साल 2019 में जम्मू कश्मीर का विशेष दर्ज़ा ख़त्म किए जाने के बाद से 250 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि ग़ैर-वन कार्यों के लिए ट्रांसफर किया गया है. ये भूमि पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील है और यहां कई लुप्तप्राय जानवरों की प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें से कुछ इलाकों में रहने वाले लोगों का आरोप है कि जम्मू कश्मीर प्रशासन ने इन प्रस्तावों को मंज़ूरी देने से पहले यहां की पंचायत समितियों या स्थानीय लोगों से परामर्श नहीं किया है.
श्रीनगर: जम्मू कश्मीर प्रशासन ने साल 2019 से लेकर अब तक 250 हेक्टेयर से अधिक पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील भूमि को सशस्त्र बलों को हस्तांतरित की है. पांच जनवरी साल 2019 को जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया था.
यह कदम हाल ही में सीओपी26 (COP26) जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भारत द्वारा किए गए उस वादे के विपरीत है, जिसमें सरकार ने कहा था कि वे देश के वन क्षेत्र में बढ़ोतरी कर ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कमी लाएगी.
जम्मू कश्मीर प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कश्मीर में सशस्त्र बलों के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने के उद्देश्य से ‘सैकड़ों हजारों’ पेड़ काटे जा रहे हैं, क्योंकि भारत का उसके पड़ोसियों- चीन और पाकिस्तान के साथ तनाव जारी है.
द वायर द्वारा प्राप्त किए गए आधिकारिक दस्तावेजों से पता चलता है कि जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को आर्म्स ट्रेनिंग ग्राउंड बनाने के लिए जम्मू के चौवढ़ी में 135.57 हेक्टेयर वन भूमि ट्रांसफर करने की मंजूरी प्रदान की है.
अधिकारी ने कहा कि अभी ये मामला राज्य और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड से अनुमोदन के लिए लंबित है और ‘उच्च स्तर’ पर इसे लेकर विचार-विमर्श चल रहा है.
इसी तरह प्रशासन ने सेना के मौजूदा खुंदरू गोला-बारूद डिपो का विस्तार करने के लिए दक्षिण कश्मीर के संरक्षित क्षेत्र अचबल कंजर्वेशन रिजर्व की 104.98 हेक्टेयर भूमि ट्रांसफर करने की स्वीकृति दी है.
यह भूमि पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है और यह हिमालयी काले भालू जैसे विभिन्न प्रकार के लुप्तप्राय जानवरों की प्रजातियों का घर है. इसके अलावा यहां देवदार और सनोबर जैसे पेड़ पाए जाते हैं.
यह डिपो इसके आसपास रहने वाले लोगों के लिए बड़ी परेशानी का कारण रहा है जो, इसे स्थानांतरित करने की मांग कर रहे हैं. पिछले साल यहां एक विस्फोट में दो मजदूरों की मौत हो गई थी और दो अन्य घायल हो गए थे. इससे पहले साल 2007 में डिपो में कई विस्फोटों में 20 लोग मारे गए थे.
एक अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि सेना के बारूद डिपो का विस्तार वन्यजीवों के आवास में अतिक्रमण करेगा और जंगल को भी प्रभावित करेगा.
जम्मू कश्मीर में सशस्त्र बलों द्वारा किए गए अन्य भूमि अधिग्रहण में जम्मू में 20.5 हेक्टेयर वन भूमि, जो कि सांबा जिले में एक सेना डिपो के विस्तार के लिए है और जम्मू के सुंजवां में बाहु संरक्षण रिजर्व का 9.4 हेक्टेयर भूमि, जिसे भारतीय वायु सेना को ट्रांसफर कर दिया गया है, शामिल है.
इसके अलावा जम्मू में हेलीपैड के निर्माण के लिए कुछ अतिरिक्त भूमि ली गई है.
इस मामले को लेकर द वायर द्वारा संपर्क किए जाने पर जम्मू कश्मीर के आयुक्त सचिव (वन) संजीव वर्मा ने जम्मू कश्मीर के प्रधान मुख्य वन संरक्षक मोहित गेरा से संपर्क करने को कहा, जिन्होंने वन भूमि को लेकर कुछ भी बताने से इनकार कर दिया.
वैसे तो भारत सरकार ने लगातार कहा है कि जम्मू कश्मीर का वन क्षेत्र बढ़ रहा है, लेकिन स्वतंत्र विशेषज्ञों ने सरकार द्वारा अपनाई गई ‘त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली’ का हवाला देते हुए इन अनुमानों को खारिज किया है.
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू कश्मीर में वन क्षेत्र साल 2017 की तुलना में 370 वर्ग किमी बढ़ गया है, लेकिन खुद सरकार के ही विशेषज्ञ इन आंकड़ों पर सवाल उठाते हैं.
शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के एक फैकल्टी सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इसमें से 300 वर्ग किमी से अधिक की वन क्षेत्र बढ़ोतरी पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर में हुई है.
