दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद संघर्ष के प्रतीक नोबेल पुरस्कार विजेता डेसमंड टूटू का निधन

डेसमंड टूटू को रंगभेद के कट्टर विरोधी और अश्वेत लोगों के दमन वाले दक्षिण अफ्रीका के क्रूर शासन के ख़ात्मे के लिए अहिंसक रूप से अथक प्रयास करने के लिए जाना जाता है. साल 1994 में दक्षिण अफ्रीका से रंगभेद के औपचारिक अंत के बाद भी टूटू ने मानवाधिकारों के लिए अपनी लड़ाई को नहीं रोका था. वह एचआईवी/एड्स, नस्लवाद, होमोफोबिया और ट्रांसफोबिया सहित तमाम मुद्दों पर आवाज़ उठाते रहते थे.

डेसमंड टूटू. (फोटो: रॉयटर्स)

डेसमंड टूटू को रंगभेद के कट्टर विरोधी और अश्वेत लोगों के दमन वाले दक्षिण अफ्रीका के क्रूर शासन के ख़ात्मे के लिए अहिंसक रूप से अथक प्रयास करने के लिए जाना जाता है. साल 1994 में दक्षिण अफ्रीका से रंगभेद के औपचारिक अंत के बाद भी टूटू ने मानवाधिकारों के लिए अपनी लड़ाई को नहीं रोका था. वह एचआईवी/एड्स, नस्लवाद, होमोफोबिया और ट्रांसफोबिया सहित तमाम मुद्दों पर आवाज़ उठाते रहते थे.

डेसमंड टूटू. (फोटो: रॉयटर्स)

जोहानिसबर्ग: दक्षिण अफ्रीका में नस्ली न्याय और एलजीबीटी अधिकारों के संघर्ष के लिए नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले सक्रिय कार्यकर्ता एवं केप टाउन के सेवानिवृत्त एंग्लिकन आर्कबिशप डेसमंड टूटू का निधन हो गया है.

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने रविवार (26 दिसंबर) को यह जानकारी दी. टूटू 90 वर्ष के थे.

रंगभेद के कट्टर विरोधी, अश्वेत लोगों के दमन वाले दक्षिण अफ्रीका के क्रूर शासन के खात्मे के लिए टूटू ने अहिंसक रूप से अथक प्रयास किए.

उत्साही और मुखर पादरी ने जोहानिसबर्ग के पहले अश्वेत बिशप और बाद में केप टाउन के आर्कबिशप के रूप में अपने उपदेश-मंच का इस्तेमाल किया और साथ ही घर तथा विश्व स्तर पर नस्ली असमानता के खिलाफ जनता की राय को मजबूत करने के लिए लगातार सार्वजनिक प्रदर्शन किया.

रामफोसा ने एक बयान में कहा कि रविवार (26 दिसंबर) को टूटू का निधन, हमें एक मुक्त दक्षिण अफ्रीका देने वाले उत्कृष्ट दक्षिण अफ्रीका की एक पीढ़ी की विदाई में शोक का एक और अध्याय है.

उन्होंने कहा, ‘दक्षिण अफ्रीका में प्रतिरोध के रास्ते से लेकर दुनिया के महान गिरजाघरों और उपासना स्थलों तक और नोबेल शांति पुरस्कार समारोह की प्रतिष्ठित व्यवस्था तक, आर्कबिशप ने खुद को एक गैर-सांप्रदायिक, सार्वभौमिक मानवाधिकारों के समावेशी हिमायती के रूप में प्रतिष्ठित किया.’

समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक 1997 में प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित होने का पता चलने के बाद टूटू को 2015 से कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था. हाल के वर्षों में वह और उसकी पत्नी लिआ केप टाउन के बाहर एक रिटायमेंट समुदाय में रहते थे.

1980 के दशक के दौरान रंगभेद विरोधी हिंसा और आपातकाल की स्थिति में पुलिस और सेना को मिली व्यापक शक्तियों की चपेट में जब दक्षिण अफ्रीका था, तब टूटू सबसे प्रमुख अश्वेतों में से एक थे, जो बुरे बर्ताव (Abuses) के खिलाफ बोलने में सक्षम थे.

