लखीमपुर हिंसा: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के पूर्व जज की निगरानी में जांच कराने के संकेत दिए

शीर्ष अदालत ने यूपी पुलिस को फटकार लगाते हुए वीडियो साक्ष्य के संबंध में फॉरेंसिक रिपोर्ट में हुई देरी का संज्ञान लिया. कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि विरोध करने वाले किसानों पर हमला करने को लेकर दर्ज केस को किसानों की मौत के बाद हुई हिंसा के मामले के साथ जोड़कर हल्का किया जा रहा है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

शीर्ष अदालत ने यूपी पुलिस को फटकार लगाते हुए वीडियो साक्ष्य के संबंध में फॉरेंसिक रिपोर्ट में हुई देरी का संज्ञान लिया. कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि विरोध करने वाले किसानों पर हमला करने को लेकर दर्ज केस को किसानों की मौत के बाद हुई हिंसा के मामले के साथ जोड़कर हल्का किया जा रहा है.

लखीमपुर खीरी मामले का घटनास्थल. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले की उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की जा रही जांच उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की निगरानी में कराने का सोमवार को सुझाव दिया और कहा कि जांच उनकी अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो रही है.

लखीमपुर में पिछले महीने तीन अक्टूबर को किसानों के प्रदर्शन के दौरान भड़की हिंसा में चार किसानों सहित आठ लोगों की मौत हो गई थी.

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और गरिमा प्रसाद को शुक्रवार तक मामले पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.

पीठ ने आरोपपत्र दाखिल किए जाने तक जांच की निगरानी करने के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश राकेश कुमार जैन या जस्टिस रंजीत सिंह के नाम का सुझाव दिया है.

पीठ ने कहा कि मामले की ‘जांच उनकी अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो रही है.’ शीर्ष अदालत ने वीडियो साक्ष्य के संबंध में ‘फॉरेंसिक रिपोर्ट’ में देरी का भी संज्ञान लिया. कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि आखिर अभी तक आरोपियों के मोबाइल फोन क्यों जब्त नहीं किए गए हैं.

लाइव लॉ के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा, ‘हमने स्टेटस रिपोर्ट देखी है. उसमें कुछ भी नहीं है. पिछली सुनवाई के बाद हमने 10 दिन का स्थगन दिया था. अभी तक लैब रिपोर्ट्स नहीं आई हैं.’

इस पर हरीश साल्वे ने कहा कि 15 नवंबर तक रिपोर्ट आ जाएगी.

जस्टिस कोहली ने कहा, ‘केवल एक आरोपी का फोन जब्त किया गया है. बाकी का क्यों नहीं? क्या आपने जब्त नहीं किया? सिर्फ एक ही के पास मोबाइल फोन था?’

इसे लेकर साल्वे ने दावा किया कि आरोपियों के पास फोन नहीं था, क्योंकि उन्होंने अपने फोन फेंक दिए थे, लेकिन उनके कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (सीडीआर) को प्राप्त किया गया है.

जस्टिस कोहली ने फिर से सवाल किया, ‘आपने स्टेटस रिपोर्ट में कहां कहा है कि आरोपियों ने अपने फोन फेंक दिए थे और उनके सीडीआर का पता लगा लिया गया है?’

पीठ ने यह भी कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि विरोध करने वाले किसानों पर हमला करने को लेकर दर्ज केस को किसानों की मौत के बाद हुई हिंसा के मामले के साथ जोड़कर हल्का किया जा रहा है. न्यायाधीशों ने जोर देकर कहा कि दोनों मामलों को अलग रखा जाना चाहिए और गवाहों के बयान अलग से दर्ज किए जाने चाहिए.

जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि इन एफआईआर को मिलाकर एक आरोपी का फायदा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. इसमें एफआईआर 2020 भीड़ हिंसा और वहीं एफआईआर 219 किसानों की हत्या से जुड़ा हुआ है.

इस पर सरकार के वकील ने दावा किया कि ऐसा नहीं है और कहा कि दोनों मामलों को अलग रखा जा रहा है.

इससे पहले, न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को साक्षी संरक्षण योजना, 2018 के तहत मामले के गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने, गवाहों के बयान दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज कराने और और ‘डिजिटल’ साक्ष्यों की विशेषज्ञों द्वारा जल्द जांच कराने का निर्देश दिया था.

उल्लेखनीय है कि दो वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि इस मामले की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराई जाए, जिसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को भी शामिल किया जाए. इसके बाद शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई शुरू की.

पुलिस ने मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा सहित 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

गौरतलब है कि लखीमपुर खीरी के सांसद और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ‘टेनी’ के विरोध में पिछले महीने तीन अक्टूबर को वहां के आंदोलित किसानों ने उनके (टेनी) पैतृक गांव बनबीरपुर में आयोजित एक समारोह में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के जाने का विरोध किया था. इसके बाद भड़की हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी.

केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में करीब एक साल से आंदोलन कर रहे किसानों की नाराजगी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ‘टेनी’ के उस बयान के बाद और बढ़ गई थी, जिसमें उन्होंने किसानों को ‘दो मिनट में सुधार देने की चेतावनी’ और ‘लखीमपुर खीरी छोड़ने’ की चेतावनी दी थी.

गाड़ी से कुचल जाने से मृत किसानों की पहचान- गुरविंदर सिंह (22 वर्ष), दलजीत सिंह (35 वर्ष), नक्षत्र सिंह और लवप्रीत सिंह के रूप में की गई है.

बीते तीन अक्टूबर को भड़की हिंसा में भाजपा के दो कार्यकर्ता- शुभम मिश्रा और श्याम सुंदर निषाद, केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के ड्राइवर हरिओम मिश्रा और एक निजी टीवी चैनल के लिए काम करने वाले पत्रकार रमन कश्यप की भी मौत हो गई थी.

किसानों का आरोप है कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा ने किसानों को अपनी गाड़ी से कुचला. हालांकि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने इस बात से से इनकार किया है.

किसानों के अनेक संगठन ‘कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून, 2020’, ‘कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020’ और ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून’ को वापस लेने की मांग को लेकर पिछले साल नवंबर से आंदोलन कर रहे हैं.

पंजाब से शुरू हुआ यह आंदोलन धीरे-धीरे दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी फैल गया. शीर्ष अदालत ने जनवरी में कानूनों को अमल में लाने पर रोक लगा दी थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)