614 करोड़ रुपये के इन चुनावी बॉन्ड में से 200 करोड़ रुपये के बॉन्ड एसबीआई की कोलकाता शाखा, 195 करोड़ रुपये के बॉन्ड चेन्नई शाखा और 140 करोड़ रुपये के बॉन्ड हैदराबाद शाखा से बेचे गए हैं. साल 2018 से लेकर अक्टूबर 2021 तक कुल 18 चरणों में 7,994 करोड़ रुपये के गोपनीय चुनावी बॉन्ड बेचे जा चुके हैं, जिनका मुख्य मक़सद राजनीतिक दलों को चंदा देना है.
नई दिल्ली: गैर-चुनावी अवधि के दौरान भी राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चंदा प्राप्त हो रहा है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर महीने में 614.33 करोड़ रुपये का चुनावी बॉन्ड बेचा गया है.
इसमें से 200 करोड़ रुपये के बॉन्ड एसबीआई की कोलकाता शाखा, 195 करोड़ रुपये के बॉन्ड चेन्नई शाखा और 140 करोड़ रुपये के बॉन्ड हैदराबाद शाखा से बेचे गए हैं.
कोमोडोर लोकेश बत्रा (रिटायर्ड) द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त की गई जानकारी के मुताबिक, कुल 593 करोड़ रुपये के बॉन्ड एक करोड़ रुपये वाले धनराशि के थे. वहीं 18.90 करोड़ रुपये के बॉन्ड 10 लाख रुपये वाले थे.
चुनावी बॉन्ड के 18वें चरण की ये बिक्री एक अक्टूबर से 10 अक्टूबर के बीच हुई थी.
बता दें कि साल 2018 से लेकर अक्टूबर 2021 तक कुल 18 चरणों में 7,994 करोड़ रुपये के गोपनीय चुनावी बॉन्ड बेचे जा चुके हैं, जिनका मुख्य मकसद राजनीतिक दलों को चंदा देना है. इसमें से 6,812 करोड़ रुपये के बॉन्ड एक करोड़ रुपये वाले थे.
जाहिर है कि इतने महंगी राशि वाले चुनावी बॉन्ड बड़े उद्योगपतियों, कॉरपोरेट जगत के लोगों एवं अन्य धनकुबेरों द्वारा खरीदा जाता है.
चुनावी बॉन्ड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, 10 लाख रुपये और एक करोड़ रुपये की धनराशि में उपलब्ध होते हैं.
इसे लेकर कई बार कार्यकर्ताओं और नेताओं ने चुनावी बॉन्ड की गोपनीयता पर गंभीर चिंता जाहिर की है.
इसी साल जुलाई में माकपा ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर चुनावी बॉन्ड योजना की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई करने की मांग की थी.
इस मसले को लेकर साल 2018 से ही कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. शीर्ष अदालत ने दो बार इस पर रोक लगाने की मांग को ठुकरा दिया है.
इसी साल मार्च महीने में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने चुनावी बॉन्ड की आगे और बिक्री पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था, ‘चूंकि बिना हस्तक्षेप किए साल 2018 और 2019 में चुनावी बॉन्ड के बिक्री की इजाजत दी गई थी और इस संबंध में पहले से ही पर्याप्त सुरक्षा मौजूद है, इसलिए फिलहाल चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने की कोई तुक नहीं बनती है.’
इससे पहले पिछले लोकसभा चुनाव के समय 12 अप्रैल 2019 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की पीठ ने एक अंतरिम फैसले में सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे 30 मई 2019 तक में एक सीलबंद लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें.
हालांकि पीठ ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई, जिसके चलते राजनीतिक दलों को कई हजार करोड़ रुपये का चंदा गोपीनीय तरीके से प्राप्त हुआ. रंजन गोगोई के मुख्य न्यायाधीश रहते फिर कभी इस मामले की सुनवाई नहीं हुई थी और ये अभी भी लंबित ही है.
खास बात ये है कि गोपनीय एवं विवादित चुनावी बॉन्ड के जरिये सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को हो रहा है.
साल 2019-20 में बेचे गुए चुनावी बॉन्ड की कुल राशि का 75 फीसदी हिस्सा भाजपा को प्राप्त हुआ है. वहीं, प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को इसमें से महज नौ फीसदी ही राशि प्राप्त हो सकी है. इस दौरान कुल 3,435 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए थे.
साल 2019-20 में भाजपा को कुल 3,427 करोड़ रुपये का चंदा मिला था, जिसमें से 2,555 करोड़ रुपये सिर्फ चुनावी बॉन्ड से प्राप्त हुए हैं.
वहीं, इस बीच कांग्रेस को कुल 469 करोड़ रुपये का चंदा मिला, जिसमें से 318 करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड से मिले हैं. साल 2018-19 में कांग्रेस को चुनावी बॉन्ड से 383 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे.