आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब से जजों के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक और अपमानजनक सामग्री को 36 घंटे के भीतर हटाने का निर्देश दिया है. अदालत ने कहा कि राजनीतिक रूप से ध्रुवीकृत माहौल में जज संगठित अभियानों के लिए आसान निशाना बन गए हैं.
नई दिल्लीः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का कहना है कि जजों को कोसना कुछ लोगों के लिए उनका पसंदीदा काम बन गया है. इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब से जजों के खिलाफ आपत्तिजनक और अपमानजनक सामग्री को 36 घंटे के भीतर हटाने का निर्देश दिया है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यूट्यूब को ‘पंच प्रभाकर’ नाम के चैनल को ब्लॉक करना चाहिए. इस चैनल पर जजों के खिलाफ अपमानजनक वीडियो पोस्ट किए गए हैं.
अदालत ने कहा कि राजनीतिक रूप से ध्रुवीकृत माहौल में जज संगठित अभियानों के लिए आसान निशाना बन गए हैं.
जस्टिस ललिता कन्नेगंती ने आदेश में कहा, ‘राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए हैं, जजों की कार्रवाई को प्रभावित करने और उन्हें धमकाने के प्रयास किए जा रहे हैं. आदेश पारित किए जाने के बाद पीड़ित पक्ष द्वारा जजों के खिलाफ कैंपेन शुरू किए जाते हैं और संस्थागत प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास किए जाते हैं.’
आदेश में कहा गया, ‘जजों को कोसना और जजों के खिलाफ आपत्तिजनक और तिरस्कारपूर्ण भाषा का इस्तेमाल करना कुछ लोगों का पसंदीदा काम बन गया है.’
अदालत ने कहा कि इस तरह के बयान अदालतों के अधिकार क्षेत्र को कमतर करते हैं और इसकी मंजूरी नहीं दी जा सकती, क्योंकि किसी लोकतंत्र में बिना डर और पक्षपात के न्याय देना किसी स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए सर्वोपरि है. जजों को कोसना रचनात्मक आलोचना का विकल्प नहीं है और न ही हो सकता है.
चीफ जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ललिता कन्नेगंती की पीठ ने पिछले साल सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने के लिए सरकार से संबंधित कई लोगों को स्वत: अवमानना नोटिस जारी करने के मामले पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.
27 मई 2020 को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने वाईएसआर कांग्रेस सरकार के खिलाफ आदेश पारित करने वाले जजों और न्यायपालिका के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजक टिप्पणी सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए 49 लोगों को नोटिस जारी किए थे, जिनमें एक सांसद और एक पूर्व विधायक शामिल हैं.
इसके बाद हाईकोर्ट ने जजों के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को निर्देश दिए थे.
नवंबर 2020 में सीबीआई ने सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को बदनाम करने के लिए 16 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, एफआईआर के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में प्रमुख पदों पर काबिज कर्मचारियों ने ट्विटर और फेसबुक पर जजों के खिलाफ अभद्र, अपमानजनक, धमकी भरे और जान लेने की धमकी वाले पोस्ट किए थे. ये पोस्ट कुछ अदालती फैसलों और आदेशों से संबंधित थे.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि, बीते 29 अक्टूबर को पीठ ने सीबीआई जांच की प्रगति पर असंतोष व्यक्त करते हुए और सीबीआई निदेशक द्वारा एक हलफनामा मांगा था कि दिसंबर 2020 के बाद इस दिशा में क्या हुआ और उनके द्वारा क्या प्रयास किए गए.
विशाखापट्टनम सीबीआई के पुलिस अधीक्षक ने पंच प्रभाकर के ठिकाने के बारे में हाईकोर्ट को बताया था कि सीबीआई उन्हें पकड़ने के लिए एफबीआई की मदद ले रही है क्योंकि वह अमेरिका के नागरिक हैं. हालांकि, अभी तक इस मामले में कई प्रगति नहीं हुई है.
सीबीआई ने सरकार के खिलाफ अदालत के कई फैसलों को लेकर सोशल मीडिया पर कथित तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोप में दो सितंबर को वाईएसआर कांग्रेस समर्थक लिंगारेड्डी राजशेखर रेड्डी के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी.
जुलाई में सीबीआई द्वारा उनके घर पर छापेमारी के दौरान कई आपत्तिजनक दस्तावेज मिले थे. जांच एजेंसी ने उन्हें गिरफ्तार भी किया था.
दस दिन बाद सीबीआई ने इसी तरह के एक मामले में आंध्र प्रदेश के गुंटूर की एक अदालत के समक्ष चार आरोपियों के खिलाफ चार अलग-अलग चार्जशीट दायर की थी.
चार्जशीट के मुताबिक, इनमें से दो आरोपी ‘कोंडारेड्डी धनिरेड्डी वाईएसआरसीपी’ और ‘गुंटूर मेट्रोपोलिस’ नाम से फेसबुक अकाउंट संचालित कर रहे थे, जहां पर आपत्तिजनक कंटेंट पोस्ट किए गए थे.
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