केंद्र ने शीर्ष अदालत के आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन करने की मांग की है, जिसमें कोर्ट ने चारधाम राजमार्ग परियोजना के लिए निर्धारित कैरिजवे की चौड़ाई 5.5 मीटर का पालन करने को कहा गया था. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्र की रक्षा और पर्यावरण की सुरक्षा के साथ सभी विकास टिकाऊ और संतुलित होने चाहिए.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारत-चीन सीमा गतिरोध का जिक्र करते हुए बीते मंगलवार को कहा कि क्या कोई संवैधानिक अदालत देश की रक्षा के लिए सेना की आवश्यकता को दरकिनार कर कह सकती है कि पर्यावरण की सुरक्षा रक्षा जरूरतों पर भारी है.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकता कि एक शत्रु है, जिसने सीमा तक बुनियादी ढांचा विकसित कर लिया है और सेना को सीमा तक बेहतर सड़कों की जरूरत है, जहां 1962 के युद्ध के बाद से कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है.
सर्वोच्च अदालत आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन के अनुरोध वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना पर 2018 के परिपत्र का पालन करने के लिए कहा गया है. यह सड़क चीन सीमा तक जाती है.
इस रणनीतिक 900 किलोमीटर की परियोजना का मकसद उत्तराखंड के चार पवित्र शहरों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को हर मौसम में काम करने वाली सड़क सुविधा प्रदान करना है.
दिन भर चली सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि वह इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकती कि उत्तराखंड में चीन की सीमा तक जाने वाली रणनीतिक ‘फीडर’ सड़कों के उन्नयन की जरूरत है.
पीठ ने कहा, ‘हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि इतनी ऊंचाई पर देश की सुरक्षा दांव पर है. क्या भारत के उच्चतम न्यायालय जैसा सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय हाल की कुछ घटनाओं को देखते हुए सेना की जरूरतों को दरकिनार कर सकता है? क्या हम कह सकते हैं कि पर्यावरण संरक्षण देश की रक्षा जरूरतों से ऊपर होगा? या हमें यह कहना चाहिए कि रक्षा चिंताओं का ध्यान इस तरह रखा जाना चाहिए ताकि आगे कोई पर्यावरणीय क्षति न हो.’
पीठ ने कहा कि सतत विकास होना चाहिए और इसे पर्यावरण के साथ संतुलित किया जाना चाहिए क्योंकि अदालत इस तथ्य से अनजान नहीं रह सकती कि इन सड़कों को ‘अपग्रेड’ करने की जरूरत है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मैं पर्वतारोहण के लिए कई बार हिमालय गया हूं. मैंने उन सड़कों को देखा है. ये सड़कें ऐसी हैं कि कोई भी दो वाहन एक साथ नहीं गुजर सकते हैं. ये सड़कें ऐसी हैं कि उन्हें सेना के भारी वाहनों की आवाजाही के लिए उन्नयन (अपग्रेड) की आवश्यकता है. 1962 के युद्ध के बाद से कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है.
पीठ ने एक एनजीओ के वकील से कहा कि सरकार पहाड़ में आठ-लेन या 12-लेन का राजमार्ग बनाने के लिए अनुमति नहीं मांग रही है, बल्कि केवल दो-लेन का राजमार्ग बनाने की मांग कर रही है.
चीन ने तिब्बत क्षेत्र में बड़ा निर्माण किया है, सेना को चौड़ी सड़कों की जरूरत है: केंद्र
वहीं, इस मामले को लेकर केंद्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि चीन ने तिब्बत क्षेत्र में बड़ा निर्माण किया है और सेना को 1962 जैसी युद्ध स्थिति से बचने के लिए भारत-चीन सीमा तक भारी वाहनों को ले जाने के लिए चौड़ी सड़कों की जरूरत है.
उन्होंने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि ऋषिकेश से गंगोत्री, ऋषिकेश से माणा और टनकपुर से पिथौरागढ़ तक फीडर सड़कें जो चीन से लगती उत्तरी सीमा तक जाती हैं, देहरादून और मेरठ में सेना के शिविरों को जोड़ती हैं जहां मिसाइल लॉन्चर और भारी तोपखाना प्रतिष्ठान हैं.
