अग्रिम ज़मानत देने से पहले अदालत को अपराध की गंभीरता देखनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा हत्या के दो आरोपियों को दी गई अग्रिम ज़मानत के आदेश को रद्द करते हुए की. शीर्ष अदालत ने कहा कि अपराध गंभीर प्रकृति का है, जिसमें एक व्यक्ति की हत्या की गई. प्राथमिकी और बयान संकेत देते हैं कि आरोपी की अपराध में विशेष भूमिका है.

(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा हत्या के दो आरोपियों को दी गई अग्रिम ज़मानत के आदेश को रद्द करते हुए की. शीर्ष अदालत ने कहा कि अपराध गंभीर प्रकृति का है, जिसमें एक व्यक्ति की हत्या की गई. प्राथमिकी और बयान संकेत देते हैं कि आरोपी की अपराध में विशेष भूमिका है.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अदालत को आरोपी को अग्रिम जमानत देते समय अपराध की गंभीरता और विशिष्ट आरोप जैसे मानदंडों पर गौर करना चाहिए.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने यह टिप्पणी हत्या के दो आरोपियों को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दी गई अग्रिम जमानत के आदेश को रद्द करते हुए की.

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे तय करना है कि इस स्तर पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर उच्च न्यायालय ने अग्रिम जमानत देने के लिए सही सिद्धांतों का अनुपालन किया है या नहीं.

पीठ ने कहा, ‘अदालतों को अग्रिम जमानत अर्जी को स्वीकार करने या उसे खारिज करते वक्त आम तौर पर अपराध की प्रकृति और गंभीरता, आवेदक की भूमिका और मामले के तथ्यों के आधार पर निर्देशित होना चाहिए.’

उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी हत्या के दो आरोपियों को दी गई अग्रिम जमानत के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की. शीर्ष अदालत ने कहा कि अपराध गंभीर प्रकृति का है, जिसमें एक व्यक्ति की हत्या की गई और प्राथमिकी और बयान संकेत देते हैं कि आरोपी की अपराध में विशेष भूमिका है.

पीठ ने कहा, ‘अग्रिम जमानत देने का आदेश देते वक्त अपराध की प्रकृति और गंभीरता और आरोपी के खिलाफ विशेष आरोप सहित ठोस तथ्यों को नजरअंदाज किया गया. इसलिए, उच्च न्यायालय द्वारा मंजूर अग्रिम जमानत को रद्द करने के लिए उचित मामला बनाया गया है.’

शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले के तथ्यों की बाद में विस्तृत जांच की जाएगी और मौजूदा चरण में वह केवल यह परीक्षण करेगी कि उच्च न्यायालय ने अग्रिम जमानत देते वक्त सही सिद्धांतों का अनुपालन किया या नहीं.

पीठ ने कहा, ‘मौजूदा स्तर पर तथ्यों का बारीकी से परीक्षण नहीं किया जा सकता जैसा कि फौजदारी मामले की सुनवाई में होता है. जरूरत यह तय करने की है कि एकल न्यायाधीश की पीठ द्वारा अग्रिम जमानत देने का फैसला करते वक्त उसके लिए तय मानकों का सही तरीके से अनुपालन किया गया या नहीं.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, शीर्ष अदालत भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और धारा 34 (सामान्य इरादे) के तहत दर्ज अपराध के संबंध में दो आरोपियों को दी गई अग्रिम जमानत को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी.

मालूम हो कि बीते सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा हत्या और आपराधिक षड्यंत्र के आरोपों का सामना कर रहे एक व्यक्ति को दी गई जमानत को रद्द करते हुए कहा था कि अदालतों को जमानत देते वक्त आरोपी की पृष्ठभूमि की पड़ताल करनी चाहिए.

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने जालंधर के सदर पुलिस थाने में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या), 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र), 34 (साझा मंशा), 201 (सबूत मिटाना) और शस्त्र कानून, 1959 की धारा 25 के तहत प्राथमिकी के संबंध में आरोपी को जमानत दी थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)