क्रिकेट में भारत पर पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाना राजद्रोह नहीं: जस्टिस दीपक गुप्ता

टी-20 विश्वकप क्रिकेट मैच में पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने के आरोप में हाल ही में आगरा से गिरफ़्तार किए गए तीन कश्मीरी छात्रों के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा राजद्रोह लगाने का आदेश देने क़ानून का उल्लंघन है.

टी-20 विश्वकप क्रिकेट मैच में पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने के आरोप में हाल ही में आगरा से गिरफ़्तार किए गए तीन कश्मीरी छात्रों के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा राजद्रोह लगाने का आदेश देने क़ानून का उल्लंघन है.

करन थापर और जस्टिस दीपक गुप्ता.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा है कि भारत पर पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाना ‘राजद्रोह नहीं है’ और ‘इस तरह की सोच रखना बेहद हास्यास्पद है.’

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा पाक की जीत का जश्न मनाने वालों पर राजद्रोह का केस करने का आदेश देना ‘कानून का उल्लंघन’ है. पूर्व जज ने यह भी कहा कि इस तरह का ट्वीट करना ‘बेहद गैर-जिम्मेदाराना बयान’ है.

द वायर  को दिए एक इंटरव्यू में जस्टिस गुप्ता ने कहा कि पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाना आपत्तिजनक या बेवकूफी हो सकती है, लेकिन यह अपराध नहीं है, यह गैरकानूनी नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘कोई चीज अच्छी या बुरी हो सकती है, लेकिन इसके चलते यह आपराधिक या गैरकानूनी नहीं हो जाता है.’

जस्टिस गुप्ता ने आगे कहा, ‘ये जरूरी नहीं कि सभी कानूनी कार्य अच्छे या नैतिक हों, लेकिन हम कानून के शासन द्वारा शासित होते हैं, न कि नैतिकता के नियम से.’

मालूम हो कि टी-20 विश्वकप मैच में पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने के आरोप में आगरा के एक कॉलेज से तीन कश्मीरी छात्रों को बीते 27 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था.

उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए (विभिन्न समूहों के बीच वैमन्स्य को बढ़ावा देना), 505 (1)(बी) (आमजन के लिए भय पैदा करने का इरादा) के अलावा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66एफ के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. बाद में यूपी पुलिस ने इसमें धारा 124ए (राजद्रोह) को भी जोड़ दिया था.

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि इसमें से कोई भी धारा इस केस में लागू नहीं होती है.

उन्होंने कहा कि अगर मुख्यमंत्री या उनके कार्यालय ने राजद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों को देखा होता तो उन्हें पता होता कि आगरा में कश्मीरी छात्रों ने जो किया है, वह निश्चित रूप से राजद्रोह नहीं है. इसलिए, मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा छात्रों पर राजद्रोह लगाने का आदेश देना कानून की अनदेखी पर आधारित है.

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि एक सभ्य लोकतंत्र में राजद्रोह की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि इस कानून को खत्म किया जाना चाहिए. द वायर  को मार्च 2021 में दिए अपने एक अन्य इंटरव्यू में भी उन्होंने अपनी ये राय व्यक्त की थी.

उन्होंने कहा, ‘अब समय आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट ये तय करे कि यह कानून वैध है या नहीं, यदि ये वैध है तो इसकी कमियां और इसके समाधान के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाएं.’

उन्होंने कहा कि कश्मीरी छात्रों के खिलाफ धारा 153ए (विभिन्न समूहों के बीच वैमन्स्य को बढ़ावा देना) के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उन्होंने किसी धर्म के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की थी.

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि धारा 505 (1)(बी) (आमजन के लिए भय पैदा करने का इरादा) के तहत भी यहां कोई केस नहीं बनता है, क्योंकि ‘वे सिर्फ जश्न मना रहे थे, किसी को अपराध करने के लिए उकसा नहीं रहे थे.’

उन्होंने कहा कि छात्रों के खिलाफ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66एफ के तहत भी मामला नहीं बनता है, क्योंकि ये ‘साइबर आतंकवाद’ की धारा है. इसमें साइबर आतंकवाद का मामला कैसे बन सकता है? वे महज जश्न मना रहे थे.

(इस इंटरव्यू को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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