राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट में बताया कि 2020 में 2019 की तुलना में आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. 2020 में आत्महत्या के 1,53,052 मामले यानी रोज़ाना औसतन 418 मामले दर्ज किए गए. वर्ष 2019 में इनकी संख्या 1,39,123 थी. केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले एनसीआरबी ने बताया कि प्रति लाख जनसंख्या में आत्महत्या दर में भी बढ़ोतरी हुई है.
नई दिल्ली: भारत में वर्ष 2020 में आत्महत्या के 1,53,052 मामले यानी रोजाना औसतन 418 मामले दर्ज किए गए. इनमें से 10,677 मामले कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों के हैं.
कोरोना महामारी के बीच साल 2020 में दिहाड़ी मजदूरों द्वारा सबसे ज्यादा आत्महत्या की गई है. केंद्र सरकार के ताजा आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट में बताया कि 2020 में 2019 की तुलना में आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. वर्ष 2019 में इनकी संख्या 1,39,123 थी. केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले एनसीआरबी ने बताया कि (प्रति लाख जनसंख्या) आत्महत्या दर में भी बढ़ोतरी हुई है. यह 2019 में 10.4 थी, लेकिन पिछले साल यह 11.3 रही.
रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान 37,666 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या किया, जो कि कुल आंकड़े का 24.6 फीसदी है और यह किसी भी वर्ग द्वारा आत्महत्या करने का सर्वाधिक आंकड़ा है.
मालूम हो कि यह वही समय था जब कोरोना महामारी के चलते देशभर में कठोर लॉकडाउन लगाया गया था और इसके कारण करोड़ों प्रवासी अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर हुए थे. इसमें से कई लोग सड़क दुर्घटना, बीमारी, भूख इत्यादि के चलते मारे गए थे.
साल 2014 से एनसीआरबी दिहाड़ी मजदूरों द्वारा आत्महत्या करने के आंकड़े इकट्ठा कर रहा है. तब से देश में आत्महत्या से होने वाली कुल मौतों में उनकी हिस्सेदारी 12 प्रतिशत (2014) से दोगुनी होकर 2020 में 24.6 प्रतिशत हो गई है.
तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 6,495 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या किया. इसके बाद मध्य प्रदेश में 4,945, महाराष्ट्र में 4,176, तेलंगाना में 3,831 और गुजरात में 2,745 दिहाड़ी मजदूरों द्वारा आत्महत्या करने के मामले दर्ज किए गए हैं.
किसान
एनसीआरबी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2020 के दौरान कृषि क्षेत्र के 10,677 लोगों (5,579 किसान और 5,098 कृषि मजदूरों) ने आत्महत्या की, जो देश में आत्महत्या करने वालों (1,53,052) का सात प्रतिशत है.
रिपोर्ट के अनुसार, 5,579 किसान आत्महत्या मामलों में से कुल 5,335 पुरुष और 244 महिलाएं थीं. इसमें कहा गया है कि 2020 के दौरान खेतिहर मजदूरों द्वारा की गईं 5,098 आत्महत्याओं में से 4,621 पुरुष और 477 महिलाएं थीं.
छात्र
अन्य वर्गों की तरह छात्रों द्वारा आत्महत्या करने के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है. साल 2019 में जहां 10,335 छात्रों ने आत्महत्या किया था, वहीं 2020 में ये बढ़कर 14,825 हो गया, जो कि सीधे 21.20 फीसदी की बढ़ोतरी है.
देश के कुल आत्महत्या मामले में छात्र वर्ग की हिस्सेदारी साल 2019 में 7.4 फीसदी से बढ़कर साल 2020 में 8.2 फीसदी हो गई है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, साल 1995, जब से एनसीआरबी रिपोर्ट प्रकाशित होनी शुरू हुई थी, से अब तक छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की ये सर्वाधिक हिस्सेदारी है.
मालूम हो कि लॉकडाउन में दिहाड़ी मजदूरों की तरह छात्रों को भी तमाम गंभीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, जिसमें से उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होना प्रमुख था.
स्व-रोजगार
इसी तरह स्व-रोजगार करने वाले लोगों द्वारा आत्महत्या करने के मामलों में साल 2019 की तुलना में 7.67 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. हालांकि, यदि इसकी उप-श्रेणियों को देखें तो स्थिति और गंभीर दिखाई देती है.
रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं द्वारा आत्महत्या करने के मामलों में 26.1 फीसदी और व्यापारियों द्वारा आत्महत्या में 49.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. यह दर्शाता है कि कोरोना महामारी का छोटे व्यापारियों पर किस तरह का प्रभाव पड़ा है.
आत्महत्या के सर्वाधिक मामले महाराष्ट्र में सामने आए. महाराष्ट्र में कुल 19,909 मामले दर्ज किए गए जो कुल मामलों का 13 प्रतिशत हैं. उसके बाद तमिलनाडु में 16,883, मध्य प्रदेश में 14,578, पश्चिम बंगाल में 13,103 और कर्नाटक में 12,259 मामले दर्ज किए गए.
तमिलनाडु में देशभर में आत्महत्या के कुल मामलों के 11 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 9.5 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 8.6 प्रतिशत और कर्नाटक में आठ प्रतिशत मामले दर्ज किए गए.
एनसीआरबी ने बताया कि इन पांच राज्यों के आंकड़ों को यदि मिला दिया जाए तो ये देशभर में दर्ज किए गए आत्महत्या के कुल मामलों के 50.1 प्रतिशत मामले हैं, जबकि बाकी 49.9 प्रतिशत मामले शेष 23 राज्यों एवं आठ केंद्रशासित प्रदेशों मे दर्ज किए गए.
ब्यूरो ने बताया कि देश की कुल आबादी में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 16.9 प्रतिशत है. इसके बावजूद इस राज्य में आत्महत्या के अपेक्षाकृत कम मामले दर्ज किए गए. उत्तर प्रदेश में आत्महत्या के कुल मामलों के मात्र 3.1 प्रतिशत मामले दर्ज किए गए.
रिपोर्ट में बताया गया है कि सर्वाधिक आबादी वाले केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली में आत्महत्या के 3,142 मामले दर्ज किए गए. दिल्ली इस मामले में केंद्रशासित प्रदेशों में शीर्ष पर रही और इसके बाद पुदुचेरी में 408 मामले दर्ज किए गए.
रिपोर्ट से पता चलता है कि 2020 में देश के 53 बड़े शहरों में आत्महत्या की कुल 23,855 घटनाएं हुईं. शहरों में आत्महत्या की दर (14.8) अखिल भारतीय आत्महत्या दर (11.3) की तुलना में अधिक थी.
इसमें कहा गया है कि 2020 में आत्महत्या करने वाले लोगों में से कुल 56.7 प्रतिशत लोगों ने पारिवारिक समस्याओं (33.6 प्रतिशत), विवाह संबंधी समस्याओं (पांच प्रतिशत) और किसी बीमारी (18 प्रतिशत) के कारण अपनी जान ली.
रिपोर्ट के अनुसार, आत्महत्या करने वालों में पुरुषों और महिलाओं का अनुपात 70.9 से 29.1 रहा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)