भारत के वॉटरमैन नाम से मशहूर जल संरक्षणवादी राजेंद्र सिंह ने कहा कि यूरोप कई अफ्रीकी देशों से आ रहे जलवायु शरणार्थियों का सामना कर रहा है. सौभाग्य से भारतीयों को अभी जलवायु शरणार्थी नहीं कहा जाता है, लेकिन अगले सात साल में अगर देश में जल की कमी बनी रही तो भारतीयों को भी उसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ेगा.
नयी दिल्ली: प्रख्यात जल संरक्षणवादी राजेंद्र सिंह ने आगाह किया है कि अगर देश में जल की कमी बनी रही तो अगले सात वर्षों में भारत को जलवायु शरणार्थी संकट का सामना करना पड़ सकता है.
‘जलवायु शरणार्थी’ का अभिप्राय मौसम संबंधी आपदा से बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन करना है.
एक समाचार चैनल के कार्यक्रम में शामिल हुए जल संरक्षणवादी सिंह ने कहा कि देश तब तक ‘पानीदार (जल के मामले में आत्मनिर्भर) नहीं बन सकता, जब तक कि जल के उपयोग और उसके पुनर्भरण में संतुलन स्थापित नहीं हो जाता.
सिंह को ‘भारत का वॉटरमैन’ के तौर भी जाना जाता है. उन्होंने कहा, ‘जल के इस्तेमाल और पुनर्भरण में संतुलन केवल समुदाय आधारित विकेंद्रीकृत प्रबंधन से संभव है.’
सिंह ने कहा कि पहले से ही लोग जल की कमी से अपने गांवों से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं.
सिंह ने आगाह करते हुए कहा, ‘यूरोप कई अफ्रीकी देशों से आ रहे जलवायु शरणार्थियों का सामना कर रहा है. सौभाग्य से भारतीयों को अभी जलवायु शरणार्थी नहीं कहा जाता है, लेकिन अगले सात साल में अगर भारत में जल की कमी बनी रही तो भारतीयों को भी उसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ेगा.’
उन्होंने सवाल किया कि भारत का भविष्य क्या होगा जब उसका जल भंडार अत्यधिक भूजल दोहन से खत्म हो जाएगा.
सिंह ने कहा, ‘अब स्थिति ऐसी है कि जल की कमी की वजह से गांव छोड़कर शहर आए लोग दोबारा वापस नहीं जा पा रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘भारत में जल की कमी की वजह से पलायन हो रहा है. कृषि में जब तक कुशल विकास और जल साक्षरता आंदोलन के तहत पानी का प्रभावी इस्तेमाल नहीं होगा, तब तक देश में जल की कमी की समस्या समाप्त नहीं होगी.’
जल शक्ति मंत्रालय में पेयजल और स्वच्छता विभाग के अवर सचिव (जल) भरत लाल ने कहा कि सरकार ने जल जीवन मिशन की शुरुआत की है और जलस्रोतों के पुनर्भरण, आपूर्ति और दोबारा इस्तेमाल के लिए कार्य कर रही है.
जल संरक्षणवादी राजेंद्र सिंह ने कहा कि जल संकट ‘महिलाओं का संकट’ है और सरकार ने 3.8 लाख महिला समितियों का गठन किया है, लेकिन वे कागज पर ही हैं.
उन्होंने कहा, ‘उनकी ताकत क्या है, उनके हाथ में क्या है जब ठेकेदार को काम दिया जाता है और वह मुनाफे को ध्यान में रखता हैं. इसलिए जब ठेकेदार के जरिये काम होगा तो वह कैसे समुदाय के लिए लाभदायक होगा.’
सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण किसान फसल के पैटर्न को बारिश के पैटर्न (बारिश में बदलाव के अनुरूप फसल उगाना) के साथ नहीं जोड़ पा रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का पैटर्न कैसे बदल रहा है, जो फसलों को प्रभावित कर रहा है और उन्हें नष्ट कर रहा है. किसान यह पता नहीं लगा पा रहे हैं कि वे कितनी बारिश की उम्मीद कर सकते हैं.’
राजेंद्र सिंह ने आगे कहा, ‘हम पहले जल साक्षरता आंदोलन शुरू कर उस पर काम कर सकते हैं. इसके अलावा देश के कृषि विश्वविद्यालयों को 90 कृषि-पारिस्थितिक जलवायु क्षेत्र में बारिश के पैटर्न को बताने और किसानों की मदद के लिए इसे फसल पैटर्न से जोड़ने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)