्यक्ष किरण मजूमदार शॉ, दिवंगत कांग्रेस नेता सतीश शर्मा जैसे 300 से अधिक लोगों के नाम सामने आए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस ने पनामा पेपर्स के सात साल बाद अब ‘पैंडोरा पेपर्स’ नामक ग्लोबल इन्वेस्टिगेशन के तहत भारत से संबंधित ऐसे कई नामों के खुलासे किए हैं. इस पूरे इन्वेस्टिगेशन की अगुवाई इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) नामक संस्था ने की है.

पैंडोरा पेपर्स अब तक की सबसे बड़ी वैश्विक संयुक्त मीडिया इन्वेस्टिगेशन है, जिसमें दुनियाभर के 117 देशों के 150 से अधिक मीडिया संस्थानों के 600 से अधिक पत्रकारों ने मिलकर काम किया है.

यह आईसीआईजे की वजह से संभव हो पाया है, जिसने 1.19 करोड़ से अधिक गोपनीय दस्तावेजों को प्राप्त कर तमाम पत्रकारों के साथ साझा किया, जिन्होंने अपने देश से संबंधित नामों का खुलासा किया है.

ये दस्तावेज जर्सी, ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड्स, साइप्रस जैसे कई ऑफशोर टैक्स हैवेंस में स्थित 14 सेवा प्रदाताओं (कंपनियां) से जुड़े हुए हैं, जिसमें करीब 29,000 ऑफशोर कंपनियां और ट्रस्ट स्थापित करने के विवरण हैं. ये सर्विस प्रोवाइडर्स इस तरीके की कंपनियों का गठन करने में मदद करते हैं, ताकि धनकुबेर पैसे का घालमेल कर टैक्स बचा सकें.

टैक्स हैवेन उन देशों या आईलैंड्स को कहा जाता है जहां अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम टैक्स या कर लगता है. कई टैक्स हैवेन में बिल्कुल भी कर नहीं लगता है. ये देश उन लोगों के लिए स्वर्ग (हैवेन) के समान हैं, जो टैक्स चोरी करके पैसे इन देशों में जमा करते हैं.

टैक्स हैवेन विदेशी नागरिकों, निवेशकों और उद्योगपतियों को यह सुविधा प्रदान करते हैं कि वे उनके यहां कागजी कंपनियों का गठन कर पैसा छिपा सकें, ताकि उनके मूल देश की टैक्स अथॉरिटीज को उनकी वास्तविक संपत्ति का पता न चले, नतीजन वे कर देने से छूट जाएंगे.

टैक्स हैवेन के चलते वैश्विक स्तर पर कर चोरी को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे वैश्विक स्तर पर काले धन की समस्या में लगातार वृद्धि हो रही है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, रिलायंस एडीए ग्रुप के चेयरमैन और उनके प्रतिनिधियों द्वारा टैक्स हैवेंस में कम से कम 18 कंपनियां खोली गई हैं, जिनका गठन साल 2007 से 2010 के बीच किया गया था. इसमें से सात कंपनियों द्वारा कम से कम 1.3 अरब डॉलर का लेन-देन (निवेश और ऋण प्राप्ति) किया गया है.

ये खुलासा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि फरवरी 2020 में लंदन की एक अदालत को अनिल अंबानी ने बताया था कि उनकी कुल आय शून्य है. चीन के तीन सरकारी बैंकों ने उन पर मुकदमा किया था, जिसकी सुनवाई के दौरान उनका यह बयान आया था.

उस समय अदालत ने अंबानी की ऑफशोर कंपनियों के बारे में सवाल उठाया था, क्योंकि उसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी. इसके तीन महीने बाद अदालत ने अनिल अंबानी को यह आदेश दिया था कि वो बैंकों को 71.6 करोड़ डॉलर की रकम का भुगतान करें.

लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और कहा कि उनके पास विदेशों में न तो कोई संपत्ति है और न ही कहीं से कोई फायदा हो रहा है.

अब इस खुलासे से स्पष्ट हो गया है कि अंबानी के पास विदेशों में कई ऐसी कंपनियां हैं, जिसका इस्तेमाल टैक्स छिपाने के लिए किया जा रहा है और इसकी जानकारी भी सार्वजनिक नहीं की गई है.

इन कंपनियों के जरिये कई बैंकों से लोन लिया गया और बाद में फिर इसके जरिये निवेश किया गया है. यानी कि अनिल अंबानी के पास विभिन्न जगहों पर अकूत संपत्ति है, लेकिन उन्होंने इसे छिपा रखा है.

अनिल अंबानी से जुड़ी ऑफशोर कंपनियों की सूची. (साभार: इंडियन एक्सप्रेस)

इस मामले को लेकर अनिल अंबानी के वकील ने कहा, ‘हमारे क्लाइंट भारतीय नागरिक हैं और यहां टैक्स भरते हैं. उन्होंने भारतीय नियमों के अनुसार, सभी आवश्यक जानकारियां जरूरी विभागों को दी हुई हैं. बाकी सभी महत्वपूर्ण जानकारियां भी लंदन की अदालत को दी जा चुकी हैं. रिलायंस ग्रुप दुनियाभर में कानूनों के दायरे में रहते हुए वैधानिक बिजनेस करती है.’

इसी तरह भारत के सुपरस्टार क्रिकेटर और राज्यसभा सांसद रह चुके सचिन तेंदुलकर एवं उनके परिवार का भी नाम पैंडोरा पेपर्स में सामने आया है.