केंद्र ने कहा कि सेना को किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार रहने की जरूरत है और यह 1962 जैसी स्थिति नहीं होने दे सकती.
शीर्ष अदालत ने कहा कि राष्ट्र की रक्षा और पर्यावरण की सुरक्षा के साथ सभी विकास टिकाऊ और संतुलित होने चाहिए तथा अदालत देश की रक्षा जरूरतों का दूसरा अनुमान नहीं लगा सकती है.
केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि भारत-चीन सीमा पर हालिया घटनाक्रम के कारण सेना को बेहतर सड़कों की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘सीमा के दूसरी तरफ व्यापक निर्माण हुआ है. उन्होंने (चीन) बुनियादी ढांचा तैयार किया है और हवाई पट्टियों, हेलीपैड, सड़कों, रेलवे लाइन नेटवर्क का निर्माण किया है जो इस धारणा पर आगे बढ़े हैं कि वे स्थायी रूप से वहां रहेंगे.’
उन्होंने आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन का आग्रह किया, जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को चीन सीमा तक जाने वाली महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना पर 2018 के परिपत्र में निर्धारित कैरिजवे की चौड़ाई 5.5 मीटर का पालन करने को कहा गया था.
वेणुगोपाल ने कहा, ‘सेना की समस्या यह है कि उसे सैनिकों, टैंकों, भारी तोपखाने और मशीनरी को स्थानांतरित करने की आवश्यकता होती है. ऐसा नहीं होना चाहिए कि जैसा कि 1962 में चीन सीमा तक राशन की आपूर्ति पैदल ही की जाती थी. अगर सड़क टू-लेन नहीं है तो सड़क बनाने का उद्देश्य विफल हो जाएगा, इसलिए सात मीटर (या 7.5 मीटर अगर मार्ग उठा हुआ हो) की चौड़ाई के साथ डबल लेन की अनुमति दी जानी चाहिए.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकती है कि एक विरोधी है, जिसने सीमा तक बुनियादी ढांचे का विकास किया है और सेना को सीमा तक बेहतर सड़कों की जरूरत है, जिसमें 1962 के युद्ध के बाद से कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं देखा गया है.
जब एनजीओ ग्रीन दून फॉर सिटीजन्स की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि तत्कालीन सेना प्रमुख ने कहा था कि चौड़ी सड़कों की कोई जरूरत नहीं है और सैनिकों को हवाई मार्ग से ले जाया जा सकता है, तो पीठ ने कहा कि बयान पूरी तरह से सही नहीं हो सकता.
एनजीओ ने पेड़ों को काटकर सड़कों के सुधार और विस्तार के लिए दी गई स्टेज-1 वन और वन्यजीव मंजूरी को चुनौती दी है.
गोंजाल्विस ने तर्क दिया कि सड़क चौड़ीकरण की परिकल्पना साल 2016 में की गई थी, ताकि चारधाम यात्रा को सुविधाजनक बनाया जा सके और इस पर एसयूवी जैसी गाड़ियां तेजी से ऊपर-नीचे चल सके. उन्होंने कहा कि तीर्थयात्री पहले पैदल यात्रा करते थे, लेकिन यह महसूस किया गया कि यह बहुत अच्छा नहीं है और इसलिए, राजमार्गों और हेलीपैड की जरूरत बताई गई थी.
उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों का मानना है कि कि इस तरह के वाहनों की आवाजाही ग्लेशियरों को प्रभावित कर रही थी, जिसके परिणामस्वरूप तबाही हुई थी.
इस मामले की अगली सुनवाई बुधवार को भी होगी.
मालूम हो कि उत्तराखंड में चारधाम राजमार्ग परियोजना की निगरानी कर रही उच्चाधिकार समिति की उस रिपोर्ट को लेकर काफी बहस हुई थी, जिसमें बहुमत ने सड़क की चौड़ाई 12 मीटर, जबकि अध्यक्ष रवि चोपड़ा सहित तीन सदस्यों (अल्पमत वाली रिपोर्ट) ने सड़क की चौड़ाई 5.5 (साढ़े पांच) मीटर रखने पर जोर दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)