कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का कहना है कि उन्होंने निजी डेटा सुरक्षा विधेयक से संबंधित धारा 35 और 12 में संशोधन का सुझाव दिया था, जो विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान है. उन्होंने कहा कि धारा 35 केंद्र सरकार को असीम शक्तियां देती है कि वह किसी भी सरकारी एजेंसी को इस प्रस्तावित क़ानून के दायरे से बाहर रख दे.
नई दिल्लीः निजी डेटा सुरक्षा विधेयक से संबंधित संसद की संयुक्त समिति की रिपोर्ट को सोमवार को स्वीकार कर लिया गया. हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश और गौरव गोगोई समेत कई विपक्षी नेताओं ने इस पर असहमति नोट सौंपा.
विपक्षी नेताओं ने राज्य स्तर पर डेटा संरक्षण प्राधिकरणों की गैरमौजूदगी और सरकारी एजेंसियों को दी गई छूट को लेकर यह असहमति जताई है.
सूत्रों ने बताया कि इस संयुक्त समिति के गठन के करीब दो साल बाद रिपोर्ट को स्वीकार किया गया है. 2019 में पेश किए गए इस विधेयक को छानबीन और आवश्यक सुझावों के लिए इस समिति के पास भेजा गया था.
कांग्रेस के चार सांसदों, तृणमूल कांग्रेस के दो और बीजू जनता दल (बीजद) के एक सांसद ने समिति की कुछ सिफारिशों को लेकर अपनी असहमति जताई.
राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक जयराम रमेश ने रिपोर्ट को स्वीकार किए जाने के बाद अपनी ओर से असहमति जताई.
उन्होंने कहा कि उन्हें असहमति देने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उनके सुझावों को स्वीकार नहीं किया गया और वह समिति के सदस्यों को मना नहीं सकें.
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ’ब्रायन और महुआ मोइत्रा ने भी असहमति जताई. कांग्रेस के अन्य सदस्य मनीष तिवाकी, विवेक तन्खा और बीजद सांसद अमर पटनायक ने भी असहमति नोट दिया.
समिति की रिपोर्ट में विलंब इसलिए हुआ क्योंकि इसकी पूर्व अध्यक्ष मीनाक्षी लेखी को कुछ महीने पहले केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया था. इसके बाद भाजपा सांसद पीपी चौधरी को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने चौधरी की अध्यक्षता में पिछले चार महीनों में हुए समिति के कामकाज की सराहना की.
उन्होंने इस प्रस्तावित कानून को लेकर अपनी असहमति जताते हुए कहा, ‘आखिरकार, यह हो गया. संसद की संयुक्त समिति ने निजी डेटा सुरक्षा विधेयक-2019 पर अपनी रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया. असहमति के नोट दिए गए हैं, लेकिन ये संसदीय लोकतंत्र की भावना के अनुरूप हैं. दुखद है कि मोदी सरकार के तहत इस तरह के कुछ ही उदाहरण हैं.’
कांग्रेस नेता ने कहा कि उनके सुझावों को स्वीकार नहीं किया गया और वह सदस्यों से अपनी बात नहीं मनवा सके, जिस कारण उन्हें असहमति का नोट देने के लिए विवश होना पड़ा.
उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘लेकिन इससे समिति के लोकतांत्रिक ढंग से काम करने का महत्व कम नहीं होना चाहिए.’
Today, the Joint Parliamentary Committee on Personal Data Protection Bill 2019 will adopt its report. I’m compelled to submit a detailed dissent note. But that should not detract from the democratic manner in which the Committee has functioned. Now, for the debate in Parliament. pic.twitter.com/tavBnF9y5B
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) November 22, 2021
जयराम रमेश ने पूर्णत: लोकतांत्रिक और पारदर्शी तरीके से समिति के कामकाज की सराहना करते हुए कहा कि अंतिम रिपोर्ट को लेकर उनकी दो बहुत ही बुनियादी आपत्ति हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैंने धारा 35 और 12 में संशोधन का सुझाव दिया था, जो विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान है. जेसीपी ने मुझे धैर्य से सुना, लेकिन मैं इसे अपने तर्कों को समझाने में असफल रहा. जेसीपी में आम सहमति मेरे संशोधनों को स्वीकार नहीं करने के पक्ष में दिखाई दी और मैं एक बिंदू तक इस मुद्दे पर जोर नहीं देना चाहता था.’
उन्होंने कहा कि धारा 35 केंद्र सरकार को असीम शक्तियां देती है कि वह किसी भी सरकारी एजेंसी को इस प्रस्तावित कानून के दायरे से बाहर रख दे.
उन्होंने कहा कि विधेयक के डिजाइन से माना गया कि निजता का संवैधानिक अधिकार केवल वहीं उत्पन्न होता है, जहां तक निजी कंपनियों के संचालन और उनकी गतिविधियों का संबंध है.
उन्होंने कहा, ‘सरकारों और सरकारी एजेंसियों को अलग विशेषाधिकार वर्ग के तौर पर माना जाता है जिनका संचालन और गतिविधियां हमेशा जनहित में होती हैं और आम जन की निजता को दोयम माना जाता है.’
रमेश ने कहा कि समिति की रिपोर्ट में निजी क्षेत्र की कंपनियों को नई डेटा सुरक्षा व्यवस्था के दायरे में आने के लिए दो साल का समय देने का सुझाव दिया है, जबकि सरकारों या उनकी एजेंसियों के लिए ऐसा नहीं किया गया है.
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने समिति के कामकाज को लेकर कहा कि वह इस प्रस्तावित कानून के बुनियादी स्वरूप से असहमत हैं और ऐसे में उन्होंने असहमति का विस्तृत नोट सौंपा है.
उन्होंने यह दावा भी किया कि यह प्रस्तावित अधिनियम, कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाएगा.
लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने विधेयक को लेकर कहा कि जासूसी और इससे जुड़े अत्याधुनिक ढांचा स्थापित किए जाने के प्रयास के कारण पैदा हुईं चिंताओं पर पूरी तरह ध्यान नहीं दिया गया है.
समिति में शामिल तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने भी असहमति का नोट सौंपा और कहा कि यह विधेयक स्वभाव से ही नुकसान पहुंचाने वाला है. उन्होंने समिति के कामकाज को लेकर भी सवाल किया.
सूत्रों के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ’ब्रायन और महुआ मोइत्रा ने भी असहमति नोट में आरोप लगाया कि यह समिति अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो गई और संबंधित पक्षों को विचार-विमर्श के लिए पर्याप्त समय एवं अवसर नहीं दिया गया.
उन्होंने यह भी कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान समिति की कई बैठकें हुईं, जिनमें दिल्ली से बाहर होने के कारण कई सदस्यों के लिए शामिल होना बहुत मुश्किल था.
सूत्रों के अनुसार, इन सांसदों ने विधेयक का यह कहते हुए विरोध किया कि इसमें निजता के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उचित उपाय नहीं किए गए हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)