पनामा लॉ फर्म एल्कोगल के दस्तावेजों के मुताबिक तेंदुलकर, उनकी पत्नी अंजलि तेंदुलकर और उनके ससुर आनंद मेहता ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड्स, जो कि एक टैक्स हैवेन है, स्थित एक कंपनी ‘सास इंटरनेशनल लिमिटेड’ के बेनिफिशियरी ओनर (मालिक) और डायरेक्टर्स थे.

जुलाई 2016 में इस कंपनी को बंद (लिक्विडेशन) कर दिया गया था. खास बात ये है कि पनामा पेपर्स खुलासे के तीन महीने बाद ऐसा किया गया था.

पैंडोरा रिकॉर्ड्स में ‘सास’ का पहला उल्लेख साल 2007 से दिखाई देता है, जिसके मालिकों द्वारा लाभ कमाने का विस्तृत विवरण उपलब्ध है.

कंपनी के लिक्विडेशन के वक्त शेयरधारकों द्वारा वापस खरीदे गए शेयर्स में से नौ शेयर्स सचिन तेंदुलकर के थे, जिसकी कीमत 8,56,702 डॉलर थी. इसी तरह अंजलि तेंदुलकर के 14 शेयर्स की कीमत 13,75,714 डॉलर और आनंद मेहता के पांच शेयर्स की कीमत 4,53,082 डॉलर थी.

इस तरह सास इंटरनेशनल लिमिटेड कंपनी के एक शेयर की औसत कीमत 96,000 डॉलर थी. कंपनी ने 10 अगस्त 2007 को अपनी शुरुआत के वक्त 90 शेयर्स जारी किए थे. इस आधार पर ये कहा जा सकता है कि कुल शेयर्स का मूल्य करीब 60 करोड़ रुपये था.

सचिन तेंदुलकर फाउंडेशन के सीईओ और निदेशक मृणमॉय मुखर्जी और सीईओ ने इन आरोपों से इनकार किया है और कहा कि ये सारे निवेश उदारीकृत प्रेषण योजना (एलआरएस) के तहत उनके कर भुगतान निधि से किया गया है और उनके टैक्स रिटर्न में इसका विधिवत हिसाब किया जाता है.

इसी तरह भगोड़ा हीरा व्यापारी नीरव मोदी के जनवरी 2018 में भारत से भाग जाने के एक महीने पहले उनकी बहन पूर्वी मोदी ने ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स में ट्राइडेंट ट्रस्ट कंपनी, सिंगापुर के जरिये गठित एक ट्रस्ट के कॉरपोरेट प्रोटेक्टर (रक्षक) के रूप में कार्य करने के लिए एक फर्म की स्थापना की थी.

उन्होंने द डिपोजिट ट्रस्ट का कॉरपोरेट प्रोटेक्टर बनने के लिए दिसंबर 2017 में ब्रूकटॉन मैनेजमेंट लिमिटेड नाम फर्म की स्थापना की थी.

खास बात ये है कि इस फर्म में जिस कंपनी का पैसा डाला जाना था, वो पंजाब नेशनल बैंक में हजारों करोड़ रुपये का फ्रॉड करने का आरोपी है.

दस्तावेजों से पता चलता है कि पूर्वी ने ऑन रिकॉर्ड ये बात कही थी कि फायस्टार कंपनी की क्रिएटिव डायरेक्टर के रूप में उनकी जो कमाई होगी उसे ब्रूकटॉन में डाला जाएगा. पीएनबी घोटाले में फायरस्टार पर ही आरोप है.

नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के साथ पूर्वी को भी 13,600 करोड़ रुपये के पीएनबी घोटाला मामले में आरोपी बनाया गया था. हालांकि अभी वो सरकारी गवाह बन गई हैं. यदि वो इस मामले को लेकर सारी जानकारी सही-सही बताती हैं तो कोर्ट उन्हें माफ भी कर सकता है.

बेल्जियम की नागरिक पूर्वी के खिलाफ इंटरपोल का रेड नोटिस भी है.

रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि बायोटेक्नॉलॉजी एंटरप्राइज बायोकॉन लिमिटेड की कार्यकारी अध्यक्ष किरन मजूमदार शॉ के पति जॉन मैक्कलम मार्शल शॉ, जो ब्रिटिश नागरिक हैं, ने एक ऐसे व्यक्ति के साथ मिलकर ट्रस्ट बनाया था, जिस पर सेबी ने इनसाइडर ट्रेडिंग को लेकर प्रतिबंध लगा रखा था.

इसी साल जुलाई में बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एलेग्रो कैपिटल प्राइवेट लिमिटेड और उसके ज्यादातर शेयर खरीदने वाले बेंगलुरु स्थित कुणाल अशोक कश्यप को एक साल के लिए शेयर बाजार में व्यापार करने से रोक दिया था.

उन पर गलत तरीके से 24.68 लाख रुपये कमाने का आरोप था. इसके अलावा सेबी ने बायोकॉन लिमिटेड के शेयर्स में इनसाइडर ट्रेडिंग करने के लिए 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.

हालांकि अब पैंडोरा पेपर्स के दस्तावेजों से पता चला है कि कुणाल कश्यप पहले से ही बायोकॉन से जुड़े हुए थे.

कुणाल कश्यप मॉरीशस स्थित ग्लेनटेक इंटरनेशनल द्वारा जुलाई 2015 में न्यूजीलैंड में स्थापित डीनस्टोन ट्रस्ट के ‘संरक्षक’ हैं. ग्लेनटेक, जिसके पास बायोकॉन लिमिटेड के शेयर हैं, का 99 प्रतिशत स्वामित्व जॉन मैक्कलम मार्शल शॉ के पास है.

इसी तरह के ऐसे कई नाम और सामने आने वाले हैं, जहां कानूनों की कमियों को पकड़कर धनी वर्ग ने अपने पैसे छिपाने के रास्ते निकाल लिए हैं.