भाजपा सांसद ने कहा, आतिथ्य सत्कार और शरण देने की अपनी परंपरा का पालन करते हुए हमें शरण देना जारी रखना चाहिए.
नई दिल्ली: भाजपा सांसद वरुण गांधी ने रोहिंग्या मुसलमानों को सुरक्षा आकलन के बाद भारत में शरण देने का समर्थन किया है.
इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केंद्रीय मंत्री हंसराज अहीर ने कहा कि जो लोग राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हों, उन्हें इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए.
एक हिंदी अखबार नवभारत टाइम्स में मंगलवार को संपादकीय पेज पर प्रकाशित अपने लेख में वरुण द्वारा अपना दृष्टिकोण व्यक्त करने के बाद अहीर ने आलोचना की.
अहीर के बयान के बाद वरुण ने ट्वीट किया कि उनका आलेख मुख्य रूप से भारत की शरण देने की नीति को परिभाषित करने पर केंद्रित था जिसमें इस बात को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया कि हम किस तरीके से शरणाथियों को स्वीकार करेंगे.
उन्होंने ट्वीट किया कि शरण देने को लेकर रोहिंग्या के लिए मैंने सहानुभूति से पेश आने को कहा लेकिन इससे पहले हर आवेदक के लिए वैध सुरक्षा चिंताओं का आकलन भी करना चाहिए.
वरुण के रुख की आलोचना करते हुए अहीर ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘जो देश के हित में सोचेगा वो इस तरह का बयान नहीं देगा. वरुण का बयान इस मुद्दे पर सरकार के रुख से अलग है.’
रोहिंग्या शरणार्थियों को अवैध प्रवासी बताते हुए सरकार ने हाल में उच्चतम न्यायालय से कहा था कि उनमें से कुछ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और आईएसआईएस जैसे आतंकी समूहों के नापाक मंसूबे का हिस्सा हैं, जो कि देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा पैदा करेंगे.
अपने लेख में वरुण ने क्या लिखा…
आज़ादी के बाद से करीब चार करोड़ शरणार्थी भारत की सीमा लांघ चुके हैं और अभी रोहिंग्याओं के बांग्लादेश पहुंचने के साथ ही हमारी सरहद पर एक और शरणार्थी संकट आ खड़ा हुआ है.
दुनिया में कुल 6.56 करोड़ लोगों को जबरन उनके देश से निकाल दिया गया है जिसमें 2.25 करोड़ लोगों को शरणार्थी माना गया है.
इसके अलावा एक करोड़ लोग और हैं जिन्हें राष्ट्रविहीन माना जाता है. इन्हें कोई भी राष्ट्रीयता हासिल नहीं है और ये लोग साफ-सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और साधिकार रोज़गार के बुनियादी अधिकारों से भी वंचित हैं.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) की रिपोर्ट के अनुसार संघर्ष और उत्पीड़न के कारण हर मिनट औसतन 20 लोग अपने घरों से बेघर किए जा रहे हैं.
बहुतेरे शरणार्थी विदेश नीति के नियम कायदों में उलझकर रह जाते हैं और संकीर्ण घरेलू राजनीति के चलते कई बार उन पर ध्यान नहीं दिया जाता.
इसके चलते भारत, नेपाल और श्रीलंका ने भारी संख्या में शरणार्थियों को शरण देने का ज़िम्मा उठाया है. यूएनएचआरसी की रिपोर्ट के अनुसार, अभी करीब दो लाख शरणार्थी (जिनमें सिर्फ 30 हजार पंजीकृत हैं) भारत में रहते हैं.
शरणार्थियों के मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की चौखट पर एक शरणार्थी क़ानून की मांग उठी है. सुप्रीम कोर्ट ने (खुदीराम चकमा बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य; राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य) शरणार्थी सुरक्षा के महत्व पर ज़ोर देते हुए व्यवस्था दी कि चकमा शरणार्थियों को मार दिए जाने या भेदभाव की संभावना को देखते हुए प्रत्यावर्तित नहीं किया जा सकता.
हमारा संविधान जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देते हुए आदेश देता है कि ‘राज्य बिना नागरिकता का भेद किए सभी इंसानों के जीवन की सुरक्षा करेगा’ (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, 2014).
शरणार्थियों के लिए निवास की व्यवस्था सबसे बड़ी समस्या है. दिल्ली में रहने वाले ज़्यादातर अफगानियों और म्यांमारियों को मकान मालिकों के भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
सोमालियाई शरणार्थी स्थानीय लोगों के भेदभाव का शिकार होते हैं. सरकारी स्कूलों में शरणार्थी बच्चों के साथ उत्पीड़न और भेदभाव सामान्य बात है.
ज़्यादातर म्यांमारी शरणार्थी कुछ गिने-चुने पेशों में लगे हैं, जहां वे काम की कठिन पस्थितियों का सामना करते हैं. कई शरणार्थी अच्छी शैक्षणिक योग्यता के बावजूद मान्यता और कामकाजी वीज़ा के अभाव में अच्छी नौकरी नहीं कर सकते.
जिन इलाकों में बड़ी संख्या में शरणार्थी हों, वहां तनाव और भेदभाव कम करने के लिए स्थानीय निकायों को आगे बढ़ कर मकान मालिकों और स्थानीय एसोसिएशनों को इनके प्रति संवेदनशील बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए.
शरणार्थी समुदायों के प्रति समर्थन, युवाओं के बीच वर्कशॉप में उनकी भागीदारी और महिला सशक्तीकरण के लिए उठाए कदमों से उनकी स्वीकार्यता की राह आसान होगी.
हमें म्यांमारी रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण जरूर देना चाहिए लेकिन इससे पहले वैध सुरक्षा चिंताओं का आकलन भी करना चाहिए. स्वाभाविक रूप से अधिकांश शरणार्थी अपने घर लौटना चाहेंगे.
हमें शांतिपूर्ण उपायों से अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए उन्हें स्वेच्छा से घर वापसी में मदद करनी चाहिए. आतिथ्य सत्कार और शरण देने की अपनी परंपरा का पालन करते हुए हमें शरण देना निश्चित रूप से जारी रखना चाहिए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)