कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उन्होंने इस मामले में अभी तक अपना मत नहीं बनाया है. साथ ही कहा कि वह जो सवाल पूछ रही है, वे इस मुद्दे पर संबंधित पक्षों से बेहतर प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए हैं. केंद्र ने शीर्ष अदालत के आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन करने की मांग की है, जिसमें कोर्ट ने चारधाम राजमार्ग परियोजना के लिए निर्धारित कैरिजवे की चौड़ाई 5.5 मीटर का पालन करने को कहा गया था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उसके द्वारा देश की रक्षा जरूरतों के लिए हजारों करोड़ रुपये की परियोजना की अनुमति दिए जाने की सूरत में बीते बुधवार को केंद्र और एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) से वैसे अतिरिक्त सुरक्षा उपाय सुझाने को कहा, जिनके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी वह महत्वाकांक्षी चारधाम परियोजना को लागू करने वाली एजेंसियों को दे सकता है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह कहने के बजाय कि अतिरिक्त सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए, वह अदालत के आदेश में उन शर्तों को रखना चाहेंगे, जिनका पालन परियोजना की कार्यान्वयन एजेंसियों को करना होगा.
केंद्र ने कहा कि वह पहले ही विभिन्न अध्ययन कर चुका है, जिसमें क्षेत्रों का भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण भी शामिल है और भूस्खलन की घटनाओं को कम करने के लिए कई कदम उठाए गये हैं.
हालांकि, केंद्र ने यह भी कहा कि अगर शीर्ष अदालत अतिरिक्त सुरक्षा उपाय करती है तो उसे कोई आपत्ति नहीं होगी.
गौरतलब है कि 12,000 करोड़ रुपये की लागत वाली रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 900 किलोमीटर लंबी इसी परियोजना का उद्देश्य उत्तराखंड के चार पवित्र शहरों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करना है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने स्पष्ट किया कि उन्होंने इस मामले में अभी तक अपना मत नहीं बनाया है. साथ ही कहा कि वह जो सवाल पूछ रही है, वे इस मुद्दे पर संबंधित पक्षों से बेहतर प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए हैं.
केंद्र ने शीर्ष अदालत के आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन करने की मांग की है, जिसमें कोर्ट ने चारधाम राजमार्ग परियोजना के लिए निर्धारित कैरिजवे की चौड़ाई 5.5 मीटर का पालन करने को कहा गया था. पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्र की रक्षा और पर्यावरण की सुरक्षा के साथ सभी विकास टिकाऊ और संतुलित होने चाहिए.
पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और एनजीओ ‘सिटिजन्स फॉर ग्रीन दून’ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस से कहा कि यदि न्यायालय चारधाम परियोजना के तहत सड़कों के और चौड़ीकरण की इजाजत देती है तो किस तरह से सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए.
कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा, ‘हम सीमित तरीके से कुछ प्रतिबंध लगा सकते हैं. आप इस संबंध में बताएं कि हम सीमा सड़क संगठन और लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) जैसी कार्यान्वयन एजेंसियों पर कौन से अतिरिक्त सुरक्षा उपाय का प्रावधान कर सकते हैं. ये एजेंसियां सुरक्षा उपायों का अनुपालन सुनिश्चित करेंगी, जो उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बहुमत रिपोर्ट में उल्लिखित चिंताओं का ध्यान रखेगी.’
इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार को उत्तराखंड में हिमालयी क्षेत्र के उन क्षेत्रों में विकल्प, सुरक्षा उपाय या अन्य कदम उठाने का सुझाव देना चाहिए, जो भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्र या सेक्टर में हैं.
गोंजाल्विस ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा चिंताओं को कम करने के लिए उठाए गए सभी कदम विफल हो गए हैं और यह उचित समय है कि वे पहाड़ों को छोड़ दें और परियोजना को तुरंत रोक दें, ताकि पर्यावरण को और खराब होने और लोगों के जीवन को खतरे में डालने से बचा जा सके.
पीठ ने गोंजाल्विस से कहा कि यह मुद्दा रक्षा बनाम पर्यावरण या सेना बनाम नागरिकों के बीच नहीं है, बल्कि मुद्दा यह है कि पर्यावरण की सुरक्षा के साथ समाज के सतत विकास की आवश्यकता को कैसे संतुलित किया जाए.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम इन पहाड़ों के ऊंचे इलाकों में गए हैं और देखा है कि कैसे सेना के पुरुषों और महिलाओं का जीवन वहां रहने वाले नागरिकों के जीवन से जुड़ा होता है. कभी-कभी जब कोई बीमार पड़ता है और बर्फबारी के कारण सड़कें कट जाती हैं, तो सेना मदद के लिए आती है और उन लोगों को नजदीकी अस्पतालों में ले जाती है. जब भोजन या ईंधन की आपूर्ति की कमी होती है, तो सेना के ट्रक आते हैं और आपूर्ति को बहाल करते हैं. वे उन परिस्थितियों में रहते हैं.’
गोंजाल्विस ने कहा कि सड़क को डबल-लेन करने का काम सही नहीं है, यह लोगों या सेना के कल्याण में नहीं है क्योंकि इससे भूस्खलन के कारण लोगों की जान को खतरा होगा.
इससे पहले बीते मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि क्या कोई संवैधानिक अदालत देश की रक्षा के लिए सेना की आवश्यकता को दरकिनार कर कह सकती है कि पर्यावरण की सुरक्षा रक्षा जरूरतों पर भारी है.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकता कि एक शत्रु है, जिसने सीमा तक बुनियादी ढांचा विकसित कर लिया है और सेना को सीमा तक बेहतर सड़कों की जरूरत है, जहां 1962 के युद्ध के बाद से कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है.
पीठ ने कहा, ‘हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि इतनी ऊंचाई पर देश की सुरक्षा दांव पर है. क्या भारत के उच्चतम न्यायालय जैसा सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय हाल की कुछ घटनाओं को देखते हुए सेना की जरूरतों को दरकिनार कर सकता है? क्या हम कह सकते हैं कि पर्यावरण संरक्षण देश की रक्षा जरूरतों से ऊपर होगा? या हमें यह कहना चाहिए कि रक्षा चिंताओं का ध्यान इस तरह रखा जाना चाहिए ताकि आगे कोई पर्यावरणीय क्षति न हो.’
पीठ ने कहा कि सतत विकास होना चाहिए और इसे पर्यावरण के साथ संतुलित किया जाना चाहिए क्योंकि अदालत इस तथ्य से अनजान नहीं रह सकती कि इन सड़कों को ‘अपग्रेड’ करने की जरूरत है.
मालूम हो कि उत्तराखंड में चारधाम राजमार्ग परियोजना की निगरानी कर रही उच्चाधिकार समिति की उस रिपोर्ट को लेकर काफी बहस हुई थी, जिसमें बहुमत ने सड़क की चौड़ाई 12 मीटर, जबकि अध्यक्ष रवि चोपड़ा सहित तीन सदस्यों (अल्पमत वाली रिपोर्ट) ने सड़क की चौड़ाई 5.5 (साढ़े पांच) मीटर रखने पर जोर दिया था.
केंद्र ने शीर्ष अदालत से सात मीटर (या 7.5 मीटर अगर मार्ग उठा हुआ हो) की चौड़ाई के साथ डबल लेन की अनुमति देने की मांग की है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)