सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पहाड़ी राजमार्गों की चौड़ाई को लेकर दिए गए सितंबर 2020 के अपने आदेश में संशोधन करते हुए चारधाम राजमार्ग परियोजना को मंज़ूरी दी. सड़क निर्माण से होने वाली पर्यावरणीय दिक्कतों से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि अदालत परियोजना की न्यायिक समीक्षा में सशस्त्र बलों की बुनियादी ज़रूरत का अनुमान नहीं लगा सकती.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते मंगलवार को उत्तराखंड में सामरिक रूप से अहम चारधाम राजमार्ग परियोजना के तहत बन रहीं सड़कों को दो लेन तक चौड़ी करने की मंजूरी दे दी. इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि देश की सुरक्षा चुनौतियां समय के साथ बदल सकती हैं तथा हाल के समय में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम सेठ की पीठ ने कहा कि अदालत न्यायिक समीक्षा में सशस्त्र बलों की बुनियादी जरूरत का अनुमान नहीं लगा सकती.
पीठ ने इसके साथ कहा कि वह निगरानी के लिए जस्टिस (सेवानिवृत्त) एके सीकरी की अध्यक्षता में समिति गठित कर रही है, जो सीधे न्यायालय को परियोजना के संदर्भ में रिपोर्ट देगी.
लगभग 900 किलोमीटर लंबी चारधाम सड़क परियोजना सामरिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है, जिसकी लागत करीब 12 हजार करोड़ रुपये आने का अनुमान है. इस परियोजना का उद्देश्य उत्तराखंड स्थित चार पवित्र धामों- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को हर मौसम में संपर्क प्रदान करना है.
भारत और चीन की सेनाओं के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर कई क्षेत्रों में जारी गतिरोध के बीच न्यायालय के इस फैसले का काफी महत्व है.
केंद्र ने पूर्व में शीर्ष अदालत से कहा था कि अगर सेना मिसाइल लॉन्चर और भारी मशीनरी ही उत्तरी भारत-चीन सीमा तक नहीं ले जा सकेगी तो लड़ाई होने पर रक्षा कैसे करेगी.
पीठ ने 83 पन्नों के फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि निगरानी समिति नए पर्यावरण आकलन पर विचार नहीं करेगी. शीर्ष अदालत ने कहा कि निगरानी समिति को रक्षा मंत्रालय, सड़क परिवहन मंत्रालय, उत्तराखंड सरकार और सभी जिलाधिकारियों का पूरा सहयोग प्राप्त होगा.
निगरानी समिति में राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान और वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के प्रतिनिधि भी होंगे. केंद्र द्वारा अंतिम अधिसूचना दो सप्ताह के भीतर जारी की जाएगी.
न्यायालय ने पूर्व के आदेश में संशोधन का आग्रह करने वाली रक्षा मंत्रालय की याचिका पर निर्णय देते हुए कहा कि रक्षा मंत्रालय की अर्जी में कुछ भी दुर्भावनापूर्ण नहीं है और यह आरोप साबित नहीं हुआ कि इस आवदेन में मामले को प्रभावित करने या पिछले आदेश को बदलने की कोशिश की गई है.
गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सिटिजन फॉर ग्रीन दून ने सड़क के चौड़ीकरण कार्य के खिलाफ याचिका दायर की थी. एनजीओ ने कहा था कि सड़क को ‘डबल लेन’ नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह लोगों या सेना के हित में नहीं है और भूस्खलन के कारण लोगों के जीवन के लिए जोखिम उत्पन्न होगा.
रक्षा मंत्रालय द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि उसने ऋषिकेश से माणा, ऋषिकेश से गंगोत्री और टनकपुर से पिथौरागढ़ तक राष्ट्रीय राजमार्गों को चौड़ा करने की अनुमति दी है, जो सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए रणनीतिक फीडर सड़कें हैं.
पीठ ने कहा कि सरकार का विशेज्ञता प्राप्त निकाय, रक्षा मंत्रालय सशस्त्र बलों की परिचालन जरूरतों को लेकर फैसला करने के लिए अधिकृत है, जिनमें जवानों की आवाजाही की सुविधा के लिए बुनियादी जरूरत भी शामिल है.
अदालत ने कहा, ‘याचिकाकर्ता ने सेना प्रमुख की ओर से सैनिकों की आवाजाही के लिए पर्याप्त अवसंरचना (Infrastucture) को लेकर वर्ष 2019 में मीडिया में दिए गए साक्षात्कार का संदर्भ दिया है. हम रक्षा मंत्रालय के लगातार रुख के मद्देनजर मीडिया में दिए गए बयान पर भरोसा नहीं कर सकते हैं. रक्षा मंत्रालय द्वारा आकलन के आधार पर सुरक्षा चिंताएं समय के साथ बदल सकती हैं. हाल के समय में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं.’
शीर्ष अदालत ने कहा कि सशस्त्र बलों को वर्ष 2019 में मीडिया में दिए गए साक्षात्कार के नीचे नहीं रखा जा सकता, जैसे वह पत्थर पर लिखा फरमान हो.
