प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते 15 दिसंबर को बाल विवाह (रोकथाम) अधिनियम, 2006 में संशोधन को मंज़ूरी दी थी. इस संशोधन के तहत लड़कियों के विवाह की न्यूनतम क़ानूनी आयु को 18 साल से बढ़ाकर पुरुषों के समान 21 साल करने का प्रावधान है.
नई दिल्ली: सरकार ने शुक्रवार को संसद में यह घोषणा की कि लड़कियों के विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु को 18 साल से बढ़ाकर पुरुषों के समान 21 साल करने संबंधी विधेयक और चुनाव सुधार विधेयक अगले सप्ताह लोकसभा में पेश किए जाएंगे.
लोकसभा में संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अगले सप्ताह सदन में होने वाले सरकारी कामकाज की जानकारी देते हुए यह घोषणा की.
उन्होंने कहा कि बाल विवाह (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2021 तथा चुनाव अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2021 को अगले सप्ताह पेश करने के बाद चर्चा कर पारित किया जाएगा.
राज्यसभा में संसदीय कार्य राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने इस आशय की जानकारी देते हुए कहा कि बाल विवाह (रोकथाम) संशोधन विधेयक को लोकसभा में पेश करने और पारित करने के बाद इसे उच्च सदन में चर्चा एवं पारित करने के लिए रखा जाएगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते 15 दिसंबर को बाल विवाह (रोकथाम) अधिनियम, 2006 में संशोधन को मंजूरी दी थी. इस संशोधन के तहत लड़कियों के विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु को 18 साल से बढ़ाकर पुरुषों के समान 21 साल करने का प्रावधान है.
मौजूदा कानूनी प्रावधान के तहत लड़कों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल निर्धारित है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, यह निर्णय समता पार्टी की पूर्व प्रमुख जया जेटली के नेतृत्व वाले एक टास्क फोर्स की सिफारिश पर आधारित है.
जेटली ने कहा था, ‘अगर हम हर क्षेत्र में लैंगिक समानता और लिंग सशक्तिकरण के बारे में बात करते हैं, तो हम शादी को नहीं छोड़ सकते क्योंकि यह एक बहुत ही अजीब संदेश है कि एक लड़की 18 साल की उम्र में शादी के लिए फिट हो सकती है, जो उसके कॉलेज जाने के अवसर को कम कर देती है, जबकि पुरुषों के पास जिंदगी और कमाई के लिए तैयार होने के लिए 21 वर्ष तक का समय है.’
जेटली ने कहा कि टास्क फोर्स ने पिछले साल दिसंबर में प्रधानमंत्री कार्यालय, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और नीति आयोग को अपनी सिफारिशें सौंपी थीं.
समिति में नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) वीके पॉल, शिक्षाविद नजमा अख्तर, वसुधा कामत और दीप्ति शाह के अलावा उच्च शिक्षा, स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला और बाल विकास, विधायी विभागों के सचिव आदि शामिल थे.
रिपोर्ट के अनुसार, अगर संसद द्वारा इस विधेयक को पारित किया जाता है तो महिलाओं के लिए संशोधित न्यूनतम आयु में 1954 के विशेष विवाह अधिनियम, 1955 हिंदू विवाह अधिनियम, 1872 भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1936 पारसी विवाह और तलाक अधिनियम सहित अन्य कानूनों में संशोधन की आवश्यकता होगी.
इसके साथ ही विरासत, भरण-पोषण और तलाक के कानूनों में भी संशोधन करने की आवश्यकता हो सकती है.
जेटली ने कहा कि पैनल ने युवा लोगों के साथ यह आकलन किया और पाया कि लगभग सभी सहमत हैं. उन्होंने कहा, ‘हमें लड़की को कमाने का मौका देना चाहिए और यह एक पुरुष के बराबर होना चाहिए और वह 18 साल में बराबर नहीं हो सकती, जब आदमी के पास ऐसा करने के लिए 21 साल हो.’
वहीं, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते 15 दिसंबर को चुनाव सुधार संबंधी विधेयक को भी मंजूरी दी थी, जिसमें स्वैच्छिक रूप से मतदाता सूची से आधार को जोड़ने की निर्वाचन आयोग को अनुमति देने का प्रस्ताव शामिल है.
मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर विधेयक के मुताबिक, चुनाव संबंधी कानून को सैन्य मतदाताओं के लिए लैंगिक निरपेक्ष बनाया जाएगा.
वर्तमान चुनावी कानून के प्रावधानों के तहत, किसी भी सैन्यकर्मी की पत्नी को सैन्य मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की पात्रता होगी, लेकिन महिला सैन्यकर्मी के पति को नहीं होगी. लेकिन इस प्रस्तावित विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने पर स्थितियां बदल जाएंगी.
निर्वाचन आयोग ने विधि मंत्रालय से जन प्रतिनिधित्व कानून में सैन्य मतदाताओं से संबंधित प्रावधानों में ‘पत्नी’ शब्दावली को बदलकर ‘स्पाउस’ (जीवनसाथी) करने को कहा था.
इसके तहत एक अन्य प्रावधान में युवाओं को मतदाता के रूप में प्रत्येक वर्ष चार तिथियों को पंजीकरण कराने की अनुमति देने की बात कही गई है. अभी एक जनवरी या उससे पहले 18 वर्ष के होने वालों को मतदाता के रूप में पंजीकरण की अनुमति दी जाती है.
भारत निर्वाचन आयोग पात्र लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की अनुमति देने के लिए कई ‘कट ऑफ तारीख’ की वकालत करता रहा है.
आयोग ने सरकार को बताया था कि एक जनवरी की ‘कट ऑफ तिथि’ के कारण मतदाता सूची की कवायद से कई युवा वंचित रह जाते थे. केवल एक ‘कट ऑफ तिथि’ होने के कारण 2 जनवरी को 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले व्यक्ति पंजीकरण नहीं करा पाते थे और उन्हें पंजीकरण कराने के लिए अगले वर्ष का इंतजार करना पड़ता था.
विधि एवं न्याय मंत्रालय ने हाल ही में संसद की एक समिति को बताया था कि उसका जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 14बी में संशोधन का प्रस्ताव है, ताकि पंजीकरण के लिए हर वर्ष चार ‘कट ऑफ तिथि’ एक जनवरी, एक अप्रैल, एक जुलाई तथा एक अक्टूबर शामिल की जा सकें.
उल्लेखनीय है कि संसद का मौजूदा शीतकालीन सत्र 23 दिसंबर तक चलने का कार्यक्रम है और आज के बाद कुल चार बैठक निर्धारित हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)