चंडीगढ़ निकाय चुनाव: कृषि क़ानून रद्द होने के बाद हुए पहले चुनाव में भाजपा की बड़ी हार

चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में पहली बार उतरी आम आदमी पार्टी 35 में से 14 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही. 2016 से निगम में दो-तिहाई बहुमत के साथ अगुवा रही भाजपा की स्थिति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि दो पूर्व मेयर और निवर्तमान मेयर रविकांत शर्मा को भी हार का सामना करना पड़ा.

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चडीगढ़ नगर निकाय चुनाव में पार्टी की जीत का जश्न मनाते आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता (फोटोः पीटीआई)

चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में पहली बार उतरी आम आदमी पार्टी 35 में से 14 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही. 2016 से निगम में दो-तिहाई बहुमत के साथ अगुवा रही भाजपा की स्थिति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि दो पूर्व मेयर और निवर्तमान मेयर रविकांत शर्मा को भी हार का सामना करना पड़ा.

चडीगढ़ नगर निकाय चुनाव में पार्टी की जीत का जश्न मनाते आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता. (फोटोः पीटीआई)

चंडीगढ़ः तीन विवादित कृषि कानूनों को निरस्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश से माफी मांगने के लगभग एक महीने बाद भाजपा को चंडीगढ़ निकाय चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है.

भाजपा 2016 से चंडीगढ़ नगर निकाय में दो-तिहाई बहुमत के साथ शासन कर रही थी.

हालांकि, अनुमान यह जताया जा रहा था कि कांग्रेस को भाजपा विरोधी वोट मिलेंगे लेकिन पहली बार निकाय चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी चंडीगढ़ नगर निकाय की 35 सीटों में से 14 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही.

सत्तारूढ़ भाजपा सिर्फ 12 सीटों पर ही सिमट गई जबकि कांग्रेस आठ सीटों से ज्यादा पर जीत दर्ज नहीं कर पाई. एक सीट शिरोमणि अकाली दल के खाते में गई.

भाजपा द्वारा कृषि कानूनों को निरस्त करने के बाद हुए यह पहले चुनाव हैं, जिनकी उत्तर प्रदेश और पंजाब के आगामी विधानसभा चुनाव के नतीजों में महत्वपूर्ण भूमिका होने की उम्मीद है.

आम आदमी पार्टी के चंडीगढ़ के संयोजक प्रेम गर्ग ने द वायर  को बताया, ‘चंडीगढ़ नगर निकाय में भाजपा की हार कृषि कानूनों पर उनकी गलती और महंगाई पर नियंत्रण रखने में उनकी नाकामी का स्पष्ट जनमत संग्रह हैं.’

गर्ग ने कहा, ‘लोगों ने चंडीगढ़ में कुशासन को लेकर भाजपा को सबक भी सिखाया, जहां बीते पांच साल में भाजपा के शासन में नागरिक बुनियादी ढांचा बद से बदतर हो गया.’

उन्होंने कहा कि कांग्रेस को भी वोट न देकर लोगों ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वे भाजपा और कांग्रेस से बदलाव चाहते हैं. गर्ग ने कहा, ‘चंडीगढ़ तो सिर्फ ट्रेलर है. पंजाब हमारा अगला लक्ष्य है, जहां भी लोग पारंपरिक पार्टियों से बदलाव के लिए वोट करेंगे.’

भाजपा का अहंकार चूर

चंडीगढ़ में मेयर का कार्यकाल एक साल का है. हर साल नगर निगम के सदस्य नए मेयर का चुनाव करते हैं. साल 2016 में चंडीगढ़ चुनाव में भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत के बाद से मेयर के पद के लिए पार्टी के भीतर ही लगातार लड़ाई चल रही है.

यहां तक कि चंडीगढ़ भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष अरुण सूद, जिन्हें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का करीबी माना जाता है, उन पर गुटबाजी को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है.

भाजपा के अधीन चंडीगढ़ नगर निगम, सड़क निर्माण से लेकर बाढ़ प्रबंधन प्रणाली जैसे बुनियादी कार्यों को भी पूरा करने में असफल रहा है.

केंद्रशासित प्रदेश होने की वजह से चंडीगढ़ पर सीधे तौर पर भाजपा शासित केंद्र सरकार का नियंत्रण है. अभिनेत्री किरण खेर 2014 से भाजपा सांसद के तौर पर इस शहर का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.

चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन कितना खराब रहा है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दावेश मौदगिल सहित दो पूर्व मेयर और निवर्तमान मेयर रविकांत शर्मा को भी हार का सामना करना पड़ा है.

