पीएमओ के चुनाव सुधारों पर चुनावों आयुक्तों के साथ बातचीत पर विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधा

चुनाव आयोग को बीते 15 नवंबर को क़ानून मंत्रालय की ओर से एक पत्र मिला था, जिसमें कहा गया था कि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा एकल मतदाता सूची को लेकर एक बैठक लेने वाले हैं और चाहते हैं कि इसमें ‘मुख्य चुनाव आयुक्त’ मौजूद रहें. यह पत्र बहुत ही असामान्य था, क्योंकि चुनाव आयोग आमतौर पर अपने कामकाज की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए सरकार से दूरी बनाए रखता है.

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(फोटो साभार: विकिपीडिया)

चुनाव आयोग को बीते 15 नवंबर को क़ानून मंत्रालय की ओर से एक पत्र मिला था, जिसमें कहा गया था कि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा एकल मतदाता सूची को लेकर एक बैठक लेने वाले हैं और चाहते हैं कि इसमें ‘मुख्य चुनाव आयुक्त’ मौजूद रहें. यह पत्र बहुत ही असामान्य था, क्योंकि चुनाव आयोग आमतौर पर अपने कामकाज की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए सरकार से दूरी बनाए रखता है.

मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा (मध्य), राजीव कुमार (बाएं) और अनूप चंद्र पांडे (दाएं) (फोटोः पीटीआई)

नई दिल्ली: मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) सुशील चंद्रा और चुनाव आयुक्तों-राजीव कुमार तथा अनूप चंद्र पांडे द्वारा प्रमुख चुनाव सुधारों को लेकर निर्वाचन आयोग एवं कानून मंत्रालय के बीच परस्पर समझ को समान बनाने के लिए हाल में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के साथ एक अनौपचारिक बातचीत करने का मामला सामने आया है.

दरअसल बीते 15 दिसंबर को चुनाव आयोग को कानून मंत्रालय (चुनाव आयोग का प्रशासनिक मंत्रालय) के एक अधिकारी से एक पत्र मिला था, जिसमें कुछ ‘असामान्य’ शब्दों का इस्तेमाल किया गया था.

इस पत्र में कहा गया था कि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा आम मतदाता सूची को लेकर एक बैठक की अध्यक्षता करने वाले हैं और चाहते हैं कि इसमें ‘मुख्य चुनाव आयुक्त’ मौजूद रहें.

यह पत्र ‘असामान्य’ इसलिए था, क्योंकि चुनाव आयोग आमतौर पर अपने कामकाज की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए सरकार से दूरी बनाए रखता है. बीते साल इसी विषय पर 13 अगस्त और तीन सितंबर को हुई बैठकों में चुनाव आयोग के अधिकारियों ने हिस्सा लिया था न कि चुनाव आयुक्तों ने.

इस घटनाक्रम के सामने आने के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए विपक्ष ने शुक्रवार को केंद्र की मोदी सरकार पर प्रहार किया और आरोप लगाया कि वह निर्वाचन आयोग से अपने मातहत जैसा व्यवहार कर रही है.

कांग्रेस महासचिव एवं मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि सरकार देश में संस्थाओं को नष्ट करने के मामले में और अधिक नीचे गिर गई है.

सुरजेवाला ने कहा, ‘चीजें बेनकाब हो गई हैं. अब तक जो बातें कही जा रही थीं वे सच हैं.’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘स्वतंत्र भारत में कभी नहीं सुना गया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा मुख्य निर्वाचन आयुक्त को तलब किया गया हो. निर्वाचन आयोग के साथ अपने मातहत के तौर पर व्यवहार करने से साफ है कि (नरेंद्र) मोदी सरकार हर संस्था को नष्ट करने के मामले में और भी नीचे गिर चुकी है.’

इस खबर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व मुख्य निवार्चन आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा, ‘यह बिल्कुल ही स्तब्ध कर देने वाला है.’ अपनी टिप्पणी को विस्तार से बताने का आग्रह किए जाने पर उन्होंने कहा कि उनके शब्दों में हर चीज का सार है.

इस बीच, कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने चुनाव सुधार पर पीएमओ में एक बैठक के लिए आयोग को तलब करने के मुद्दे पर शुक्रवार को लोकसभा में कार्यस्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया.

तिवारी ने नोटिस में निर्वाचन आयोग की स्वायत्ता पर सवाल खड़े किए. हालांकि लखीमपुर खीरी मामले पर हंगामे की वजह से निचले सदन की कार्यवाही स्थगित हो गई.

तिवारी ने कहा कि वह सोमवार को फिर से इस विषय पर कार्यस्थगन का नोटिस देंगे.

द्रमुक नेता टीआर बालू ने कहा कि निर्वाचन आयोग जैसे एक संवैधानिक प्राधिकार को तलब करना सरकार के वर्चस्ववादी रवैये को प्रदर्शित करता है और यह अलोकतांत्रिक है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में भाजपा के दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी (सपा) और बसपा ने भी शुक्रवार को इसे लेकर मोदी सरकार को निशाना साधा.

सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि उनकी पार्टी पीएमओ के साथ चुनाव आयोग की बातचीत के बारे में अधिक जानकारी मांगेगी.

ऑनलाइन बातचीत को चुनाव आयोग की निष्पक्षता और अखंडता पर एक बड़ा सवाल कहते हुए चौधरी ने कहा, ‘हम शुरू से ही कहते रहे हैं कि निष्पक्ष चुनाव कराना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है. यदि सरकारी दबाव में निष्पक्षता को भंग करने का कोई प्रयास किया जाता है, तो यह लोकतंत्र के खिलाफ है.’

लोकसभा में बसपा नेता रितेश पांडे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले को देखना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘अदालतों को चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर 1995 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले और कार्यपालिका से चुनाव आयोग के अलगाव के महत्व को देखते हुए कदम उठाना चाहिए.’

पांडे ने यह भी मांग की कि अब जब अनुचित और अभूतपूर्व आचरण हुआ है चुनाव आयोग और पीएमओ के बीच बैठक के ‘अनएडिटेड मिनट्स’ को सार्वजनिक जांच के लिए उपलब्ध कराया जाए.

बसपा सांसद कुंवर दानिश अली ने कहा कि वह इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘चुनाव आयोग पीएमओ के अधीनस्थ नहीं है. प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी चुनाव आयुक्तों को बैठक में भाग लेने का निर्देश कैसे दे सकते हैं? वह भी तब जब चुनाव (अगले साल की शुरुआत में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं.) करीब हैं.’

आयोग और पीएमओ के बीच बातचीत के औचित्य के बारे में पूछे जाने पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘यह अनौपचारिक बातचीत थी, बैठक नहीं. आयुक्तों ने चुनाव से संबंधित किसी भी मामले पर चर्चा नहीं की. यह सिर्फ चुनाव सुधारों के शीघ्र निपटान के लिए था.’

अली ने कहा कि सरकार चुनाव आयोग को लिख सकती थी और प्रस्तावित सुधारों पर अपनी दलीलें दे सकती थी और चुनाव आयोग तब सर्वदलीय बैठक बुला सकता था.

उन्होंने एक बार चुनाव आयुक्तों को बुलाने की मांग करने वाली एक संसदीय स्थायी समिति का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा, ‘लेकिन हमें बताया गया कि स्थायी समिति भी उन्हें नहीं बुला सकती.’

अली ने मोदी सरकार पर किसी भी स्वतंत्र संस्था को जीवित नहीं रहने देने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ‘वे हर स्वतंत्र संस्थान को ध्वस्त कर रहे हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)