एल्गार परिषद मामले में आरोपी 82 वर्षीय कवि वरवरा राव को फरवरी में मेडिकल आधार पर मिली अंतरिम ज़मानत के बाद पांच सितंबर को आत्मसमर्पण कर न्यायिक हिरासत में लौटना था, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा इस अवधि का विस्तार करते हुए उन्हें राहत दी गई है. कोर्ट ने राव से चिकित्सा ज़मानत पर बाहर रहने के दौरान अपने गृहनगर जाने की अनुमति के लिए अलग से याचिका दायर करने को भी कहा है.
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी कवि वरवर राव को 18 नवंबर तक तलोजा जेल के अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने की जरूरत नहीं है.
अदालत ने इस संबंध में राव की याचिका पर सुनवाई 18 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी.
अदालत ने 82 वर्षीय राव को इस साल 22 फरवरी को चिकित्सा आधार पर छह महीने के लिए अंतरिम जमानत दी थी. उन्हें पांच सितंबर को समर्पण कर न्यायिक हिरासत में लौटना था.
इससे पहले सितंबर महीने में भी बॉम्बे हाईकोर्ट ने राव की अंतरिम जमानत विस्तार की याचिका पर सुनवाई स्थगित करते कहा कि राव को 25 सितंबर तक तलोजा जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण की जरूरत नहीं है. इसके बाद इस महीने के मध्य में इस अवधि को 28 अक्टूबर तक के लिए बढ़ा दिया गया था.
इस मामले में वरवरा राव (82) के अलावा पंद्रह अन्य कार्यकर्ताओं, विद्वानों और वकीलों को गिरफ्तार किया गया है. राव की तरह ही मामले में गिरफ्तार किए गए कई अन्य आरोपी भी खराब स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं.
वकील सुधा भारद्वाज, प्रोफेसर शोमा सेन और हेनी बाबू, कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बड़े ने खराब स्वास्थ्य, उम्र संबंधी बीमारियों और कोरोना का हवाला देकर अदालत का रुख किया है.
जमानत याचिका पर सुनवाई का इंतजार करते हुए कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी (84) की पांच जुलाई को हिरासत में ही मौत हो गई थी. कई बीमारियों से पीड़ित स्वामी हिरासत में कोरोना वायरस से संक्रमित भी पाए गए थे.
राव ने अपने वकील आर सत्यनारायणन और वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर के माध्यम से आवेदन दायर कर जमानत की अवधि बढ़ाने का आग्रह किया था. उन्होंने अदालत से जमानत पर अपने गृहनगर हैदराबाद में रहने की अनुमति भी मांगी थी.
जस्टिस नितिन जामदार और जस्टिस एसवी कोतवाल की पीठ ने मंगलवार को समय की कमी के कारण राव की याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी. पीठ ने राव से चिकित्सा जमानत पर बाहर रहने के दौरान अपने गृहनगर जाने की अनुमति मांगने के लिए अलग से याचिका दायर करने को भी कहा.
उच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम जमानत पर लगाई गई कड़ी शर्तों के तहत राव अपनी पत्नी के साथ मुंबई में किराए के मकान में रह रहे हैं.
हालांकि, मामले में जांच कर रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने चिकित्सा जमानत बढ़ाने और हैदराबाद जाने का आग्रह करने वाली राव की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी की मेडिकल रिपोर्ट से यह संकेत नहीं मिलता है कि वह किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है.
एनआईए ने पिछले महीने उच्च न्यायालय में दायर अपने हलफनामे में कहा था कि राव की मेडिकल रिपोर्ट में किसी भी बड़ी बीमारी की बात सामने नहीं आई है जिससे कि आरोपी को हैदराबाद में इलाज करने की आवश्यकता हो और न ही यह जमानत के विस्तार के लिए कोई आधार है.
एनआईए का यह भी कहना था कि तलोजा जेल में पर्याप्त स्वास्थ्य देखरेख की सुविधाएं हैं और राव को यहां सर्वोत्तम मेडिकल सुविधाएं मुहैया कराई जा सकती हैं.
बता दें कि एनआईए के इन दावों के विपरीत द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि राव के परिवार ने बार-बार याचिका दायर कर यह आरोप लगाया था कि वरवरा राव को जेल में बुनियादी मानवीय इलाज नहीं मिल रहा है.
उनके परिवार ने पिछले साल अक्टूबर में बताया था कि जेल में रहते हुए राव का वजन लगभग 18 किलोग्राम तक कम हो गया है और वे बिस्तर से उठ नहीं पाते.
राव ने मेडिकल जमानत में विस्तार और जमानत शर्तों में बदलाव की मांग वाली याचिका में कहा था कि नानावती अस्पताल के डॉक्टरों के मुताबिक वे संभावित न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से पीड़ित हो सकते हैं, जिसे क्लस्टर हेडएक कहते हैं. राव की ओर से यह भी कहा गया है कि वे यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण, हाइपोनैट्रेमिया, पार्किंसंस बीमारी का संदेह, मस्तिष्क के प्रमुख छह लोब में लैकुनर इन्फर्क्ट और आंख संबंधी समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं.
राव ने कहा था कि अगर वह तलोजा जेल प्रशासन में लौटते हैं तो वहां उनकी मेडिकल समस्याओं का निदान नहीं हो सकता, इसलिए उनका स्वास्थ्य और खराब हो सकती है और उनकी मृत्यु भी हो सकती है. राव ने इन आधारों पर अपनी जमानत अवधि में छह महीने के विस्तार की मांग की थी.
राव को जिस समय जमानत दी गई थी, उस समय उनका महानगर स्थित निजी नानावती अस्पताल में कई बीमारियों का इलाज चल रहा था, जहां उन्हें उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद महाराष्ट्र जेल के अधिकारियों ने भर्ती कराया था.
ज्ञात हो कि एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एक सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुणे पुलिस का दावा था कि इन भाषणों के कारण अगले दिन पुणे के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई.
पुणे पुलिस ने दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था. मामले में एक दर्जन से अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है. इसकी जांच बाद में एनआईए को सौंप दी गई थी.
एनआईए ने भी आरोप लगाया है कि एल्गार परिषद का आयोजन राज्य भर में दलित और अन्य वर्गों की सांप्रदायिक भावना को भड़काने और उन्हें जाति के नाम पर उकसाकर भीमा-कोरेगांव सहित पुणे जिले के विभिन्न स्थानों और महाराष्ट्र राज्य में हिंसा, अस्थिरता और अराजकता पैदा करने के लिए आयोजित किया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)