सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि ऐसे सांसदों और विधायकों को खुद को दोषी ठहराए जाने के फैसले के ख़िलाफ़ अपील करने का एक अवसर मिलना चाहिए.
केंद्र सरकार ने बीते 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दाख़िल करते हुए कहा कि किसी आपराधिक मामले में दोषी पाए जाने पर सांसद और विधायक अपने आप अयोग्य नहीं होंगे .
केंद्र ने यह भी कहा कि उनकी सीट को तुरंत ख़ाली नहीं कराया जा सकता और उन्हें खुद को दोषी ठहराए जाने के फैसले के ख़िलाफ़ अपील करने का एक अवसर मिलना चाहिए क्योंकि क़ानूनी रूप से अगर देखा जाए तो सांसदों और विधायकों भी को भी खुद को दोषी ठहराए जाने के फैसले के ख़िलाफ़ अपील करने और उस पर रोक हासिल करने का अधिकार होता है.
एनडीटीवी इंडिया की ख़बर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने लोक प्रहरी एनजीओ की उस याचिका का विरोध किया है, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई विधायक या सांसद आपराधिक मामले में दोषी पाया जाता है तो उसकी सीट को तुरंत खाली घोषित किया जाए. केंद्र सरकार ने कहा कि ये पॉलिसी मामला है, इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए.
अपनी याचिका में लोक प्रहरी एनजीओ ने दलील दी थी कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में आपराधिक मामले में दोषी पाए गए कुछ लोग हैं अपने पद पर बने हुए हैं क्योंकि सीट को खाली घोषित करने और चुनाव कराने में लंबा समय लिया जा रहा है.
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फ़ैसले को आधार बनाया गया है, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई विधायक या सांसद आपराधिक मामले में दोषी पाया जाता है तो तत्काल प्रभाव से वो अयोग्य घोषित हो जाएगा.
नवभारत टाइम्स की ख़बर के अनुसार 2013 में सुप्रीम कोर्ट के लिली थॉमस मामले में दोषी ठहराए जाने पर अपने आप अयोग्य होने से जुड़ा फैसला देने के बाद से कुछ सांसदों और विधायकों को अपनी कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
इससे पहले तक निर्वाचित सांसद और विधायक दोषी ठहराए जाने के बाद अपनी अपील की सुनवाई होने तक पद पर बने रह सकते थे. हालांकि हाल के समय में इस तरह के पदों पर बैठे कुछ लोगों ने दोषी ठहराए जाने के बाद भी इस्तीफा देने से मना कर दिया था.
क़ानून मंत्रालय के हलफनामे में दावा किया गया है कि संविधान में अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए बहुत सारे क़ानून और प्रावधान हैं. लोक प्रहरी ने अपने सचिव एसएन शुक्ला के जरिए सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई अपील में शिकायत की थी कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए कुछ विधायक अभी भी अपने सदनों में बरकरार हैं.
वहीं इन विधायकों की दलील है कि विधानसभा के सचिवालय ने उनकी अयोग्यता की आधिकारिक सूचना नहीं दी है.