सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल को दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ में पदोन्नत करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है, जो उनके यौन झुकाव के कारण विवाद का विषय था, लेकिन पदोन्नति केंद्र की सहमति के अधीन होगी. केंद्र अगर अनुमति देता है तो वह देश के किसी हाईकोर्ट के पहले समलैंगिक न्यायाधीश बन सकते हैं.
नई दिल्ली: अगर केंद्र वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत करने की उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिश को स्वीकार कर लेता है, वह देश के किसी उच्च न्यायालय के खुले तौर पर पहले समलैंगिक न्यायाधीश बन सकते हैं.
हालांकि, उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने हाल में कृपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय की पीठ में पदोन्नत करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जो उनके यौन झुकाव के कारण विवाद का विषय था, लेकिन पदोन्नति केंद्र की मंजूरी के अधीन होगी.
केंद्र को मंजूरी के लिए सिफारिश भेजी जाती हैं, जो इसे वापस कॉलेजियम को भेज सकता है. हालांकि, अगर नाम वापस भेजा जाता है, तो केंद्र के पास इसे मंजूरी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता.
49 वर्षीय सौरभ कृपाल 2002 में प्रधान न्यायाधीश रहे भूपिंदर नाथ कृपाल के पुत्र हैं.
बीते 19 मार्च को सौरभ कृपाण को सर्वसम्मति से दिल्ली उच्च न्यायालय के सभी 31 न्यायाधीशों द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया था, जिसे उनके समर्थन के रूप में देखा गया था.
सौरभ कृपाल ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की है और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से कानून में मास्टर डिग्री ली है तथा जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में एक संक्षिप्त कार्यकाल के बाद वह भारत लौट आए थे.
कृपाल दो दशक से अधिक समय से शीर्ष अदालत में वकालत कर रहे हैं. वह उस मामले में नवतेज जौहर, रितु डालमिया और अन्य लोगों के वकील थे, जिसमें 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि कृपाण के नाम पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश सरकार द्वारा बार-बार आपत्तियों के बावजूद आई है, जिसने हितों के टकराव का दावा करते हुए उनकी पदोन्नति को रोक लगा दी थी, क्योंकि उनके पार्टनर यूरोपीय हैं और स्विस दूतावास के साथ काम करते हैं.
कॉलेजियम ने एक बयान में कहा है कि यह फैसला 11 नवंबर को हुई बैठक में लिया गया. कृपाल समलैंगिक हैं और अगर उनका चयन किया जाता है तो उनकी पदोन्नति समलैंगिक अधिकारों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा.
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश 2018 में पहली बार कृपाल की उम्मीदवारी पर विचार करने के लगभग तीन साल बाद आई है.इससे पहले कॉलेजियम ने तीन अन्य अवसरों (जनवरी 2019, अप्रैल 2019 और अगस्त 2020) पर कृपाल की सिफारिश पर अपना फैसला टाल दिया था.
कानूनी हलकों में कृपाल की सिफारिश करने में देरी की वजह व्यापक रूप से उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन को माना जाता है.
फरवरी में कृपाल की नियुक्ति उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन के कारण रोक देने की उन अटकलों की बीच कि तत्कालीन सीजेआई एसए बोबडे ने तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिखकर उनसे संबंधित खुफिया जानकारी पर स्पष्टीकरण मांगा था. इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया था कि सरकार ने तब कृपाल के पार्टनर की राष्ट्रीयता पर अपनी आपत्तियों को दोहराया था.
दिल्ली उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने 2017 में कृपाल की पदोन्नति की सिफारिश की थी. इसके बाद उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने भी इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी.
हालांकि, केंद्र ने उनके कथित यौन झुकाव का हवाला देते हुए उनकी सिफारिश पर आपत्ति जताई थी.
उनके नाम की सिफारिश और केंद्र की कथित आपत्ति को लेकर पिछले चार साल से न्यायिक गलियारों में व्यापक चर्चा होती रही है.
दिल्ली उच्च न्यायालय में 60 न्यायाधीशों के स्वीकृत पद हैं और वर्तमान में यह 30 न्यायाधीशों के साथ काम कर रहा है.