साल 1984 में मिले नोबेल शांति पुरस्कार ने मानवाधिकारों के लिए दुनिया के सबसे प्रभावी चैंपियनों में से एक के रूप में उनके कद को उजागर किया.

रंगभेद की समाप्ति और 1994 में दक्षिण अफ्रीका के पहले लोकतांत्रिक चुनावों के साथ टूटू ने देश के बहु-नस्लीय समाज का जश्न मनाया और इसे ‘इंद्रधनुषीय राष्ट्र’ (Rainbow Nation) कहा.

रंगभेद के औपचारिक अंत के बाद भी टूटू ने मानवाधिकारों के लिए अपनी लड़ाई को नहीं रोका. उन्होंने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने वाले राजनेताओं के खिलाफ आलोचनात्मक रूप से बोलना जारी रखा. उन्होंने एचआईवी/एड्स, गरीबी, नस्लवाद, होमोफोबिया और ट्रांसफोबिया सहित तमाम मुद्दों पर आवाज उठाई.

रंगभेद शासन के पतन के बाद मंडेला ने पहले अश्वेत राष्ट्रपति के रूप में देश का नेतृत्व किया तब टूटू ने ट्रूथ एंड रिरिकंसिलिएशन कमीशन (Truth and Reconciliation Commission) का नेतृत्व किया था जिसने देश श्वेत शासन की भयानक सच्चाइयों को उजागर किया था.

मानवाधिकारों के लिए उनकी लड़ाई दक्षिण अफ्रीका तक ही सीमित नहीं थी. अपनी पीस फाउंडेशन के माध्यम से, जिसे उन्होंने 2015 में बनाया था, उन्होंने एक शांतिपूर्ण दुनिया के लिए अपने दृष्टिकोण को आगे बढ़ाया ‘जिसमें हर कोई मानवीय गरिमा और हमारी परस्परता को महत्व देता है’.

टूटू 7 अक्टूबर, 1931 को दक्षिण अफ्रीका के उत्तर पश्चिम प्रांत में क्लार्कडॉर्प में जन्मे, जहां उनके पिता, जकारिया एक हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक थे. उनकी मां, एलेथा मतलारे, एक घरेलू कामगार थीं.

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने सोवेटो के मदीबेन हाई स्कूल में कुछ समय तक अंग्रेजी और इतिहास पढ़ाया और फिर जोहान्सबर्ग के पश्चिम में; क्रूगर्सडॉर्प हाई स्कूल में अध्यापन किया, जहां उनके पिता प्रधानाध्यापक थे. यहीं पर उनकी मुलाकात नोमालिज़ो लिआ शेनक्सेन से हुई, जिनसे बाद में उनका विवाह हुआ.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टूटू के निधन पर शोक व्यक्त किया.

मोदी ने टूटू को श्रद्धांजलि देते हुए रविवार को कहा कि वह विश्व स्तर पर अनगिनत लोगों के लिए एक मार्गदर्शक थे और मानवीय गरिमा एवं समानता पर उनके जोर को हमेशा याद रखा जाएगा..

मोदी ने कहा, ‘आर्कबिशप एमेरिटस डेसमंड टूटू दुनिया भर में अनगिनत लोगों के लिए एक मार्गदर्शक थे. मानवीय गरिमा एवं समानता पर उनके जोर को हमेशा याद रखा जाएगा. मैं उनके निधन से बहुत दुखी हूं और उनके सभी प्रशंसकों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूं. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे.’

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दक्षिण अफ्रीका के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता डेसमंड टूटू के निधन पर रविवार को शोक व्यक्त किया.

राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘आर्कबिशप डेसमंड टूटू के निधन पर मेरी संवेदनाएं. वह रंगभेद विरोधी आंदोलन के प्रतीक और गांधीवादी थे. सामाजिक न्याय के ऐसे महान नायक दुनिया भर में हम सभी के लिए हमेशा प्रेरणा स्रोत रहेंगे.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)