दिल्ली: हाईकोर्ट ने सलमान ख़ुर्शीद की किताब पर प्रतिबंध लगाने की याचिका सुनने से इनकार किया

दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता सलमान ख़ुर्शीद की हालिया किताब की बिक्री और प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र व दिल्ली सरकार को निर्देश देने के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करने से मना करते हुए कहा कि यह 'एक मौक़ापरस्त याचिकाकर्ता' हैं जिन्होंने प्रचार के लिए याचिका दायर की.

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सलमान खुर्शीद की पुस्तक के विमोचन पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और पी. चिंदबरम (फोटोः पीटीआई)

दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता सलमान ख़ुर्शीद की हालिया किताब की बिक्री और प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र व दिल्ली सरकार को निर्देश देने के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करने से मना करते हुए कहा कि यह ‘एक मौक़ापरस्त याचिकाकर्ता’ हैं जिन्होंने प्रचार के लिए याचिका दायर की.

सलमान खुर्शीद की पुस्तक के विमोचन पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और पी. चिंदबरम (फोटोः पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन आवर टाइम्स’ की बिक्री और प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश देने के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करने से मंगलवार को इनकार कर दिया.

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ता राकेश को पुस्तक के लेखक या प्रकाशन को याचिका में पक्षकार के रूप में शामिल नहीं करने पर उनकी खिंचाई की.

पीठ ने कहा कि वह एक ‘मौकापरस्त याचिकाकर्ता’ हैं जिन्होंने प्रचार के लिए याचिका दायर की.

पीठ ने कहा, ‘आप पुस्तक पर पूरी तरह प्रतिबंध लगवाना चाहते हैं लेकिन आपने लेखक को पक्षकार नहीं बनाया है. आप कुछ भी अनुरोध कर रहे हैं. हम इसे जुर्माने के साथ खारिज कर सकते हैं. आप लेखक के साथ पक्षकार के तौर पर शामिल नहीं हो रहे हैं. अदालत में ऐसे काम करना रोकें. आप इतनी शर्म क्यों महसूस कर रहे हैं और लेखक को एक पक्षकार के रूप में शामिल क्यों नहीं कर रहे हैं. हम आपको कोई मौका नहीं देंगे, यह एक जानबूझकर उठाया गया कदम है. ये सभी मौकापरस्त याचिकाकर्ता हैं. यह सिर्फ प्रचार के लिए है.’

कुछ समय बाद याचिकाकर्ता राकेश के वकील ने याचिका को वापस लेने और उचित बयानों, अनुलग्नकों के साथ एक नई याचिका दायर करने और उचित व्यक्तियों को पक्षकारों के रूप में शामिल करने की अनुमति मांगी. अदालत ने याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए इसका निस्तारण कर दिया.

रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने कहा, ‘सलमान खुर्शीद को एक पक्षकार के रूप में शामिल करने की उनमें हिम्मत नहीं है, वह किस तरह की जनहित याचिका पर बहस करेंगे. यदि आप लेखक या वरिष्ठ अधिवक्ता के नाम को लेकर इतने चिंतित हैं तो आपको जनहित याचिका दायर नहीं करनी चाहिए थी. ये ब्लैकमेलिंग या प्रचार याचिकाएं हैं. यह जनहित याचिका समय की बर्बादी है.’

याचिकाकर्ता राकेश ने अपने वकीलों एके दुबे और पवन कुमार के जरिये आरोप लगाया था कि खुर्शीद ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार का बहुत जटिल तरीके से दुरुपयोग किया है क्योंकि यह पूर्ण नहीं है और इसके साथ जनहित के लिए विशेष कर्तव्य और जिम्मेदारियां हैं.

उन्होंने कहा था कि देश में 90 करोड़ हिंदू हैं और अगर कोई किताब में दिए गए इस तरह के बयानों से नाराज होता है, तो यह समाज में कानून-व्यवस्था की समस्या बन सकता है.

याचिका में कहा कि, ‘सलमान खुर्शीद ने एक अध्याय में लिखा है कि सनातन धर्म और साधु-संतों के लिए जाने जाने वाले शास्त्रीय हिंदू धर्म को हिंदुत्व के एक मजबूत संस्करण द्वारा एक तरफ धकेला गया. सभी मानकों के अनुसार आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया) और हाल के वर्षों के बोको हराम जैसे समूहों के जिहादी इस्लाम के समान एक राजनीतिक संस्करण है.’

हाल ही में अयोध्या विवाद पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता समालन खुर्शीद की नई किताब का विमोचन किया गया था.

खुर्शीद ने अपनी किताब ‘सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन आवर टाइम्स’ में कथित तौर पर हिंदुत्व के उग्र स्वरूप की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम जैसे जिहादी इस्लामी आतंकवादी समूहों से की गई है, जिससे विवाद शुरू हो गया है.

इससे पहले 25 नवंबर को इसी अदालत ने खुर्शीद की किताब प्रकाशन, प्रसार और बिक्री पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली एक वकील विनीत जिंदल की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि वह क्या कर सकता है अगर लोग ‘इतना संवेदनशील महसूस’ कर रहे हैं.

जस्टिस यशवंत वर्मा की पीठ ने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समेत संविधान प्रदत अधिकारों को अप्रिय होने की आशंका के आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता या उनसे वंचित नहीं किया जा सकता. अगर रचनात्मक आवाजों का गला घोंट दिया गया या बौद्धिक स्वतंत्रता को दबा दिया गया तो विधि के शासन से संचालित होने वाला लोकतंत्र गंभीर खतरे में पड़ जाएगा.

अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा, ‘लोगों से कहिए कि किताब नहीं खरीदे या नहीं पढ़ें. लोगों को बताइए कि यह खराब तरीके से लिखी है, कुछ बेहतर पढ़िए. अगर लोग इतना संवेदनशील महसूस कर रहे हैं तो हम क्या कर सकते हैं.’

इस निर्णय के विस्तृत आदेश में कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया था कि बहुसंख्यकों के विचारों से मेल खाने पर ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए.

अपने छह पन्नों के फैसले में वाल्टेयर का उद्धरण देते हुए अदालत ने कहा, ‘आप जो कह रहे हैं, मैं उससे बिल्कुल भी इत्तेफाक नहीं रखता, लेकिन मैं अंतिम सांस तक आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करूंगा.’ अदालत ने यह भी कहा था कि ‘असहमति का अधिकार या समसामयिक मुद्दों और ऐतिहासिक घटनाओं पर विपरीत विचार रखना या उसे व्यक्त करना जीवंत लोकतंत्र का सार है.’

इससे पहले  17 नवंबर को यहां के एक अतिरिक्त सिविल जज ने हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा एक मुकदमे पर एक पक्षीय निषेधाज्ञा देने से इनकार कर दिया था, जिसमें समाज के एक बड़े वर्ग की भावनाओं को कथित रूप से आहत करने के लिए पुस्तक के प्रकाशन, प्रसार और बिक्री को रोकने के लिए किया गया था.

निचली अदालत ने अंतरिम राहत से इनकार करते हुए कहा था कि लेखक और प्रकाशक को किताब लिखने और प्रकाशित करने का अधिकार है.

हिंदू सेना ने किताब पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध करते हुए आरोप लगाया था कि खुर्शीद की टिप्पणी सामाजिक अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाली और हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)