बॉम्बे हाईकोर्ट ने एल्गार परिषद मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज को इस आधार पर ज़मानत दी है कि उनके ख़िलाफ़ निश्चित अवधि में आरोपपत्र दायर नहीं किया गया.
नई दिल्लीः राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत देने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक दिसंबर को यह कहते हुए भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत दी थी कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धारा 43डी (2) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2)के प्रावधानों के तहत जांच और डिटेंशन के समय का विस्तार अदालत द्वारा नहीं किया गया.
हाईकोर्ट ने कहा था कि जमानत की शर्तों का फैसला आठ दिसंबर को विशेष एनआईए अदालत द्वारा किया जाएगा.
रिपोर्ट के मुताबिक अदालत ने कहा था, ‘सुधा भारद्वाज की याचिका से जो तथ्य अब तक उभरकर सामने आए हैं, उनमें पहला है कि 90 दिनों की डिटेंशन अवधि (हाउस अरेस्ट की अवधि को छोड़कर) 25 जनवरी 2019 को समाप्त हो गई थी. दूसरा, कोई चार्जशीट दायर नहीं की गई. तीसरा, नजरबंदी की अवधि बढ़ाने का कोई वैध आदेश नहीं दिया गया था और पांचवा सुधा भारद्वाज द्वारा डिफॉल्ट जमानत के लिए दायर याचिका पर फैसले का इंतजार किया जा रहा था.’
पीठ ने कहा, ‘अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा डिटेंशन की अवधि को 90 दिनों के लिए बढ़ा गया गया था. याचिकाकर्ता सुधा भारद्वाज चार्जशीट दायर होने तक डिफॉल्ट जमानत के लिए आवेदन नहीं कर सकी थीं इसलिए यह आग्रह नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ता सुधा भारद्वाज ने उक्त अवधि के दौरान याचिका दायर नहीं की थी और डिफॉस्ट जमानत के अधिकार का लाभ नहीं उठाया था.’
बता दें कि सुधा भारद्वाज को एल्गार परिषद मामले में 28 अगस्त 2018 को गिरफ्तार किया गया था. भारद्वाज के साथ इस मामले में आठ अन्य कार्यकर्ताओं ने भी डिफॉल्ट जमानत के लिए आवेदन किया था लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट उनकी याचिकाएं खारिज कर दी थीं.
जैसे ही सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत दी गई, एनआईए ने कहा कि वह हाईकोर्ट के इस आदेस को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे और जमानत आदेश पर रोक लगाने के लिए कहेंगे.
मालूम हो कि सुधा भारद्वाज को अगस्त 2018 में पुणे पुलिस द्वारा जनवरी 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
उन पर हिंसा भड़काने और प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के लिए फंड और मानव संसाधन इकठ्ठा करने का आरोप है, जिसे उन्होंने बेबुनियाद और राजनीति से प्रेरित बताया था.