जातिगत जनगणना तर्कसंगत मांग है, बेहतर नीतियां बनाने में मददगार साबित होगा: एनसीबीसी प्रमुख

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के अध्यक्ष डॉ. भगवान लाल साहनी ने कहा कि जाति आधारित जनगणना निश्चित तौर पर नीति निर्माताओं को पिछड़े वर्ग के लिए कल्याणकारी नीतियां बनाने में मददगार साबित होगी. अगर ऐसा हुआ तो सरकार के लिए यह जानना आसान होगा किस जाति के कितने लोग हैं और उनके लिए क्या किया जाना चाहिए.

Parliament Aliza Bakht The Wire इलस्ट्रेशन: एलिज़ा बख़्त
(इलस्ट्रेशन: एलिज़ा बख़्त)

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के अध्यक्ष डॉ. भगवान लाल साहनी ने कहा कि जाति आधारित जनगणना निश्चित तौर पर नीति निर्माताओं को पिछड़े वर्ग के लिए कल्याणकारी नीतियां बनाने में मददगार साबित होगी. अगर ऐसा हुआ तो सरकार के लिए यह जानना आसान होगा किस जाति के कितने लोग हैं और उनके लिए क्या किया जाना चाहिए.

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अध्यक्ष भागवान लाल साहनी. (फोटो साभार: फेसबुक/@NCBCobc)

पटना: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के अध्यक्ष डॉ. भगवान लाल साहनी ने शुक्रवार को कहा कि जाति आधारित गणना तर्कसंगत मांग है और यह बेहतर नीतियां बनाने में मददगार साबित होगा.

साहनी ने बताया कि विभिन्न संगठनों ने इस मांग को लेकर उनसे भेंट की है और उन्होंने इस मुद्दे से संबंधित अधिकारियों को अवगत करा दिया है.

उन्होंने बिहार की राजधानी पटना में पत्रकारों से कहा कि अब सरकार को कदम उठाना है.

साहनी ने कहा, ‘जाति आधारित जनगणना निश्चित तौर पर नीति निर्माताओं को पिछड़े वर्ग के लिए कल्याणकारी नीतियां बनाने में मददगार साबित होगी. मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि अगर ऐसा हुआ तो सरकार के लिए यह जानना आसान होगा किस जाति के कितने लोग हैं और उनके लिए क्या किया जाना चाहिए.’

जाति आधारित जनगणना में अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी/एसटी) के लोगों के अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों की भी गिनती की जाएगी.

साहनी ने कहा कि विभिन्न राजनीतिक दल देश की आबादी की जाति आधारित जनगणना कराने की मांग कर रहे हैं.

मालूम हो कि कुछ महीने पहले मोदी सरकार ने जाति जनगणना कराने से इनकार कर दिया था. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना ‘प्रशासनिक रूप से कठिन और दुष्कर’ है और जनगणना के दायरे से इस तरह की सूचना को अलग करना ‘सतर्क नीति निर्णय’ है.

बीते सितंबर महीने में बिहार से 10 दलों के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी और जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग की थी.

केंद्र के इनकार के बाद नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना की अपनी मांग को दोहराते हुए कहा था कि इससे विकास की दौड़ में पिछड़ रहे समुदायों की प्रगति में मदद मिलेगी. यह राष्ट्रीय हित में है और केंद्र को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए.

उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कई राजनीतिक दलों ने इस तरह की जनगणना की मांग उठाई है.

बीते सितंबर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोगी अपना दल (एस) ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कल्याण के लिए एक अलग केंद्रीय मंत्रालय और पूरे देश में जाति आधारित जनगणना की मांग की थी, ताकि समुदाय की सटीक आबादी का पता लगाया जा सके.

विभिन्न राजनीतिक दलों के अलावा, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने इस साल अप्रैल में सरकार से भारत की जनगणना 2021 कवायद के तहत ओबीसी की आबादी पर आंकड़े एकत्र करने का आग्रह किया था.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, देश में एकमात्र जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)