दाभोलकर हत्याकांड: बेटे ने कहा- पिता को धमकियां मिलती थीं कि उन्हें ‘अगला गांधी बना दिया जाएगा’

महाराष्ट्र के अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता और तर्कवादी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त, 2013 को पुणे के ओंकारेश्वर पुल पर उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब वे सुबह की सैर के लिए निकले थे. इस मामले में सीबीआई ने पांच लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की है.

सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर. (फोटो: पीटीआई)

महाराष्ट्र के अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता और तर्कवादी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त, 2013 को पुणे के ओंकारेश्वर पुल पर उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब वे सुबह की सैर के लिए निकले थे. इस मामले में सीबीआई ने पांच लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की है.

सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर. (फोटो: पीटीआई)

पुणेः साल 2013 में अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता और तर्कवादी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के चल रहे मुकदमे के दौरान बीते 18 दिसंबर को उनके 46 वर्षीय बेटे डॉ. हमीद दाभोलकर ने एक गवाह के रूप में पुणे अदालत को बताया कि उनके पिता ने सनातन संस्था की गतिविधियों के संबंध में एक फाइल राज्य के आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) को सौंपी थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, हमीद ने अदालत को बताया कि उनके पिता को सनातन संस्था के दैनिक अखबार ‘सनातन प्रभात’ के जरिये धमकियां मिली थीं, जिनमें कहा गया था कि अगर उन्होंने अंधविश्वास उन्मूलन को लेकर काम जारी रखा तो ‘वह अगले गांधी होंगे’.

बता दें कि 67 वर्षीय दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को पुणे के ओंकारेश्वर मंदिर के पास एक पुल पर दो लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस मामले की सुनवाई अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जज एसआर नावंदर की विशेष अदालत द्वारा की जा रही है.

सीबीआई ने 2014 में इस मामले की जांच अपने हाथ में ली थी और पांच आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी. ये सभी आरोपी कथित तौर पर सनातन संस्था से जुड़े हुए थे.

इनमें ईएनटी सर्जन डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े, दो कथित हमलावर सचिन अंडुरे और शरद कलासकर, मुंबई के वकील संजीव पुनालेकर और उनके सहयोगी विक्रम भावे शामिल हैं. इनमें तावड़े, अंडुरे और कलासकर फिलहाल जेल में हैं, जबकि पुनालेकर और भावे जमानत पर बाहर हैं.

सतारा के मनोचिकित्सक हमीद बीते 18 दिसंबर को गवाह के रूप में अदालत के समक्ष पेश हुए और अभियोजक पक्ष और बचाव पक्ष दोनों ने उनसे पूछताछ की.

अभियोजन पक्ष के वकील प्रकाश सूर्यवंशी द्वारा उनसे पूछे गए सवालों के दौरान हमीद ने कहा, ‘अंधविश्वास उन्मूलन के क्षेत्र में मेरे पिता के कार्यों की वजह से ऐसे कई अवसर आए जब उनके और सनातन संस्था जैसे संगठनों के अधिकारियों ने उनका विरोध किया और उनके साथ बहस भी हुई.’

हमीद ने कहा, ‘सनातन संस्था, सनातन प्रभात के नाम से एक दैनिक अखबार का प्रकाशन करता था, जिसमें कई अवसरों पर मेरे पिता और उनके कार्यों के खिलाफ लेख प्रकाशित किए गए. इन लेखों में धमकी दी गई कि अगर वह अंधविश्वास उन्मूलन को लेकर अपना काम जारी रखते हैं तो उन्हें अगला गांधी बना दिया जाएगा.’

धमकियां मिलने के बाद दाभोलकर ने क्या किया, सूर्यवंशी के इस सवाल पर हमीद ने कहा, ‘मेरे पिता ने महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के जरिये सनातन संस्था के खिलाफ मुंबई में आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) के समक्ष एक फाइल सौंपी थी.’

उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता अंधविश्वास उन्मूलन में शामिल थे और सनातन संस्था जैसे संगठनों का विरोध करते थे. उन्होंने कड़े विरोध के बावजूद अपना काम जारी रखा और इसलिए सनातन संस्था जैसे संगठनों ने उनकी हत्या कर दी.’

