गंगा मिशन के प्रमुख ने स्वीकार किया कि महामारी के बीच गंगा में लाशें फेंकी गई थीं

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा द्वारा लिखी गई एक किताब में गंगा पर पड़े महामारी के भयावह प्रभाव की व्याख्या की गई है. उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि नदी को बचाने के लिए पिछले पांच सालों में जो कार्य किए गए थे, उन्हें नष्ट किया जा रहा है. कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान शव मिलने की ख़बर पर यूपी सरकार की ओर से कहा गया था कि राज्य के कुछ क्षेत्रों में शवों को गंगा में प्रवाहित करने की परंपरा रही है.

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कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मई 2021 में इलाहाबाद के एक गंगा घाट पर दफ़न शव. (फोटो: पीटीआई)

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा द्वारा लिखी गई एक किताब में गंगा पर पड़े महामारी के भयावह प्रभाव की व्याख्या की गई है. उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि नदी को बचाने के लिए पिछले पांच सालों में जो कार्य किए गए थे, उन्हें नष्ट किया जा रहा है. कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान शव मिलने की ख़बर पर यूपी सरकार की ओर से कहा गया था कि राज्य के कुछ क्षेत्रों में शवों को गंगा में प्रवाहित करने की परंपरा रही है.

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मई 2021 में इलाहाबाद के एक गंगा घाट पर दफ़न शव. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा द्वारा लिखित एक किताब में इस बात की पुष्टि की गई है कि कोरोना वायरस महामारी की भयावह दूसरी लहर दौरान गंगा नदी में शव फेंके गए थे.

‘गंगा: रिइमेजनिंग, रेजुविनेटिंग, रिकनेक्टिंग’ (Ganga: Reimagining, Rejuvenating, Reconnecting) नामक इस किताब का सह-लेखन पुस्कल उपाध्याय ने किया है, जो कि एक आईडीएएस अधिकारी हैं और एनएमसीजी में काम किया है.

राजीव रंजन मिश्रा 1987-बैच के तेलंगाना-कैडर के आईएएस अधिकारी हैं और अपने दो कार्यकालों के दौरान पांच साल से अधिक समय तक उन्होंने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन में विभिन्न पदों पर काम किया है. वह 31 दिसंबर, 2021 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं.

उनकी इस किताब को बीते गुरुवार को प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय द्वारा लॉन्च किया गया.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इसके एक चैप्टर ‘Floating Corpses: A River Defiled’ में उन्होंने गंगा पर पड़े महामारी के भयावह प्रभाव की व्याख्या की है. उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि नदी को बचाने के लिए पिछले पांच सालों में जो कार्य किए गए थे, उन्हें नष्ट किया जा रहा है.

गंगा मिशन के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान जब मौतों की संख्या में कई गुना की वृद्धि होने लगी और श्मशान घाटों पर भीड़ लगने लगी, तो उत्तर प्रदेश और बिहार के गंगा घाट लाशों को नदी में फेंकने का आसान रास्ता बन गए थे.

हालांकि इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जिला प्रशासनों ने जो आंकड़े मुहैया कराए हैं, उससे पता चलता है कि नदी में ‘करीब 300 शव’ फेंके गए थे, न कि 1000 से अधिक, जैसा कि रिपोर्ट्स में बताया गया था.

मिश्रा ने किताब में लिखा, ‘मैं उस समय गुड़गांव स्थित मेदांता अस्पताल में कोविड-19 बीमारी से जूझ रहा था, जब मैंने मई महीने की शुरुआत में पवित्र गंगा में जली-सड़ी लाशों के तैरने की खबर सुनी थी.’

उन्होंने आगे कहा, ‘टेलीविजन चैनल, पत्रिकाएं, समाचार-पत्र और सोशल मीडिया साइट्स भयानक तस्वीरों और शवों को नदी में फेंके जाने की कहानियों से भर हुए थे. यह मेरे लिए एक दर्दनाक और दिल तोड़ने वाला अनुभव था.’

