अमेरिका के मैसाचुसेट्स स्थित डिजिटल फॉरेंसिक्स कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार क़ैदियों के अधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन के फोन को कई बार सफलतापूर्वक हैक किया गया था.
मुंबई: एक नई डिजिटल फॉरेंसिक रिपोर्ट के अनुसार, कैदियों के अधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन को छह जून, 2018 को गिरफ्तार किए जाने से करीब एक साल पहले तक उनकी निगरानी की गई थी और उनके सिस्टम को हैक कर उसमें उन्हें आरोपी ठहराने वाले दस्तावेज प्लांट किए गए थे.
मूल रूप से केरल के रहने वाले और दिल्ली में सामाजिक रूप से सक्रिय रोना विल्सन एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार होने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों में से एक हैं.
अमेरिका के मैसाचुसेट्स स्थित डिजिटल फॉरेंसिक्स कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग (Arsenal Consulting) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, विल्सन के एप्पल फोन को न सिर्फ इजरायल स्थित एनएसओ ग्रुप (के पेगासस स्पायवेयर) द्वारा निगरानी के लिए निशाना बनाया गया, बल्कि उनके फोन को कई बार सफलतापूर्वक हैक भी किया गया था.
एनएसओ ग्रुप यह मिलिट्री ग्रेड स्पायवेयर सिर्फ सरकारों को ही बेचता है. भारत सरकार ने पेगासस की खरीद को लेकर न तो इनकार किया है और न ही स्वीकार किया है.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम, जिसमें द वायर भी शामिल था, ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे संभावित निशाने पर थे.
इस कड़ी में 18 जुलाई से द वायर सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थी, जिनकी पेगासस स्पायवेयर के जरिये निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे.
फ्रांस स्थित मीडिया फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब के सहयोग से किए गए इन खुलासों में विल्सन का भी नंबर शामिल था, जो कि पेगासस स्पायवेयर के निशाने पर थे.
चूंकि विल्सन साल 2018 के मध्य से ही जेल में हैं और उनका फोन तथा लैपटॉप राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की कस्टडी में है, इसलिए उनके फोन की फॉरेंसिक जांच नहीं पाई थी.
आर्सेनल कंसल्टिंग ने कहा है कि उन्होंने विल्सन के फोन पर पेगासस के निशान पाए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है पेगासस के ये निशान पांच जुलाई 2017 से 10 अप्रैल 2018 के बीच के हैं.
अमेरिकी फर्म ने एमनेस्टी की तकनीक का ही इस्तेमाल कर ये निष्कर्ष निकाला है. उसने कहा कि विल्सन के ‘आईफोन 6एस’ में न सिर्फ पेगासस से हमला, बल्कि सफलतापूर्वक पेगासस 3 स्पायवेयर डालने के प्रमाण मिले हैं.
इसे लेकर एनएसओ ग्रुप के प्रवक्ता ने कहा है कि इस जांच में लगाए गए आरोप स्पष्ट नहीं हैं.
उसने कहा, ‘जब एक लोकतांत्रिक देश कानूनी रूप से उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए एक (लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित) सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयास में संदिग्ध व्यक्ति की जांच के लिए उपकरणों का उपयोग करता है तो इसे किसी भी तरह से ऐसे उपकरणों का दुरुपयोग नहीं माना जाएगा.’
एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब की टेक्नोलॉजिस्ट एटिएन्ने मेनियर (Etienne Maynier) ने आर्सेनल कंसल्टिंग के निष्कर्षों की पुष्टि की.
उन्होंने द वायर से कहा, ‘हमने रोना विल्सन के आईफोन बैकअप डेटा, जो कि उनकी लीगल टीम द्वारा आर्सेनल कंसल्टिंग के साथ साझा किया गया था, की समीक्षा की है. रोना विल्सन के आईफोन के साथ एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर द्वारा जुलाई 2017 और फिर फरवरी और मार्च 2018 में छेड़छाड़ की गई थी. इस दौरान उन्हें 15 एसएमएस लिंक से निशाना बनाया गया, जिस पर क्लिक करने के चलते उनका फोन हैक किया गया.’
