जवाहर कला केंद्र, जयपुर में होने वाले मुक्तिबोध समारोह के स्थगित होने से उपजे विवाद पर मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा का पक्ष.
ओम थानवी जी ने मुक्तिबोध की पुण्यतिथि पर जवाहर कला केंद्र , जयपुर में होने वाले मुक्तिबोध समारोह को राजस्थान सरकार द्वारा स्थगित कर दिए जाने पर पीड़ा के साथ ‘द वायर हिंदी’ में एक लेख लिखा है. इस लेख में उन्होंने जवाहर कला केंद्र और राजस्थान सरकार की बजाय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) को दोषी ठहराते हुए उसे कठघरे में खड़ा किया. इसलिए कुछ बातें प्रलेस की ओर से कहना जरूरी लगता है.
1. प्रलेस का स्पष्ट रूप से मानना है कि सभी धर्म निरपेक्ष , प्रगतिशील विचारों और जनतांत्रिक चेतना से लैस रचनाकारों को वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा सरकार और संघ परिवार समर्थित संस्थानों के द्वारा आयोजित / प्रायोजित उत्सवों में , तमाम प्रलोभन के बावजूद भागीदार होने से इंकार करना चाहिए. प्रतिरोध की इस कार्यवाही के लिए जरूरी नहीं कि वे किसी संगठन के सदस्य हों ही.
इन प्रलोभनों में कोई सम्भावित आर्थिक प्रलोभन उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि ‘ दुश्मन के मंच का इस्तेमाल’ का रणनीतिक विभृम है. हम मानते हैं कि इन उत्सवों में आपकी भागीदारी को विज्ञापित करते हुए ये सरकारें अपने लोकतांत्रिक होने को स्व प्रमाणित करती हैं. जनता के बीच मुखौटे को असली चेहरे की जगह प्रतिस्थापित किया जाता है.
2. अशोक वाजपेयी प्रलेस के सदस्य नहीं हैं. इसके बावजूद हम भाजपा सरकारों और संघ परिवार के असहिष्णु फ़ासिस्ट आचरण का खुला विरोध करने के लिए उनके और उन जैसे प्रत्येक संस्कृतिकर्मी के, लेखन और सामूहिक नागरिक कार्रवाइयों में स्वतःस्फूर्त सहयोगी और नेतृत्वकारी भूमिका का सम्मान करते हैं. लेकिन न तो वे और न हम ही, अपने निर्णयों में एक दूसरे के लिए बाध्यकारी हैं.
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3. मुक्तिबोध और उनके लेखन के प्रति प्रेम और मुक्तिबोध की रचनाओं के प्रकाशन में अशोक वाजपेयी की सराहनीय भूमिका और पहल निर्विवाद है. उन पर किसी समारोह के आयोजन के लिए उन्हें किसी की अनुमति की आवश्यकता भी नहीं है. किंतु ऐसे आयोजन के लिए वे राजस्थान और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारों के आगे अपने हाथ पसारें, यह भी उन्हें शोभा नहीं देता.
उन्हें याद रखना चाहिए कि अभी हाल ही में उन्हें विश्व कविता समारोह के लिए भाजपा विरोधी नीतीश कुमार की बिहार सरकार ने आर्थिक सहयोग का जो वचन दिया था उसे भाजपा समर्थित नीतीश कुमार की सरकार ने ही पूरी बेशर्मी के साथ फेर लिया है. राजस्थान में तो शुद्ध रूप से भाजपा की ही सरकार है. ओम थानवी राजस्थान के मूल निवासी हैं और वे भली प्रकार से राजस्थान सरकार का चरित्र और एजेंडा जानते हैं.
जवाहर कला केंद्र की महानिदेशक पूजा सूद के द्वारा सदाशयता में कथित अवार्ड वापसी गैंग के कथित मुखिया अशोक वाजपेयी से किया गया कोई भी समझौता वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार तोड़ने के लिए ही बाध्य है. हाल ही में हुई गौरी लंकेश की हत्या पर देशव्यापी कठोरतम स्वतःस्फूर्त संगठित प्रतिक्रिया के बाद वसुंधरा राजे के लिए भी संघ अथवा भाजपा के अमित शाह की अवज्ञा अपनी समूची राजपूती आन के बाद भी सम्भव नहीं रह गयी है. अब यह बात ओम थानवी न समझना चाहें तो कोई बात नहीं , लेकिन अशोक वाजपेयी जैसे कुशल प्रशासनिक अफसर भली प्रकार जानते हैं.
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4. अशोक वाजपेयी, रज़ा फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं. उनका निकट सम्बन्ध मुक्तिबोध के अभिन्न मित्र और प्रलेस के पुराने सम्माननीय साथी नेमि जी तथा इप्टा की पुरखिन रेखा जी के नटरंग प्रतिष्ठान से है. देश भर के सुप्रतिष्ठित सांस्कृतिक संस्थानों और संस्कृतिकर्मियों से उनके व्यक्तिगत मधुर और विश्वसनीय सम्बन्ध हैं. ऐसे में वे कोई भी सकारात्मक आत्मसम्मान से भरी पहल करें तो देश भर से उन्हें व्यापक समर्थन मिलेगा. वे चाहें तो इसे एक बार आजमा कर देख सकते हैं . वे निराश नहीं होंगे.
फिलहाल तो हम भूतों की शादी में कनात की तरह तनने से इंकार करते हैं.