नेशनल कॉन्फ्रेंस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने तीन प्रस्ताव पारित किए, जिनमें घाटी में प्रवासी कश्मीरी पंडितों की वापसी तथा पुनर्वास और उनके राजनीतिक सशक्तिकरण समेत कई आह्वान किया गए हैं. पार्टी प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि कश्मीरी पंडितों के ‘नस्ली सफाए’ के साज़िशकर्ताओं को कभी भी जम्मू कश्मीर नहीं मिलेगा.
जम्मू: नेशनल कॉन्फ्रेंस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने शनिवार को तीन प्रस्ताव पारित किए, जिनमें घाटी में प्रवासी कश्मीरी पंडितों की वापसी तथा पुनर्वास और उनके राजनीतिक सशक्तिकरण समेत कई आह्वान किया गए हैं.
ये प्रस्ताव जम्मू में पार्टी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला की अध्यक्षता में एक दिवसीय सम्मेलन की शुरुआत में पेश किए गए. इनमें समुदाय के मंदिरों और धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के लिए एक विधेयक पारित करने की भी मांग की गई.
ध्वनि मत से पारित ‘राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण’ इन प्रस्तावों को प्रस्तुत करते समय वरिष्ठ नेता अनिल धर ने कहा, ‘प्रवासी कश्मीरी पंडित समुदाय पिछले तीन दशकों से अपनी सम्मानजनक वापसी और पुनर्वास के लिए तरस रहा है. यह बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है.’
उन्होंने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस ही एकमात्र पार्टी है जो घाटी में पंडितों की वापसी और पुनर्वास सुनिश्चित कर सकती है.
उन्होंने कहा, ‘अब्दुल्ला को भारत सरकार का मार्गदर्शन करना चाहिए, जो आज तक इस दिशा में कोई प्रगति करने में विफल रही है. हमारे पास रोडमैप है और हम इसे केंद्र के साथ साझा करने के लिए तैयार हैं.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, पहले प्रस्ताव के बारे में बोलते हुए अनिल धर ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने अपनी स्थापना के बाद से राजनीतिक रूप से समुदाय को सही प्रतिनिधित्व दिया है.
उन्होंने कहा कि एक अन्य प्रस्ताव में ‘मंदिरों और धर्मस्थलों’ विधेयक को पारित करने की मांग की गई जो एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और समुदाय की लंबे समय से लंबित मांग है.
उन्होंने कहा, ‘संसद सदस्य होने के नाते हम नेशनल कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष से इस मुद्दे को उठाने और सरकार का ध्यान (विधेयक पारित करने के लिए) आकर्षित करने का अनुरोध करते हैं.’
नेशनल कॉन्फ्रेंस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष एमके योगी ने कहा कि अधिवेशन में महिलाओं सहित कश्मीरी पंडितों की भारी भीड़ उन लोगों के लिए आंखें खोलने वाली होनी चाहिए, जो यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि समुदाय पार्टी के साथ नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो पंडितों के सभी मुद्दों का समाधान कर सकती है.’
जम्मू कश्मीर कभी ‘नस्ली सफाए’ के साजिशकर्ताओं के साथ नहीं रहा: अब्दुल्ला
नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि विस्थापित कश्मीरी पंडितों को उनकी मातृभूमि पर लौटने से कोई नहीं रोक सकता है और उनके ‘नस्ली सफाए’ के साजिशकर्ताओं को कभी भी जम्मू कश्मीर नहीं मिलेगा.
उन्होंने हालांकि कहा कि घाटी में दोनों समुदायों के बीच राजनीतिक लाभ के लिए निहित स्वार्थों द्वारा वर्षों से जान-बूझकर फैलाई गई नफरत के कारण उनकी वापसी के लिए अभी उपयुक्त समय नहीं है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने पाकिस्तान के परोक्ष संदर्भ में कहा, ‘(कश्मीरी) मुसलमानों ने आपको आपके घरों से नहीं निकाला. इसके पीछे जो लोग थे उनकी सोच थी कि इस नस्ली सफाये से कश्मीर उनका हो जाएगा. मैं इस मंच से दोहराता हूं. भले ही आसमान और धरती मिल जाएं, जम्मू कश्मीर कभी उनका नहीं होगा.’
कश्मीरी पंडित 1990 के दशक की शुरुआत में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के मद्देनजर घाटी से पलायन कर गए थे.
जम्मू में नेशनल कॉन्फ्रेंस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन में प्रवासी पंडितों की एक सभा को संबोधित करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि समुदाय का इस्तेमाल एक राजनीतिक दल द्वारा वोट बैंक के रूप में किया जा रहा है, जो केवल इसके हमदर्द होने का दावा करता है.
किसी पार्टी का नाम लिए बगैर अब्दुल्ला ने कहा, ‘आपको सिर्फ वोट बैंक मानने वालों ने आपसे बड़े-बड़े वादे किए थे. उन्होंने एक भी वादा पूरा नहीं किया.’
कश्मीरी पंडितों के साथ अपने लंबे जुड़ाव को याद करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि दिलों में जो नफरत है, उसे दूर करने की जरूरत है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता ने कहा, ‘हमें उन लोगों की पहचान करनी होगी जो हमें अपने छोटे राजनीतिक हितों के लिए विभाजित करना चाहते हैं. हमारी संस्कृति, भाषा और जीने का तरीका एक ही है और हम एक हैं. मैंने कभी हिंदू और मुस्लिम के बीच अंतर नहीं किया.’
पंडितों के पलायन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘कोई भी (पूर्व राज्यपाल) जगमोहन का नाम नहीं लेना चाहता जिन्होंने (उनके पलायन के लिए) परिवहन की व्यवस्था की और दो महीने के भीतर उनकी वापसी सुनिश्चित करने का वादा किया था. इसके बजाय मुझ पर आरोप लगाए गए.’
उन्होंने कहा, ‘मैं अपने अल्लाह से प्रार्थना कर रहा हूं कि वह तब तक मुझे नहीं उठाए जब तक मैं उन पुराने दिनों की वापसी नहीं देख लेता, जब घाटी में सांप्रदायिक सद्भाव और शांतिपूर्ण माहौल था और लोग अपनी पहचान दिखाने के लिए कहे बिना स्वतंत्र रूप से आवागमन करते थे.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)