दिल्ली हाईकोर्ट में एक बार फिर इस बात को लेकर दलील दी गई कि पीएम केयर्स फंड ट्रस्ट में उच्च स्तर के पदाधिकारियों का शामिल होना, राजकीय चिह्न का उपयोग, आधिकारिक डोमेन नेम का इस्तेमाल आदि तथ्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पीएम केयर्स फंड भारत सरकार की ही संस्था है.
नई दिल्ली: पीएम केयर्स फंड को सरकारी कोष नहीं बताने के केंद्र के रुख का विरोध करते हुए याचिकाकर्ताओं ने बीते बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि इस बात को दिखाने का कोई तथ्य नहीं है कि यह निधि निजी प्रकृति की है.
पीएम केयर्स फंड को संविधान के तहत ‘राजकीय’ या ‘सरकारी’ घोषित करने और इसके कामकाज में पारदर्शिता लाने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाले याचिकाकर्ता ने मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि संविधान किसी सरकारी पदाधिकारी को ऐसा ढांचा स्थापित करने की अनुमति नहीं देता जो उसके दायरे से ही बाहर हो.
इसे लेकर दलील दी गई कि इस ट्रस्ट में उच्च स्तर के पदाधिकारियों का शामिल होना, राजकीय चिह्न का उपयोग, आधिकारिक डोमेन नेम (gov.in) का इस्तेमाल इत्यादि इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पीएम केयर्स फंड भारत सरकार की ही संस्था है.
केंद्र के रुख का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता सम्यक गंगवाल की ओर से अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा, ‘मुद्दे की बात यह है कि यदि कोई व्यक्ति उच्च सरकारी पदाधिकारी है, तो क्या वे ऐसा ढांचा बना सकते हैं जो संविधान के दायरे से बाहर का हो.’
कोरोना वायरस महामारी के चलते स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान सार्वजनिक उद्देश्य के लिए प्रधानमंत्री द्वारा घोषित ट्रस्ट के नाम में ‘प्रधानमंत्री’ शब्द के उपयोग को रेखांकित करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि कोई भी आम आदमी मानेगा कि इसे सरकार ने स्थापित किया है.
उन्होंने कहा कि पीएम केयर्स में न्यासियों (ट्रस्टी) के रूप में सरकारी पदाधिकारी हैं और प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं और यहां तक कि इसका संचालन भी साउथ ब्लॉक स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय से हो रहा है.
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘हम ये नहीं कह रहे कि गतिविधियां खराब हैं. हम कह रहे हैं कि इसे संविधान के दायरे में लाया जाना चाहिए. पीएम केयर्स में निजी क्या है? क्या कोई कह सकता है कि यह सरकारी नहीं है? आत्म-निर्धारण के अतिरिक्त ऐसा कोई कारक नहीं है जो कह सके कि यह सरकारी नहीं है.’
इससे पहले प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने अपनी पुरानी दलीलों को दोहराते हुए हाईकोर्ट में कहा था कि पीएम केयर्स फंड ‘सरकारी’ नहीं है, क्योंकि इसका पैसा भारत सरकार के खजाने में नहीं जाता है. उन्होंने कहा कि चूंकि ये ट्रस्ट सरकारी नहीं है, इसलिए यह सूचना का अधिकार (आरटीआई) एक्ट के दायरे से भी बाहर है.
सम्यक गंगवाल द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि प्रधानमंत्री द्वारा मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के मद्देनजर नागरिकों को सहायता प्रदान करने के लिए पीएम केयर्स फंड का गठन किया गया था और इसे भारी दान मिला था.
हालांकि ट्रस्ट डीड की एक प्रति पीएम-केयर्स फंड द्वारा दिसंबर 2020 में अपनी वेबसाइट पर जारी की गई थी, जिसके अनुसार यह संविधान द्वारा या उसके तहत या संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून द्वारा नहीं बनाई गई है.
उन्होंने मांग की है कि इस फंड या ट्रस्ट को भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत ‘सरकारी’ घोषित किया जाए.
इसे लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय के अवर सचिव प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने दिल्ली हाईकोर्ट में सौंपे एक जवाब में कहा था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत ये ट्रस्ट ‘सरकारी’ हो या ना हो, या फिर सूचना का अधिकार कानून की धारा 2(एच) के तहत ‘पब्लिक अथॉरिटी’ हो या न हो, लेकिन आरटीआई कानून की धारा आठ की उपधाराओं (ई और जे) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि थर्ड पार्टी से संबंधित जानकारी नहीं दी जा सकती है.
मालूम हो कि आरटीआई एक्ट की धारा 2 (एच) में पब्लिक अथॉरिटी की परिभाषा दी गई है और ये बताया गया है कि किस तरह के संस्थान इसके दायरे में है.
धारा 2 (एच) में उपधारा (ए) से लेकर (डी) तक में बताया गया है कि कोई भी अथॉरिटी या बॉडी या संस्थान जिसका गठन संविधान, संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून, राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानून, सरकार द्वारा जारी किए गए किसी आदेश या अधिसूचना के तहत किया गया हो, उसे पब्लिक अथॉरिटी माना जाएगा.