बचाव पक्ष के वकीलों की एक टीम ने भी हमीद से जिरह की. इस टीम में प्रकाश सालसिंगिकर, वीरेंद्र इचलकरंजीकर और सुवर्णा अवध वस्त शामिल थे.

हमीद से अभियोजन पक्ष द्वारा पूछे गए सवालों के दौरान दिए गए उनके बयानों और बचाव पक्ष के वकीलों द्वारा उठाए गए बिंदुओं को लेकर उनसे पूछताछ की गई.

जब सालसिंगिकर ने उनसे एटीएस को सौंपी गई फाइल के बारे में पूछा और यह जानना चाहा कि क्या पुणे पुलिस या सीबीआई ने उनसे इसकी कॉपी मांगी थी? इस पर हमीद ने ‘नहीं’ में जवाब दिया.

हमीद ने इस सवाल का भी ‘नहीं’ में जवाब दिया कि क्या उन्हें इस बात की जानकारी थी कि किसी जांच एजेंसी ने जांच के तहत इस फाइल के कंटेंट की जानकारी मांगी थी?

बचाव पक्ष के वकीलों ने हमीद से दाभोलकर के महाराष्ट्र में एक स्वयंभू धर्मगुरु के साथ उनके विवाद और उनके सतारा के एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ असहमतियों के बारे में भी पूछा, जिनके साथ उन्होंने काम किया था और बाद में अलग हो गए थे.

बता दें कि दाभोलकर को इस स्वयंभू धर्मगुरु के अनुयायियों से भी धमकियां मिली थीं और 2000 की शुरुआत में उन्होंने उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी.

बचाव पक्ष के वकीलों ने हमीद से महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के प्रकाशन में छपे लेखों के खिलाफ दायर विभिन्न मानहानि के मामलों के बारे में भी पूछा. इसके साथ ही समिति को विभिन्न स्रोतों से मिली फंडिंग विशेष रूप से विदेशी फंडिंग और संगठन के वित्तीय लेन-देन के बारे में भी पूछा.

विशेष यूएपीए अदालत ने बीते 15 सितंबर को चार आरोपियों- डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े, सचिन अंडुरे, शरद कलासकर और विक्रम भावे के खिलाफ हत्या, हत्या की साजिश के साथ आतंकवाद से संबंधित यूएपीए की धारा 16 और हथियार का इस्तेमाल करने के लिए आर्म्स एक्ट के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप तय किए थे.

अदालत ने संजीव पुनालेकर पर मामले में सबूत नष्ट करने का भी आरोप तय किया. सभी पांचों आरोपियों ने आरोपों के लिए दोषी होने से इनकार किया था. सीबीआई ने बीते 14 अक्टूबर को अदालत के समक्ष 32 गवाहों की सूची पेश की थी, जिनसे सुनवाई के दौरान पूछताछ की जानी है.

इस मामले में विशेष सार्वजनिक अभियोजक अधिवक्ता प्रकाश सूर्यवंशी ने गवाहों की सूची सौंपते हुए कहा कि जरूरत पड़ने पर और गवाहों को शामिल किया जा सकता है.

गौरतलब है कि डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त, 2013 को पुणे के ओंकारेश्वर पुल में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. वे सुबह के सैर के लिए निकले थे. सीबीआई ने इस मामले में आठ लोगों को गिरफ्तार किया है और इनमें से पांच के खिलाफ आरोप-पत्र भी दाखिल किया है.

इस मामले में सीबीआई ने 2016 में सनातन संस्था के सदस्य ईएनटी सर्जन और कथित प्रमुख साजिशकर्ता डॉ. वीरेंद्र तावड़े को गिरफ्तार किया था. उसके बाद अगस्त 2018 में दो शूटरों- शरद कलासकर व सचिन प्रकाशराव अंडुरे को गिरफ्तार किया था, जिन्होंने कथित तौर पर दाभोलकर पर गोलियां चलाई थीं.

मई 2019 में मुबंई के सनातन संस्था के वकील संजीव पुनालेकर व उसके सहयोगी विक्रम भावे को गिरफ्तार किया गया था. इन पांचों के खिलाफ ही अब तक आरोप-पत्र दाखिल किया गया है.

सीबीआई ने तीन अन्य लोगों- अमोल काले, अमित दिगवेकर और राजेश बांगेरा को गिरफ्तार किया है, जो कि 2017 में हुई पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के भी आरोपी हैं.

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