चारधाम राजमार्ग परियोजना से हिमालीय क्षेत्र में भूस्खलन को लेकर जताई गई चिंता को दूर करने की कोशिश करते हुए सरकार ने कहा कि आपदा को रोकने के लिए सभी जरूरी उपाय किए जाएंगे. सरकार ने तर्क दिया कि देश के विभिन्न हिस्सों में भूस्खलन होता है और यह विशेष तौर पर सड़क निर्माण की वजह से नहीं है.
शीर्ष अदालत आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन का अनुरोध करने वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना को लेकर जारी 2018 के परिपत्र में निर्धारित सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर का पालन करने को कहा गया था. यह सड़क चीन (तिब्बत) की सीमा तक जाती है.
रक्षा मंत्रालय ने अपनी अर्जी में अदालत से पूर्व के आदेश में संशोधन करने का अनुरोध किया था और साथ ही यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि ऋषिकेश से माणा, ऋषिकेश से गंगोत्री और टनकपुर से पिथौरागढ़ के राजमार्ग को दो लेन में विकसित किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के निहितार्थ
सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार के फैसले का सार यह है कि इस फैसले के तहत एक चुनी हुई सरकार की रक्षा नीतियों पर सवाल उठाने से इनकार कर दिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार के अपने फैसले में पहाड़ी राजमार्गों की चौड़ाई को लेकर दिए गए सितंबर 2020 के अपने आदेश में संशोधन करते हुए चारधाम परियोजना को मंजूरी दी.
ऐसा कर सुप्रीम कोर्ट ने चारधाम परियोजना के गैर-सामरिक खंडों पर चौड़ी सड़कों की संभावना को खुला छोड़ते हुए पर्यावरणीय चिंतन और सुरक्षा जरूरतों के बीच नाजुक संतुलन बैठाने की बात कही.
अदालत ने उच्चाधिकार समिति (एचपीसी) की रिपोर्ट पर आधारित तर्कों को खारिज करते हुए कि आपदा से ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचने वाली, मध्यवर्ती सड़क की चौड़ाई ऐसी चौड़ी सड़कों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं, जो बार-बार अवरुद्ध हों या भूस्खलन का शिकार हों.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसकी न्यायिक समीक्षा में सशस्त्र बलों की बुनियादी जरूरतों के लिए दूसरा अनुमान नहीं लगाया जा सका.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने सितंबर 2020 के आदेश को संशोधित करते हुए कहा कि चारधाम परियोजना में कई पर्यावरणीय समस्याएं हैं. अदालत ने अगस्त 2019 में नियुक्त उच्चाधिकार समिति द्वारा सुझाए गए सभी सुझावों को लागू कर परियोजना के लिए चौड़ी सड़कों को मंजूरी दी.
अदालत का सिर्फ सामरिक खंडों पर सड़कों को चौड़ा करने के संशोधित फैसले से सरकार को उचित कानूनी कार्यवाही करने की स्वतंत्रता मिलेगी.
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा पहाड़ी राजमार्गों के लिए मार्च 2018 को जारी दिशानिर्देशों के आधार पर उच्चाधिकार समिति की सिफारिशों की वजह से अदालत ने सितंबर 2020 में चारधाम परियोजना के तहत सड़क की चौड़ाई को 5.5 मीटर (1.5 मीटर के फुटपाथ के साथ) तक सीमित कर दिया था.
नवंबर में रक्षा मंत्रालय इस मामले में शामिल हुआ और सड़कों को सात मीटर तक चौड़ा करने की मांग की.
अदालत ने सामरिक जरूरतों पर मंगलवार के अपने फैसले में कहा कि पर्यावरणीय विचार-विमर्श के विरुद्ध रक्षा के हितों को संतुलित करना उच्चाधिकार समिति के दायरे के बाहर था, जो दरअसल देश की रक्षा जरूरतों को आकलन, उसकी समीक्षा और उससे निपटने में सक्षम नहीं है.
शीर्ष अदालत ने इस बीच पर्यावरण सुरक्षा के महत्व पर जोर देते हुए यह भी कहा कि परियोजना को पर्यावरण अनुकूल बनाने को विकास पथ पर ‘चेकबॉक्स’ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे सतत विकास के मार्ग के रूप में देखा जाना चाहिए.
इसने कहा, ‘अपनाए गए उपाय अच्छी तरह से सोचे-समझे होने चाहिए और वास्तव में परियोजना से जुड़ीं विशिष्ट चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए. जाहिर है, यह परियोजना को महंगा बना सकता है, लेकिन यह पर्यावरणीय नियम के ढांचे के और सतत विकास के दायरे में काम नहीं करने का वैध औचित्य नहीं हो सकता है.’
अदालत के फैसले में कहा गया, ‘ऐसे राजमार्गों का निर्माण जो रक्षा दृष्टि से सामरिक सड़कें हैं और जिनका इस्तेमाल देश की सेना द्वारा किया जा सकता है, वे अन्य पहाड़ी सड़कों के समान नहीं हो सकती.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)