जम्मू कश्मीरः बीफ बैन, रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन की याचिका डालने वाले वकील अहम पदों पर नियुक्त

जम्मू कश्मीर के क़ानून विभाग ने जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट की जम्मू इकाई के क़ानून अधिकारियों के तौर पर कुल छह वकीलों को नियुक्त किया है. इनमें से दो नियुक्तियां भाजपा से जुड़ी हुई हैं.  

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

जम्मू कश्मीर के क़ानून विभाग ने जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट की जम्मू इकाई के क़ानून अधिकारियों के तौर पर कुल छह वकीलों को नियुक्त किया है. इनमें से दो नियुक्तियां भाजपा से जुड़ी हुई हैं.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

श्रीनगरः गोमांस प्रतिबंध कानून के सख्त क्रियान्वयन को लेकर जम्मू एवं कश्मीर हाईकोर्ट के 2015 के निर्देश ने धार्मिक आधार पर जम्मू कश्मीर का ध्रुवीकरण किया और राज्य की तत्कालीन सरकार को असहज स्थिति में डाल दिया, विशेष रूप से तब जब यह पता चला कि इस मामले में याचिकाकर्ता कोई और नहीं बल्कि जम्मू एवं कश्मीर सरकार के डिप्टी एडवोकेट जनरल परिमोक्ष सेठ हैं.

सरकार ने साख बचाने के कदम के तौर पर सेठ द्वारा याचिका लेने से इनकार करने के बाद उन्हें तुरंत बर्खास्त कर दिया.

जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने हाईकोर्ट की जम्मू इकाई में प्रतिनिधित्व के लिए उन्हें 22 दिसंबर को डिप्टी एडवोकेट जनरल नियुक्त किया. सेठ के साथ एडवोकेट हुनर गुप्ता को भी कानून अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया गया. दोनों अब डिप्टी एडवोकेट जनरल हैं.

हुनर गुप्ता ने रोहिंग्या शरणार्थियों की पहचान और उनके निर्वासन के लिए हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की थी.

जम्मू एवं कश्मीर के कानून विभाग ने जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट की जम्मू इकाई के कानून अधिकारियों के तौर पर कुल छह वकीलों को नियुक्त किया है.

परिमोक्ष सेठ

हाईकोर्ट की पीठ द्वारा 2015 में जम्मू कश्मीर में गोमांस प्रतिबंध कानून के सख्त क्रियान्वयन के आह्वान के बाद सेठ विवादों के केंद्र में रहे.

अदालत ने पुलिस महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि प्रतिबंध लागू करने के लिए सभी एसएसपी, एसपी और एसएचओ को उचित निर्देश जारी किए जाएं.

अदालत ने कहा, ‘इन गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानून के अनुरूप सख्त कार्रवाई की जाए.’

लेकिन सरकार के लिए शर्मिंदगी की बात यह थी कि मामले में याचिकाकर्ता खुद उनके डिप्टी एडवोकेट जनरल परिमोक्ष सेठ हैं, जिन्हें राज्य में पीपुल्स डेमोक्रेट पार्टी-भाजपा की सरकार के गठन के बाद 24 अप्रैल 2015 को नियुक्त किया गया था.

हाईकोर्ट के निर्देशों की वजह से राज्य में व्यापक आलोचना हुई. राजनीतिक और धार्मिक इकाइयों ने इसे जम्मू कश्मीर के मुसलमानों के धार्मिक मामलों में सीधा दखल बताया. इसने राज्य को धार्मिक आधार पर बांट दिया और विधानसभा के भीतर और बाहर विरोध हुआ.

इस ध्रुवीकरण के बीच कश्मीर के अनंतनाग जिले के एक ट्रक चालक पर जम्मू के उधमपुर में सांप्रदायिक भीड़ ने पेट्रोल बम से हमला किया, जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया.

किसी मामले में सरकार के खिलाफ होना राज्य सरकार के वकीलों के लिए भी असामान्य है.

सेठ ने 24 अप्रैल 2015 (नियुक्ति के समय) और नौ सितंबर 2015 (गोमांस प्रतिबंध कानून के सख्त क्रियान्वयन का हाईकोर्ट का आदेश) के बीच याचिका वापस नहीं ली.

जम्मू कश्मीर सरकार ने इसके बाद उन्हें डिप्टी एडवोकेट जनरल के पद से हटा दिया.

द वायर  द्वारा गुरुवार सुबह उनसे संपर्क किए जाने पर सेठ ने कहा कि वह अभी जवाब देने के लिए उपलब्ध नहीं है.