इसके अलावा धारा 2 (एच) (डी) (i) के मुताबिक कोई भी अथॉरिटी जिसका गठन सरकारी आदेश या अधिसूचना के जरिये किया सरकार के स्वामित्व में हो या इसे नियंत्रित किया जाता हो या सरकार द्वारा काफी हद तक वित्तपोषित हो, उसे पब्लिक अथॉरिटी कहा जाएगा.
धारा 2 (एच) (डी) (ii) के तहत वो गैर-सरकारी संगठन जिनको सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फंड देती है, उसे पब्लिक अथॉरिटी कहा जाएगा और ऐसे संस्थानों को आरटीआई एक्ट के तहत सूचना देनी होगी.
पीएमओ की ये दलील है कि पीएम केयर्स फंड इनमें से किसी भी परिभाषा के दायरे में नहीं आता है. केंद्र सरकार का दावा है कि पीएम केयर्स एक चैरिटेबल ट्रस्ट है और सरकार इसे फंड नहीं देती है और न ही इसे नियंत्रित करती है.
हालांकि जानकारों का कहना है कि सरकार के सर्वोच्च पदों वाले लोग (पीएम, गृह मंत्री, वित्त मंत्री) इस फंड के ट्रस्टी हैं और विभिन्न माध्यमों से सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर इस फंड का प्रचार किया जा रहा और करदाताओं के पैसे अनुदान के रूप में इसमें दिए जा रहे हैं, इसलिए ये स्पष्ट है कि सरकार और सरकार के लोग इसे नियंत्रित कर रहे हैं.
पीएम केयर्स फंड के ‘सरकारी’ होने का सबसे बड़ा सबूत ये है कि इसमें सरकारी मशीनरी और सरकारी कर्मचारियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि इसका प्रचार-प्रसार किया जा सके और इसमें जो पैसे प्राप्त हुए हैं उसे खर्ज किया जा सके.
कोमोडोर लोकेश बत्रा (रिटायर्ड) द्वारा आरटीआई एक्ट के तहत प्राप्त की गई जानकारियों से पता चला था कि किस तरह पीएम केयर्स फंड का प्रचार करने के लिए भारतीय उच्चायोगों को शामिल किया गया था.
इसके अलावा केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विदेशी चंदा या अनुदानों को रेगुलेट करने के लिए बनाए गए कानून- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 (एफसीआरए)- के सभी प्रावधानों से विवादित पीएम केयर्स फंड को छूट प्रदान की है.
जबकि इस तरह की छूट प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा स्थापित संस्था के एकाउंट की कैग से ऑडिट कराने की शर्तों को ये फंड पूरा नहीं करता है.
पीएम केयर्स फंड को कई सरकारी कंपनियों या संस्थानों से हजारों करोड़ रुपये का चंदा मिला है. इस राशि को कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न हुई अप्रत्याशित स्थिति में वेंटिलेटर, ऑक्सीजन सिलेंडर, वैक्सीन इत्यादि को खरीदने का दावा किया गया था.
आलम ये है कि जहां गोपनीय पीएम केयर्स फंड का खूब प्रचार प्रसार किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत बनाए गए नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड (एनडीआरएफ) की कहीं कोई चर्चा नहीं है.
यह फंड पारदर्शी है क्योंकि इस पर सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून, 2005 लागू है और इसकी ऑडिटिंग राष्ट्रीय ऑडिटर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा की जाएगी. इसमें व्यक्तियों या संस्थानों द्वारा अनुदान दिया जा सकता है.
यहां पर बड़ा सवाल ये उठता है कि जब भारत कोरोना वायरस जैसी महामारी से जूझ रहा है और देश में स्वास्थ्य आपातकाल जैसी व्यवस्था बनी हुई है, ऐसे में सरकार इस नई व्यवस्था का प्रचार-प्रसार क्यों नहीं कर रही है?
इसके जरिये लोगों से प्राप्त अनुदान को सरकार मौजूदा दयनीय स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने में कर सकती है.
पीएम केयर्स फंड के विरोध की एक प्रमुख वजह ये है कि सरकार इससे जुड़ी बहुत आधारभूत जानकारियां, जैसे इसमें कितनी राशि प्राप्त हुई, इस राशि को कहां-कहां खर्च किया गया, तक भी मुहैया नहीं करा रही है.
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) आरटीआई एक्ट के तहत इस फंड से जुड़ी सभी जानकारी देने से लगातार मना करता आ रहा है.
साथ ही कहा गया है कि पीएम केयर्स आरटीआई एक्ट, 2005 के तहत सार्वजनिक प्राधिकार यानी पब्लिक अथॉरिटी नहीं है. यह स्थिति तब है जबक प्रधानमंत्री इस फंड के अध्यक्ष हैं और सरकार के सर्वोच्च पदों पद बैठे गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री जैसे व्यक्ति इसके सदस्य हैं.
इसके अलावा इस फंड का आधिकारिक कार्यालय भी पीएमओ में ही है. लेकिन सरकार का कहना है कि इस फंड का गठन ‘एक प्राइवेट चैरिटेबल ट्रस्ट’ के रूप में किया गया है, इसलिए इसकी जानकारी नहीं दी जा सकती है.
इसके अलावा इस फंड की ऑडिटिंग राष्ट्रीय ऑडिटर कैग से नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र ऑडिटर के जरिये कराया जाता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)