जम्मू कश्मीर के पूर्व और वर्तमान में मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कथित तौर पर कहा था कि पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती को रोशनी योजना का लाभ मिला था. मुफ़्ती ने एक क़ानूनी नोटिस भेजकर 10 करोड़ रुपये के मुआवजे़ की मांग की हैं. साल 2001 में लागू रोशनी योजना का उद्देश्य राज्य की ज़मीन पर क़ब्ज़ा रखने वाले लोगों को शुल्क के एवज में उसका मालिकाना हक़ देना था. हालांकि हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था.
श्रीनगर: पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक की उनके खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर उन्हें शुक्रवार को एक कानूनी नोटिस भेजकर 10 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की.
मलिक वर्तमान में मेघालय के राज्यपाल हैं. उन्होंने कुछ दिन पहले कथित तौर पर कहा था कि महबूबा मुफ्ती को रोशनी योजना का लाभ मिला था, जिसका लक्ष्य राज्य सरकार की जमीन के कब्जेदार को शुल्क के एवज में मालिकाना हक देना था.
महबूबा के वकील अनिल सेठी ने कानूनी नोटिस में लिखा है, ‘मेरी मुवक्किल की प्रतिष्ठा को पहुंचे नुकसान की भरपाई कोई रकम नहीं कर सकती, फिर भी मेरी मुवक्किल ने मुआवजा के लिए आप पर मुकदमा करने का फैसला किया है.’
नोटिस में मलिक से मुआवजे के तौर पर 30 दिनों के अंदर 10 करोड़ रुपये अदा करने या कानूनी कार्रवाई का सामना करने को कहा गया है.
इसमें कहा गया है कि मुआवजे की राशि का इस्तेमाल महबूबा द्वारा कोई निजी फायदे के लिए नहीं, बल्कि सार्वजनिक भलाई के लिए की जाएगी.
इससे पहले बुधवार को महबूबा ने मलिक से अपनी टिप्पणी वापस लेने को कहा था.
False & unsavoury utterances of Satya Pal Malik about me being a beneficiary of Roshni Act is highly mischievous.
My legal team is preparing to sue him.
He has the option to withdraw his comments failing which I will pursue legal recourse. pic.twitter.com/QVSOEFLGYp— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) October 20, 2021
पीडीपी प्रमुख ने दो दिन पहले ट्वीट किया था, ‘मेरे बारे में रोशनी अधिनियम का लाभार्थी होने के बारे में सत्यपाल मलिक का झूठा और बेहूदा बयान बेहद शरारतीपूर्ण है. उनके पास अपनी टिप्पणी वापस लेने का विकल्प है, जिसमें नाकाम रहने पर मैं कानून का सहारा लूंगी.’
उल्लेखनीय है कि महबूबा ने एक वीडियो साझा किया, जिसमें मलिक यह दावा करते देखे जा सकते हैं कि नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती को रोशनी योजना के तहत भूखंड मिला था.
साल 2001 में रोशनी योजना फारूक अब्दुल्ला सरकार लेकर आई थी, जिसका उद्देश्य राज्य की जमीन पर कब्जा रखने वाले लोगों को शुल्क के एवज में उसका मालिकाना हक देना था. इससे मिली राशि का उपयोग राज्य में जल विद्युत परियोजनाओं की स्थापना के लिए किया जाना था. इसीलिए इसका नाम रोशनी कानून रखा गया था.
अब्दुल्ला सरकार ने इसके लिए साल 1990 को आधार वर्ष माना था. इसका मतलब था कि 1990 से पहले जो लोग सरकारी जमीन पर काबिज थे, वे ही इसका लाभ उठा सकेंगे.
इसके साथ ही भूमि का मालिकाना हक उसके अनधिकृत कब्जेदारों को इस शर्त पर दिया जाना था कि वे बाजार भाव पर सरकार को भूमि की कीमत का भुगतान करेंगे.
रोशनी कानून वर्ष 2001 में लागू किया गया था, जिसके तहत राज्य में करीब 20.55 लाख कनाल (करीब 1,02,750 हेक्टेयर) सरकारी जमीन पर रहने वाले लोगों को इसका मालिकाना हक देने की योजना थी और यह मालिकाना हक देने के लिए सिर्फ 15.85 प्रतिशत भूमि ही मंजूर की गई थी.
साल 2014 में कैग ने इसे 25 हज़ार करोड़ का घोटाला करार दिया था. उसके बाद अक्टूबर, 2020 में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने रोशनी कानून को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था और सीबीआई जांच के आदेश दे दिए हैं.
हाईकोर्ट के आदेश के बाद केंद्र शासित प्रशासन ने इस कानून को पूरी तरह से खत्म कर दिया और एक नवंबर 2020 को रोशनी कानून के तहत सभी जमीन हस्तांतरण को रद्द कर दिया.
इससे पहले नवंबर 2018 में हाईकोर्ट ने रोशनी कानून के लाभार्थियों को उन्हें हस्तांतरित जमीन को बेचने या कोई अन्य ट्रांजेक्शन करने से रोक दिया था. इसके बाद तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने नवंबर 2018 में ही इसे निरस्त कर दिया था.