वन भूमि हस्तांतरण का उपरोक्त आंकड़ा, उस 65.5 एकड़ भूमि के ‘अलावा’ है, जिसे हाल ही में कश्मीर घाटी में केंद्रीय रिजर्व अर्धसैनिक बलों (सीआरपीएफ) के 10 स्थायी ठिकानों की स्थापना के लिए स्थानांतरित किया गया था.
इनके अलावा केंद्रशासित प्रदेश की सैकड़ों हेक्टेयर वन भूमि को गैर-वन कार्यों के लिए दिया जा रहा है. इसमें जम्मू में 9,167 करोड़ रुपये की ऊझ बहुउद्देशीय परियोजना के निर्माण के लिए 680 हेक्टेयर वन भूमि दी जाएगी, जिसके कारण दो लाख से अधिक पेड़ काटे जाएंगे और 52 गांव प्रभावित होंगे और 3,700 से अधिक परिवार विस्थापित होंगे. इस प्रोजेक्ट को इसी साल फरवरी में मंजूरी मिली थी.
इसके अलावा जम्मू कश्मीर प्रशासन बारिश से वंचित जम्मू क्षेत्र के रायका में 40 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि पर कब्जा करने के लिए तैयार है. जम्मू के एक पर्यावरण कार्यकर्ता अनमोल अहरी ने कहा कि जमीन स्थानीय लोगों की सहमति के बिना हस्तांतरित की गई है, जो कई दशकों से रायका के जंगल पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर हैं.
अहरी ने कहा कि इन भूमि अधिग्रहणों में एक सुसंगत पैटर्न नजर आता है. स्थानीय प्रशासन द्वारा इन प्रस्तावों को मंजूरी देने से पहले दशकों से इन क्षेत्रों में रहने वाली पंचायत समितियों या स्थानीय लोगों से परामर्श करने की स्थापित प्रक्रियाओं का पालन करने से इनकार कर दिया गया है.
हालांकि जम्मू कश्मीर प्रशासन ने अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 को लागू करने का दावा किया है, लेकिन ये दावे इस केंद्रशासित राज्य में जमीनी हकीकत के उलट हैं, जहां निर्वाचित सरकार की अनुपस्थिति में जंगलों को बड़े पैमाने पर कथित तौर पर अतिक्रमण के अधीन किया जा रहा है.
रायका में हाशिये पर रह रहे करीब 50 परिवारों के इस समुदाय, जिसमें लगभग 200 लोग शामिल हैं, अपनी आजीविका के लिए जंगल पर निर्भर हैं और अब बेदखली के खतरे का सामना कर रहे हैं. यहां के निवासियों द्वारा द वायर के साथ साझा किए गए दस्तावेज सुझाव देते हैं कि वे 1950 के दशक से यहां रह रहे हैं.
रायका के सरपंच हफीजुल्ला ने द वायर को बताया, ‘प्रशासन ने हमें भूमि हस्तांतरण के बारे में नहीं बताया. मेरे पास दर्जनों आदिवासी निवासियों के दस्तावेज हैं, जो वन अधिकार अधिनियम के तहत अपनी जमीन का पंजीकरण कराने की मांग कर रहे हैं, लेकिन हमारी कोई नहीं सुन रहा है. मैंने कई बार अधिकारियों के साथ बैठक में इस मुद्दे को उठाया है.’
रायका निवासी जमात अली ने कहा कि पारंपरिक भूमि से जबरन बेदखली और बेदखली की संभावना ने यहां निवासियों को तब से परेशान कर रखा है, जब से उन्होंने भूमि हस्तांतरण के बारे में जाना है.
उन्होंने कहा, ‘हमें लगता है कि हमारे सिर पर लगातार तलवार लटकी हुई है. हम कई पीढ़ियों से इस धरती पर जीते और मरते आ रहे हैं. सरकार हमें वह देने के बजाय जो हमारा हक है, हमें हमारी जमीन से वंचित करने के लिए अवैध काम कर रही है.’
इसके अलावा जम्मू कश्मीर प्रशासन ने कम से कम 56 हेक्टेयर भूमि सड़क निर्माण और विस्तार परियोजनाओं के लिए, 11 हेक्टेयर जमीन बिजली विकास परियोजनाओं, दूरसंचार बुनियादी ढांचे के विकास और जल आपूर्ति संबंधित परियोजनाओं के लिए हस्तांतरित किया है.
जम्मू विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर अवतार सिंह ने कहा, ‘वन क्षेत्र की कमी से पारिस्थितिक और सूक्ष्म जलवायु परिवर्तन होते हैं, जो न केवल मानव आवास बल्कि वन्यजीवों को भी प्रभावित करते हैं. वनों की व्यापक कटाई से जलवायु परिवर्तन होता है.’
उन्होंने कहा, ‘एक पौधे को पूर्ण विकसित वृक्ष बनने में वर्षों लग जाते हैं. जब तक यह परिवर्तन हासिल होता है, तब तक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बहुत देर हो चुकी होगी.’
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