हुनर गुप्ता

इसी बीच एडवोकेट हुनर गुप्ता ने जम्मू क्षेत्र में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों की पहचान और उनके निर्वासन को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

गुप्ता ने 2017 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें राज्य सरकार से म्यांमार और बांग्लादेश के अवैध प्रवासी शरणार्थियों को जम्मू कश्मीर से किसी अन्य स्थान पर शिफ्ट करने का निर्देश देने की मांग की गई.

उन्होंने जम्मू कश्मीर में रह रहे म्यांमार और बांग्लादेश के सभी अवैध प्रवासियों की पहचान कर उनकी जांच करने के लिए पूर्व सेवानिवृत्त जज को नियुक्त करने और उन्हें आवश्यक निर्देश जारी करने का भी आग्रह किया.

फरवरी 2021 में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की पीठ ने सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों को लेकर एक महीने से भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.

इन निर्देशों के लगभग चार हफ्ते बाद जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने जम्मू में 150 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लिया और उन्हें कठुआ में हीरा नगर उप-जेल में रखा. भाजपा और अन्य दक्षिणपंथी समूह म्यांमार में सताए जाने के बाद जम्मू आए रोहिंग्या शरणार्थियों को निकालने के लिए अभियान चला रहे हैं.

संपर्क करने पर गुप्ता ने कहा कि वह याचिका वापस लेने पर विचार कर रहे हैं. वह वरिष्ठ सहयोगियों से सलाह के बाद फैसला लेंगे.

राजनीतिक जुड़ाव

ये दोनों नियुक्तियां भाजपा से जुड़ी हुई हैं. सेठ वरिष्ठ भाजपा नेता ओंकार सेठ के बेटे हैं. ओंकार सेठ 2002 विधानसभा चुनाव में जम्मू स्टेट मोर्चा (जेएसएम) के उम्मीदवार थे. यह पार्टी 2002 चुनावों से पहले गठित हुई थी. जेएसएम ने जम्मू के लिए अलग राज्य के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था.

ऐसा माना जाता है कि इस पार्टी को आरएसएस का समर्थन प्राप्त था क्योंकि आरएसएस ने तीन अलग-अलग इकाइयों में जम्मू एवं कश्मीर के विभाजन के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था. ये तीन राज्य जम्मू, कश्मीर और लद्दाख थे.

हुनर गुप्ता जम्मू कश्मीर में भाजपा के कानूनी मामलों के विभाग के प्रभारी हैं.

नियुक्तियों पर प्रतिक्रियाएं

इन नियुक्तियों को लेकर सवाल भी खड़े हुए हैं. राजनीतिक दलों और वकीलों का कहना है कि इसके पीछे स्पष्ट राजनीतिक एजेंडा है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता इमरान नबी डार ने द वायर  से कहा, ‘ये संदिग्ध नियुक्तियां हैं. ये लोग इन विभाजनकारी याचिकाओं के पीछे हैं. ऐसा लगता है कि इन नियुक्तियों के पीछे कोई एजेंडा है.’

वकील और पूर्व विधायक फिरदौस टाक ने कहा कि यह आश्चर्यजनक नहीं है कि जम्मू कश्मीर प्रशासन नागपुर के फरमान का पालन कर रहा है.

उन्होंने कहा, ‘प्रशासन के अधिकारियों को उनकी राजनीतिक विचारधारा के आधार पर तैनात किया जा रहा है. एडवोकेट जनरल ऑफिस का भगवाकरण किसी के लिए आश्चर्य की बात नहीं होगी.’

जम्मू बार एसोसिएशन के सदस्य टाक ने यह भी कहा कि कुछ वकीलों को कानून अधिकारियों के तौर पर नियुक्त किया गया है, जो बीते चार सालों से मुस्लिमों के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘उनका राजनीतिक झुकाव किसी से छिपा नहीं है और यही उनकी नियुक्ति का एकमात्र मापदंड हैं.’

साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकारी वकील की नियुक्ति सरकार और अन्य सार्वजनिक निकाय के अन्य कामों की तरह होनी चाहिए, यह किसी राजनीतिक या बाहरी विचारों से प्रभावित न होकर जनहित में होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘सरकार और सार्वजनिक निकाय सर्वश्रेष्ठ वकीलों के चुनाव के तरीके का चयन करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकन इस तरह के चुनाव और नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान यह देखना चाहिए कि दावेदार की प्रतिभा को तवज्जो दी जाए और यह प्रक्रिया किसी भी बाहरी विचार से प्रभावित न हो.’

इस मामले पर जब जम्मू कश्मीर के महाधिवक्ता डीसी रैना से संपर्क किया गया तब वे उपलब्ध नहीं थे.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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