एलजीबीटीक्यू समुदाय और अन्य ने किया स्वागत
दिल्ली उच्च न्यायालय के लिए सौरभ कृपाल के नाम को उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा मंजूरी दिए जाने से भारत को पहला समलैंगिक न्यायाधीश मिलने की संभावना का मंगलवार को व्यापक स्वागत हुआ और एलजीबीटीक्यू समुदाय के कुछ लोगों ने जहां इसे ऐतिहासिक करार दिया तो कुछ अन्य ने इसे ‘निष्पक्ष भारत’ के प्रतीक के रूप में वर्णित किया.
अपनी समलैंगिक स्थिति के बारे में खुलकर बोलने वाले कृपाल की संभावित पदोन्नति की खबर को समलैंगिक समुदाय के लोगों और मशहूर हस्तियों, अधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों से सोशल मीडिया तथा अन्य जगहों पर भावनात्मक प्रतिक्रिया मिली.
कृपाल के मित्र, लेखक शरीफ डी. रंगनेकर के लिए यह सिफारिश अविश्वसनीय रूप से बहुत बड़ी है और समुदाय में एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए कई लोगों को प्रेरित करेगी.
पूर्व पत्रकार और ‘स्ट्रेट टू नॉर्मल: माय लाइफ ऐज़ अ गे मैन’ के लेखक रंगनेकर ने कहा, ‘मैं आपको बता नहीं सकता कि यह खबर पाकर मैं कितना खुश हूं. यह निश्चित रूप से सौरभ कृपाल की उपलब्धि है, इसका सारा श्रेय उन्हें जाता है, लेकिन हम एक ऐसे समुदाय में रह रहे हैं, जहां बहुत कम लोग हैं, जो किसी खास पद पर हैं, जो एक खास तरह का प्रभाव रखते हैं, एक ऐसी चीज जिसे हम आज पाना चाहते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘सौरभ भारत से अलग किसी दूसरे देश में जाने का विकल्प चुन सकते थे और अधिक सम्मान प्राप्त कर सकते थे] लेकिन वह यहीं रहे, वह किसी भी दबाव में नहीं झुके हैं. आप नहीं जानते कि अब और कितने वकील सामने आएंगे, तथा भेदभाव महसूस नहीं करेंगे. यह वास्तव में समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है.’
दिल्ली निवासी ट्रांसजेंडर महिला नाज़ जोशी ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कृपाल की संभावित नियुक्ति निष्पक्ष भारत के लिए एक उदाहरण स्थापित करेगी.
उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, न्यायपालिका प्रणाली में एलजीबीटीक्यू समुदाय का एक सदस्य हमारे समुदाय को लाभान्वित कर सकता है. हम उम्मीद कर सकते हैं कि वह हमारे अधिकारों के लिए लड़ेंगे और भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाएंगे, जो समय की जरूरत है.’
अभिनेता-फिल्म निर्माता फरहान अख्तर के विचार में उच्चतम न्यायालय द्वारा कृपाल को चुना जाना ऐतिहासिक है और यह इस दिशा में एक बड़ा कदम है कि यौन अभिविन्यास पर नहीं, बल्कि योग्यता पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए.
फिल्म निर्देशक अपूर्व असरानी ने ट्वीट किया, ‘सौरभ कृपाल समलैंगिक के रूप में पहचान रखते हैं और एलजीबीटीक्यू अधिकारों के बारे में मुखर हैं. आज वह दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनने के लिए तैयार हैं.’
कई अन्य लोगों ने भी सोशल मीडिया पर अपने विचार रखे.
किंग्शुक बनर्जी ने कहा, ‘यह वास्तव में खुशी की बात है. अगर ऐसा होता है तो भारत यूरोपीय संघ और कनाडा की लीग में शामिल हो जाएगा. यह वास्तव में भारत में बहुलवाद और बहु-संस्कृतिवाद को प्रदर्शित करता है.’
कौस्तुभ मेहता ने ट्वीट किया, ‘हमें लॉ स्कूल में सिखाया गया था कि वकील सामाजिक इंजीनियर होते हैं. सौरभ कृपाल की पदोन्नति से समावेश और बहुलता का संदेश न्यायिक हलकों में और अंतत: समाज में फैल जाएगा. यह सोशल इंजीनियरिंग की एक उत्कृष्ट कृति होगी!’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)