इस फॉरेंसिक फर्म ने रोना विल्सन को लेकर यह तीसरी रिपोर्ट है. इससे पहले की दो रिपोर्ट- आठ फरवरी 2021 और 27 मार्च 2021 को प्रकाशित हुई थीं.
फरवरी महीने में आर्सेनल कंसल्टिंग ने बताया था कि एक साइबर हमले में उनके लैपटॉप को कथित तौर पर हैक किया गया था और कम से कम दस ‘आपराधिक’ चिट्ठियां इसमें प्लांट की गई थीं.
रिपोर्ट में उन पत्रों की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं, जिनके आधार पर 2018 में जांच एजेंसियों ने एल्गार परिषद मामले में विल्सन सहित 16 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था.
इस फर्म से विल्सन के वकीलों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक सबूतों की जांच के लिए पिछले साल जुलाई में संपर्क किया गया था. मामले की जांच की शुरुआत स्थानीय पुणे पुलिस ने की थी, लेकिन बाद में राज्य में भाजपा की सरकार गिरने के बाद जनवरी 2020 में इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गई थी.
रोना विल्सन लंबे समय से दिल्ली में अधिकार कार्यकर्ता रहे हैं. विश्वविद्यालय राजनीति और बहुजन एवं अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों के खिलाफ भेदभाव जैसे मामलों में उनकी काफी रुचि रही है. इसलिए उन्हें इसी तरह के मैसेजेस से निशाना बनाया गया था.
उनका ध्यान खींचने के लिए 31 अगस्त 2017 को ऐसा ही एक मैसेज, ‘Missing Najeeb, seat cuts to dictate JNUSU elections. Read more at [link]’ उन्हें भेजा गया था.
चार दिनों के भीतर गुजरात के ऊना में कथित गोरक्षकों द्वारा किए गए हमलों के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करने वाला एक और मैसेज उनके फोन पर भेजा गया.
इसमें लिखा था, ‘Justice to Dalit victims of Una-Gujarat. Ban Cow protection groups in India. Express solidarity & sign: [link].’
31 जनवरी 2018 को भेजे गए एक अन्य मैसेज में लिखा था: ‘JNU Chronicles: Real-life tales of love jihad from JNU, the citadel of Indian Marxism. Read details here: [link]’
विल्सन, जीएन साईबाबा रिहाई को लेकर बनी एक 17 सदस्यीय समिति का मुख्य हिस्सा थे. इसलिए आठ अक्टूबर 2017 को इसी से मिलता-जुलता एक मैसेज उन्हें भेजा गया, जिसमें लिखा था, ‘Free Dr Saibaba and Oppose the suppression of Dissent in India. Please sign the petition here clicking [link]’
मालूम हो कि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा को प्रतिबंधित माओवादी संगठन के साथ कथित संबंधों के आरोप में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की कई धाराओं के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
करीब 90 फीसदी से अधिक शारीरिक अक्षमता के कारण साईबाबा को जेल में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, लेकिन निचली अदालत और उच्च न्यायपालिका दोनों द्वारा कई बार उन्हें जमानत से इनकार किया गया है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब की टेक्नोलॉजिस्ट एटिएन्ने मेनियर ने कहा कि वैसे तो ये सारे मैसेजेस विल्सन के फोन को निशाना बनाने के लिए भेजे गए थे, हालांकि ये स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आखिर किसकी सहायता से उनके फोन पेगासस सफलतापूर्वक डाला गया था.
उन्होंने कहा कि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है कि उन्होंने इन मैसेजेस के लिंक पर क्लिक किया था.
विल्सन के फोन पर पेगासस हमला उनके करीबी दोस्त सैयद अब्दुल रहमान गिलानी, जिनका अक्टूबर 2019 में निधन हो गया था, जैसा ही था. गिलानी के फोन पर भी इसी तरह कई मैसेजेस भेजे गए थे. चूंकि वे कश्मीर के थे, इसलिए उन पर कश्मीर से जुड़े मैसेजेस भेजे गए थे.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)