विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने न्याय मिलने में देरी पर चिंता व्यक्त की और कहा कि इसकी वजह से लोग क़ानून अपने हाथ में लेते हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने बीते शुक्रवार को कहा कि फर्जी मुठभेड़ों के लिए कोई जगह नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘फर्जी मुठभेड़ों के लिए कोई जगह नहीं है. सरकार अपने लोगों के प्रति जवाबदेह है.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए जस्टिस मिश्रा ने न्यायपालिका में देरी पर चिंता व्यक्त की.
जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘न्याय में देरी के कारण लोग कानून अपने हाथ में लेते हैं. कानून के शासन के लिए त्वरित न्याय की आवश्यकता है. आयोग यह सुनिश्चित करेगा कि राज्य के कार्यालय मानवाधिकारों की जिम्मेदारियों का पालन करें, कल्याण के लिए बनाए गए कानूनों और नीतियों का पालन हो और उनका मजाक न बनाया जाए.’
जस्टिस मिश्रा ने यह भी कहा कि नकारात्मकता मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक रूप है, जो भय और संकट का कारण बनती है. उन्होंने कहा, ‘व्यक्ति के विकास और देश के विकास के लिए सकारात्मकता का विकास जरूरी है.’
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद थे. उन्होंने कहा कि व्यक्तियों के अधिकार ‘बिना शर्त के’ नहीं हैं, लेकिन उन्हें सामाजिक संदर्भ के साथ जोड़ा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.’
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि मानवाधिकारों की उन्नति एक पवित्र कर्तव्य है.
उन्होंने कहा, ‘हालांकि, मानवाधिकारों की वकालत सिर्फ कुछ लोगों का कार्य नहीं है. यह सभी का कर्तव्य है.’
Justice Mishra (Retd): India is the largest vibrant democracy globally, having unity in diverse religions, cultures, faiths and languages. The disparity in political, socioeconomic conditions of the nations and people call for different solutions.#HumanRightsDay @India_NHRC pic.twitter.com/0Z0I8jzpFC
— Bar & Bench (@barandbench) December 10, 2021
उन्होंने यह भी कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा जीवंत लोकतंत्र है, जो विविधता में एकता का जश्न मना रहा है. हमारे महान राष्ट्र ने दुनिया को ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ यानी ‘दुनिया एक परिवार है’ की अवधारणा दी है और साथ ही ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ यानी ‘सभी सुखी हों’ की अवधारणा भी दी है.
जस्टिस मिश्रा ने आगे कहा कि यह विश्वास कोविड-19 महामारी के दौरान भारत द्वारा वैश्विक बिरादरी को दी गई सहायता तथा वैक्सीन और दवाएं प्रदान करने में परिलक्षित होती है.
अपने भाषण में राष्ट्रपति ने हंसाबाई मेहता को भी याद किया, जो मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, मानवाधिकारों पर विश्व चार्टर का मसौदा तैयार करने में भारत की प्रतिनिधि थीं.
विश्व मानवाधिकार दिवस 1950 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा, यूडीएचआर के स्मरणोत्सव में वर्ष 1950 से हर साल 10 दिसंबर को मनाया जाता है.