उन्होंने कहा, ‘गंगा मिशन के महानिदेशक के रूप में मेरा काम गंगा के स्वास्थ्य का संरक्षक बनना है, इसके प्रवाह को फिर से जीवंत करना है, इसकी प्राचीन शुद्धता की ओर लौटना सुनिश्चित करना है और वर्षों की उपेक्षा के बाद इसकी सहायक नदियों के लिए भी यही सब सुनिश्चित करना है.’

11 मई को जब दूसरी लहर चरम पर थी, मिश्रा के नेतृत्व में गंगा मिशन ने सभी 59 जिला गंगा समितियों को गंगा में तैरते शवों के मुद्दे पर ‘आवश्यक कार्रवाई’ करने और इसकी रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था.

इसके बाद संस्था ने यूपी और बिहार को इस पर विस्तृत रिपोर्ट देने के लिए कहा था, जिसके बाद उत्तर प्रदेश ने जिला-वार इस तरह के मामलों की रिपोर्ट दर्ज करना शुरू किया था.

बाद में, यूपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक बैठक में केंद्रीय अधिकारियों को बताया था कि राज्य के मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में नदियों में शवों को फेकने की प्रथा चलती आई है.

कितान में गंगा के किनारे सभी तटवर्ती राज्यों में खराब कोविड प्रबंधन को उजागर किया गया है.

इसमें कहा गया है, ‘अंतिम संस्कार सेवाओं के खराब प्रबंधन के चलते लोगों ने स्थिति का फायदा उठाकर शवों को नदी में फेंक दिया और मीडिया के प्रतिकूल प्रचार ने हमारी बेचैनी और लाचारी को बढ़ा दिया था.’

किताब में कहा गया है कि गंगा मिशन की बेचैनी इसलिए बढ़ गई थी, क्योंकि उनके पास इस तरह के मामलों पर कार्रवाई करने की शक्ति नहीं मिली है.

यूपी में कुछ समुदायों द्वारा नदियों के किनारे मृतकों को दफनाने की परंपरा पर पुस्तक में कहा गया है कि नदी के पास रहने वाले लोगों के लिए तैरती लाशें या शव दफनाने की घटना कोई नई बात नहीं थी. हालांकि इनकी तस्वीरों ने संकट की भयावहता को और बढ़ा दिया था.

गंगा नदी में शवों को बहाने के मामले ने तूल पकड़ने पर बीते मई महीने में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से कहा गया था राज्य के कुछ क्षेत्रों में शवों को गंगा में प्रवाहित करने की परंपरा रही है.

सरकार की ओर से बताया गया था कि पूर्वी एवं मध्य यूपी के दो विशेष क्षेत्रों में नदियों में शवों को बहाने का प्रचलन है और इसका केंद्र मध्य यूपी में कानपुर-उन्नाव क्षेत्र और पूर्वी यूपी में बनारस-गाजीपुर क्षेत्र है.

बता दें कि मई महीने में बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा और इसकी सहायक नदियों में बड़ी संख्या में संदिग्ध कोरोना संक्रमितों के शव तैरते हुए मिले थे. बीते 10 मई को उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे बिहार में बक्सर जिले के चौसा के समीप गंगा नदी से 71 शवों को निकाला गया था.

इसके अलावा कई मीडिया रिपोर्ट में बताया गया कि उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में 2000 से अधिक शव आधे-अधूरे तरीके या जल्दबाजी में दफनाए गए या गंगा किनारे पर मिले हैं.

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, मई महीने के दूसरे सप्ताह में अकेले उन्नाव में 900 से अधिक शवों को नदी के किनारे दफनाया गया था. उसने कन्नौज में यह संख्या 350, कानपुर में 400, गाजीपुर में 280 बताई. उसने बताया कि मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में ऐसे शवों की संख्या लगातार बढ़ रही थी.

इन खबरों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक पदाधिकारी ने कहा था कि गंगा नदी के किनारे शवों को दफनाने या गंगा नदी में तैरते शवों की तस्वीरों को लेकर मीडिया में एक खास एजेंडा चलाया गया है.