बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि बच्चों को किशोर न्याय क़ानून के तहत देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है.
मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह राज्य की सभी जेलों में बंद महिला क़ैदियों और विचाराधीन महिला बंदियों के साथ रहने वाले बच्चों की समुचित परवरिश का इंतज़ाम करने के संबंध में फैसला करे.
इस मामले पर सप्ताह की शुरुआत में हुई सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-देरे की विशेष पीठ ने राज्य से कहा कि वह पांच अक्टूबर से पहले-पहले सभी संबंधित विभागों और पक्षकारों की बैठक बुलाएं और इस संबंध में मुद्दों और प्रस्तावित क़दमों पर विचार करें.
उच्च न्यायालय ने कारागार सुधार से संबंधित सभी मुक़दमों की सुनवाई और निपटारे के लिए इस पीठ का गठन किया था.
इस पीठ को क़ानून के साथ संघर्ष में फंसे बच्चों के साथ-साथ ऐसे बच्चों को भी देखना है जिन्हें किशोर न्याय क़ानून के तहत देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है.
राज्य की ओर से पेश हुए वकील हितेन वेनेगांवकर ने अदालत को बताया कि उच्च न्यायालय के साल 2014 के निर्देशों के अनुसार, सरकार कारागार सुधार के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन कर चुकी है.
उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाले पैनल को कारागारों के आधुनिकीकरण, क्षमता से ज़्यादा कैदियों को रखे जाने और राज्य के साल 2016 के जेल मैन्युअल के सभी प्रावधानों को लागू करने आदि पर काम करने की ज़िम्मेदारी दी गई है.
वेनेगांवकर ने कहा, यह समिति अपनी अगली बैठक सात अक्टूबर को करेगी. उन्होंने कहा, मैन्युअल के अनुसार, महिला क़ैदियों के बच्चों के लिए क्रेच या विशेष कमरे मुहैया कराने का प्रावधान है. यह प्रावधान महिलाओं के साथ रहने वाले या उनसे मिलने वाले, दोनों ही बच्चों पर लागू होता है.
साल 2015 में राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार भारतीय जेलों में 17,834 महिला क़ैदी बंद हैं. इन आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा 3,533 महिला क़ैदी, महाराष्ट्र में 1,336, मध्य प्रदेश में 1,322, पंजाब में 1135 और बिहार में 891 महिला क़ैदी हैं.
2015 के इन आंकड़ों के अनुसार, 374 दोषी महिला क़ैदियों के 450 बच्चे और 1,149 विचाराधीन महिला बंदियों के 1,310 बच्चे देश की अलग-अलग जेलों में रह रहे हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)