चंडीगढ़ भाजपा के अध्यक्ष अरुण सूद का कहना है कि पार्टी मेयर पद के लिए दावा पेश नहीं करेगी.

सूद ने कहा, ‘हम बेहतर चुनावी परिणाम की उम्मीद कर रहे थे क्योंकि भाजपा ने चंडीगढ़ में अच्छा काम किया था. हम बैठकर यह पता लगाने की कोशिश करेंगे, इस तरह के प्रदर्शन के पीछे के कारण क्या हैं. हम मेयर पद के लिए दावा नहीं करेंगे और विपक्ष में बैठेंगे.’

सितारों से सजा प्रचार अभियान बनाम जमीनी धरातल से जुड़ा प्रचार

भाजपा की यह हार इसलिए और भी गंभीर है कि भाजपा के चुनाव प्रचार में कई नामचीन हस्तियों ने शिरकत की. पीयूष गोयल सहित कई केंद्रीय नेताओं के अलावा जयराम ठाकुर, मनोहर लाल खट्टर जैसे कई राज्यों के मुख्यमंत्री ने भी चुनाव प्रचार किया था.

दूसरी तरफ, आम आदमी पार्टी का चुनाव प्रचार सितारों की चकाचौंध से दूर रहा. 24 दिसंबर को हुए मतदान से दो दिन पहले केजरीवाल की एक रैली के अलावा आम आदमी पार्टी का अधिकतर प्रचार पार्टी के स्थानीय नेताओं ने ही किया.

कुल मिलाकर आम आदमी पार्टी का मुख्य ध्यान उन वॉर्डों की तरफ रहा था, जहां भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा. इसके साथ ही प्रचार में कॉलोनियों और गांवों में रहने वाली निम्न मध्यमवर्ग की आबादी को लक्ष्य बनाया गया.

कई कांग्रेस नेताओं के आम आदमी पार्टी में जाने से भी पार्टी को जमीनी संगठन तैयार करने में मदद मिली. 2019 लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर सिर्फ 3.8 फीसदी था. नगर निगम चुनाव में यह अब बढ़कर 27 फीसदी हो गया है.

पार्टी के वरिष्ठ नेता राघव चड्ढा ने चंडीगढ़ में मीडिया को संबोधित कर कहा कि पार्टी ने शहर के हर कोने में जीत दर्ज की है, जिसका मतलब है कि समाज के हर वर्ग ने पार्टी को वोट दिया है.

उन्होंने कहा, ‘आम आदमी पार्टी ने आज सभी वर्गों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व किया है और यह पार्टी की जीत में भी झलका है.’

हालांकि, आम आदमी पार्टी के पास अब भी बहुमत से चार सीटें कम हैं, जिसका मतलब है कि पार्टी को चंडीगढ़ के मेयर की सीट हासिल करने के लिए अभी भी कई सभावनाओं पर काम करना होगा.

कांग्रेस के पूर्व मेयर और अब आम आदमी पार्टी के नेता प्रदीप छाबड़ा यहां अहम भूमिका निभा सकते हैं.

भाजपा विरोधी वोट हासिल नहीं कर सकी कांग्रेस

ऐसा अंदेशा जताया गया था कि आम आदमी पार्टी के चुनाव में उतरने से भाजपा के बजाय कांग्रेस के वोट में सेंधमारी होगी और नगर निगम चुनाव में भाजपा की जीत का रास्ता तय होगा.

हालांकि, ऐसा नहीं हुआ. आम आदमी पार्टी ने भाजपा विरोधी वोटों में सेंध लगाई जिससे यह पता चला कि भाजपा के विकल्प के तौर पर कांग्रेस जगह बनाने में कामयाब रहा. इसी तरह का रुझान अन्य जगहों पर भी देखा गया.

कई लोगों का मानना है कि कांग्रेस की इस नाकामी की वजह पार्टी का मौजूदा नेतृत्व है, जो यहां के स्थानीय लोगों में विश्वास पैदा नहीं कर पाया.

लंबे समय से पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के अंतरिम कोषाध्यक्ष पवन बंसल चंडीगढ़ पर काबिज रहे. वह 2014 और 2019 में भाजपा की किरण खेर से संसदीय चुनाव हार गए थे और तभी से कांग्रेस में बदलाव लाने में असफल रहे.

कांग्रेस की एक बड़ी विफलता यह है कि उसका प्रचार अभियान खराब रहा. वह यहां पार्टी के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू से प्रचार कराने में असफल रहे जबकि इन दोनों नेताओं के घर चंडीगढ़ में ही हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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