शीर्ष अदालत कुछ महिला अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें इस साल 25 मार्च के अदालत के निर्णय के बाद भी उन्हें स्थायी कमीशन न देने के लिए सेना के ख़िलाफ़ अवमानना कार्रवाई की मांग की गई थी. कोर्ट द्वारा अवमानना कार्रवाई को लेकर चेताने के बाद सेना ने कहा कि वह सभी योग्य महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देगी.
नई दिल्ली: के आदेशों का अनुपालन नहीं करने को लेकर भारतीय थल सेना और उसके प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की शीर्ष न्यायालय की चेतावनी के बाद रक्षा बल शुक्रवार को अपनी सभी योग्य महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने को राजी हो गया.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ कुछ महिला अधिकारियों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें इस साल 25 मार्च को अदालत के फैसले के बाद भी उन्हें स्थायी कमीशन नहीं देने के लिए सेना के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की गई थी.
मार्च में अदालत ने सेना को महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया था, बशर्ते कि वे उन्हें मूल्यांकन विषयों में 60 प्रतिशत अंक मिले हों, वे मेडिकल में चिकित्सा फिट पाई जाएं और अनुशासनिक और सतर्कता मंजूरी मिली हुई हो.
थल सेना ने शुरूआत में कहा था कि अवमानना याचिका दायर करने वाली बल में 36 महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों में 22 को उसने स्थायी कमीशन प्रदान किया है, जबकि तीन को मेडिकल आधार सहित 14 को उपयुक्त (फिट) नहीं माना गया.
न्यायालय ने कहा, ‘हम सेना को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराते हैं. हम आप को आगाह करते हैं. चूंकि आपने हमारे आदेशों का अनुपालन नहीं किया, इसलिए आपको अंजाम का सामना करना पड़ेगा. थल सेना अपने खुद के प्राधिकार में सर्वोच्च हो सकती है लेकिन यह संविधान अदालत भी अपने अधिकार क्षेत्र में सर्वोच्च है. ’
शीर्ष न्यायालय की चेतावनी के बाद सेना ने पीठ को सूचित किया कि वह सभी योग्य महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करेगी.
पीठ ने सेना की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन और वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बालासुब्रहमण्यम से पूछा कि क्या 11 अधिकारियों को (मेडिकल आधार पर छोड़ी गई तीन के अलावा) जिन्हें छोड़ दिया गया था, ने 60 प्रतिशत अंक हासिल करने की अर्हता पूरी की थी और क्या उन्हें सतर्कता व अनुशासनिक मंजूरी मिली थी, या इस साल 25 मार्च को न्यायालय द्वारा निधार्रित योग्यता पर खरा नहीं उतरी थी.
जैन ने बताया कि सभी 11 अधिकारियों ने 60 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल किए थे और उन्होंने सभी अनुशासनिक व सतर्कता मंजूरी प्राप्त की थी लेकिन उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां थी तथा उनकी सांविधिक एवं गैर सांविधिक शिकायतें लंबित हैं.
पीठ ने कहा, ‘यदि उन्होंने हमारे फैसले में जिक्र की गई सारी अर्हता पूरी की है तो आपने स्थायी कमीशन क्यों नहीं प्रदान किया?’
इसके बाद पीठ ने आदेश पढ़ना शुरू किया, लेकिन जैन ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि उन्होंने अभी-अभी यह निर्देश पाया है कि सेना उन 11 अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने को इच्छुक है.
हालांकि, स्थायी कमीशन से मना की गई महिला अधिकारियों के वकीलों बयान पर आपत्ति जताई और कहा कि यहां तक कि जिन अधिकारियों ने सेना और नरवणे के खिलाफ अवमानना याचिका दायर नहीं की थी, उनके नाम पर भी विचार किया जाना चाहिए.
जैन ने पीठ से अनुरोध किया कि चूंकि उन्हें और बालासुब्रमण्यम को संबद्ध प्राधिकारों से निर्देश पाने की जरूरत है, एसे में न्यायालय दोपहर दो बजे तक कुछ समय दे सकता है और तब तक वह आदेश नहीं सुनाए.
पीठ इस पर सहमत हो गई और दोनों को निर्देश प्राप्त करने की अनुमति दे दी.
भोजनावकाश के बाद के सत्र में जैन ने कहा कि उन्हें यह निर्देश प्राप्त हुए हैं कि सेना सभी महिला शार्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने को इच्छुक है, चाहे उन्होंने याचिका दायर की हो या नहीं लेकिन 25 मार्च के न्यायालय के आदेश में निर्धारित अर्हता पूरी करती हों.
इस पर पीठ ने सेना को न्यायालय का रुख करने वाली 11 अधिकारियों को 10 दिनों के अंदर और न्यायालय का रुख नहीं करने वाली महिला अधिकारियों को तीन हफ्तों के अंदर स्थायी कमीशन प्रदान करने का आदेश दिया.
न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत मामलों से कानून के अनुरूप निपटा जाएगा और भारतीय थल सेना तथा उसके प्रमुख के खिलाफ अवमानना कार्रवाई नहीं शुरू की जाएगी.
शीर्ष न्यायालय के इस निर्देश के साथ कुल 71 महिला अधिकारियों, जिन्हें शुरूआत में स्थायी कमीशन देने से इनकार कर दिया गया था, में 68 को स्थायी कमीशन प्रदान किया जाएगा.
पिछले साल 17 फरवरी के अपने ऐतिहासिक फैसले में न्यायालय ने निर्देश दिया था कि सेना में महिला अधिकारियों को कमांड पोस्टिंग सहित स्थायी कमीशन प्रदान किया जाए. न्यायालय ने केंद्र की शारीरिक सीमाओं की दलील को खारिज करते हुए कहा था कि यह ‘महिलाओं के खिलाफ लैंगिक भेदभाव’ है.
जिन लोगों को चयन प्रक्रिया में इसकी अनुमति नहीं दी गई थी, उन्होंने सेना द्वारा अपनाए गए मानदंडों में खामियों की ओर इशारा करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसके बाद अदालत ने इस साल 25 मार्च को अपना फैसला सुनाया.
इस निर्णय में सेना के मापदंड को अनुचित बताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि हमारे समाज का ढांचा पुरुषों ने पुरुषों के लिए ही बनाया है, जहां समानता की बात एक स्वांग है और आज़ादी के बाद से पुरुषों तथा महिलाओं के बीच की खाई भरने तथा उन्हें समान अवसर देने की कोशिशें की गई हैं.
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 137 पेज लंबे फैसले में आगे यह भी जोड़ा था, ‘हमें ये स्वीकार करना चाहिए कि हमारे समाज की संरचना पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए तैयार की गई हैं, इसलिए जो कुछ तंत्र ऊपरी तौर पर हानिरहित दिखाई देते हैं, वे असल में कपटी पितृसत्तात्मक व्यवस्था के लक्षण होते हैं.’
फैसले के अनुसार, ‘जब किसी कानून को पुरुष के नजरिये से बनाया गया हो, ऐसे में इसे दो गैर-बराबर लोगों पर बराबर तरीके से लागू करने का दावा करना स्वांग है. समानता का बनावटी रूप संविधान ने निहित बराबरी के सिद्धांत पर खरा नहीं उतरता है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)