सुप्रीम कोर्ट ने 40 मंज़िल के दो टावर गिराने के आदेश में संशोधन का सुपरटेक का आवेदन ख़ारिज किया

सुपरटेक लिमिटेड ने 31 अगस्त को उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले में संशोधन की अपील की थी, जिसमें नोएडा स्थित कंपनी के दो 40 मंज़िला टावरों को तीन महीने के भीतर गिराने के निर्देश दिए गए थे. 

(प्रतीकात्मक फोटो: फेसबुक)

सुपरटेक लिमिटेड ने 31 अगस्त को उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले में संशोधन की अपील की थी, जिसमें नोएडा स्थित कंपनी के दो 40 मंज़िला टावरों को तीन महीने के भीतर गिराने के निर्देश दिए गए थे.

(प्रतीकात्मक फोटो: फेसबुक)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने नोएडा में सुपरटेक लिमिटेड के दो 40 मंजिला टावर गिराने के अपने आदेश में संशोधन की मांग से जुड़ा रियल्टी कंपनी का आवेदन सोमवार को खारिज कर दिया.

कंपनी ने इस आवेदन में कहा था कि वह भवन निर्माण मानकों के अनुरूप एक टावर के 224 फ्लैटों को आंशिक रूप से ध्वस्त कर देगी. उसने इसके साथ ही टावर के भूतल पर स्थित सामुदायिक क्षेत्र को गिराने की भी बात कही थी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह की राहत देना इस न्यायालय के फैसले और विभिन्न फैसलों पर पुनर्विचार करने के समान है.

उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि पुनर्विचार के लिए विविध आवेदनों या स्पष्टीकरण के नाम पर ऐसे आवेदन करने की मंजूरी नहीं दी जा सकती.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि सुपरटेक लिमिटेड के इस आवेदन में कोई दम नहीं है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है.

पीठ ने कहा, ‘विविध आवेदनों के साथ कोशिश साफ तौर पर न्यायालय के फैसले में विस्तृत संशोधन की मांग करना है. विविध आवेदनों में इस तरह की कोशिश को मंजूरी नहीं दी सकती.’

सुपरटेक ने अपनी याचिका में कहा था कि टावर-17 (सेयेन) के दूसरे रिहायशी टावरों के पास होने की वजह से वह विस्फोटकों के माध्यम से इमारत को ध्वस्त नहीं कर सकती है और उसे धीरे-धीरे तोड़ना होगा.

कंपनी ने कहा था, ‘प्रस्तावित संशोधनों का अंतर्निहित आधार यह है कि अगर इसकी मंजूरी मिलती है, तो करोड़ों रुपये के संसाधन बर्बाद होने से बच जाएंगे, क्योंकि वह टावर टी-1216 (एपेक्स) और टावर टी-17 (सेयेन) के निर्माण में पहले ही करोड़ों रुपये की सामग्री का इस्तेमाल कर चुकी है.’

कंपनी ने साथ ही कहा था कि वह 31 अगस्त के आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध नहीं कर रही है.

सुपरटेक लिमिटेड ने 31 अगस्त को उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले में संशोधन की अपील की थी, जिसमें जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 11 अप्रैल, 2014 के फैसले में किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है. उच्च न्यायालय ने भी अपने फैसले में इन दो टावरों को गिराने के निर्देश दिए थे.

उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि सुपरटेक के 915 फ्लैट और दुकानों वाले 40 मंजिला दो टावरों का निर्माण नोएडा प्राधिकरण के साथ साठगांठ कर किया गया है और उच्च न्यायालय का यह विचार सही था.

पीठ ने कहा था कि दो टावरों को नोएडा प्राधिकरण और विशेषज्ञ एजेंसी की निगरानी में तीन माह के भीतर गिराया जाए और इसका पूरा खर्च सुपरटेक लिमिटेड को उठाना होगा.

उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि घर खरीदारों का पूरा पैसा बुकिंग के समय से लेकर 12 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटाया जाए. साथ ही रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन को दो टावरों के निर्माण से हुई परेशानी के लिए दो करोड़ रुपये का भुगतान किया जाए.

सुपरटेक से घर खरीददार को 57 लाख रुपये देने को कहा

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक शिकायत पर सुनवाई के दौरान रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक से कहा कि वह अपने एक घर खरीदार को अक्टूबर के अंत तक 40 लाख रुपये और नवंबर अंत तक 17 लाख रुपये का भुगतान करे.

जस्टिस अमित बंसल ने राष्ट्रीय राजधानी से सटे यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास क्षेत्र में कंपनी की एक परियोजना में विला का कब्जा देने में देरी के बारे में शिकायत पर सुनवाई के दौरान यह फैसला दिया.

अदालत ने कहा कि 40 लाख रुपये की इस राशि का इस्तेमाल घर खरीदार ऋण चुकाने के लिए करेंगे.

अदालत को बताया गया था कि घर खरीदार की कुल बकाया राशि लगभग 1.79 करोड़ रुपये थी, जिसमें से 50 लाख रुपये का भुगतान अदालत के 24 सितंबर के आदेश के तहत किया गया था.

चूंकि मूल राशि 1.07 करोड़ रुपये थी, इसलिए अदालत ने सुपरटेक से पहले इसे चुकाने के लिए कहा, जिसके बाद बिल्डर अपनी भुगतान योजना पेश करेगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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