हरिद्वार में 17-19 दिसंबर के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा आयोजित ‘धर्म संसद’ में कथित तौर पर मुसलमान एवं अल्पसंख्यकों को ख़िलाफ़ खुलकर नफ़रत भरे भाषण दिए गए, यहां तक कि उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया. इसके बाद छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी इसी तरह का आयोजन हुआ था.
नई दिल्लीः देश के पूर्व सेना प्रमुखों, नौकरशाहों और कई बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर मुस्लिमों के नरसंहार के आह्वान की निंदा करने और इस तरह की धमकियां देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की.
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति को लिखे गए इस खुले पत्र पर 200 से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए.
पत्र में कहा गया, ‘हम हिंसा के लिए इस तरह उकसाने की अनुमति नहीं दे सकते, जो न सिर्फ आंतरिक सुरक्षा का गंभीर उल्लंघन है बल्कि इससे हमारे राष्ट्र का सामाजिक ताना-बाना भी बाधित हो सकता है. एक वक्ता ने पुलिस और सेना को हथियार उठाने और एथनिक क्लींजिंग में शामिल होने का आह्वान किया. यह सेना को हमारे ही नागरिकों के नरंसहार में शामिल करने जैसा है और निंदनीय एवं अस्वीकार्य है.’
पत्र में आगे कहा गया, ‘हम सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट से हमारे देश की अखंडता और सुरक्षा की रक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने का आह्वान करते हैं. संविधान ने सभी धर्मों का निर्बाध पालन करने का अधिकार दिया है.’
पत्र में कहा, ‘हम धर्म के नाम पर इस तरह के ध्रुवीकरण की निंदा करते हैं. हम आपसे (महामहिम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री) इस तरह के प्रयासों को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने और इस तरह हिंसा भड़काने की तत्काल निंदा करने का आग्रह करते हैं.’
उत्तराखंडः पूर्व सरकारी अधिकारियों ने मुख्यमंत्री से कहा- धर्म संसद के आयोजकों पर कार्रवाई करें
उत्तराखंड के सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारियों के समूह ने राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर हरिद्वार में हाल में हुई धर्म संसद को लेकर सरकार के रुख की आलोचना की.
बता दें कि हरिद्वार में हुई दो दिवसीय धर्म संसद में सार्वजनिक तौर पर मुस्लिमों के नरसंहार का आह्वान किया गया था.
पूर्व अधिकारियों ने धर्म संसद के आयोजकों और इन कार्यक्रमों के वक्ताओं की तुरंत गिरफ्तारी करने और भीड़ हिंसा से बचाव में जुलाई 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने का आह्वान किया.
इस कार्यक्रम का आयोजन राज्य में 17 और 19 दिसंबर के बीच किया गया था, जिसमें बड़ी संख्या में हिंदू धार्मिक नेताओं, दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं और हिंदुत्व संगठनों ने हिस्सा लिया था.
इस कार्यक्रम में भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय भी शामिल हुए थे, जिन्हें पहले दिल्ली के जंतर मंतर पर एक कार्यक्रम के आयोजन में मदद करने के लिए गिरफ्तार किया गया था. इस कार्यक्रम में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा का आह्वान करते हुए नारेबाजी की गई थी.
भाजपा महिला मोर्चा की नेता उदिता त्यागी भी मौजूद थी.
इस पत्र में कहा गया, ‘धर्म संसद के सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध वीडियो में संसद के वक्ताओं ने खुले तौर पर भारत के 20 लाख मुस्लिम नागरिकों के नरसंहार का आह्वान किया था और इस समुदाय के गांवों को सफाए की धमकी दी थी.’
पत्र में कहा गया, ‘तथ्य यह है कि यह कार्यक्रम आपकी सरकार की कानून एवं व्यवस्था की असफलता है. अब अंतरराष्ट्रीय नाराजगी के बाद भी तीन लोगों के खिलाफ सिर्फ एक धारा में एफआईआर दर्ज की गई है. इससे स्पष्ट है कि आपकी सरकार इन लोगों को बचा रही है.’
बता दें कि 22 दिसंबर को उत्तराखंड पुलिस ने उत्तर प्रदेश सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिज़वी (अब जितेंद्र त्यागी) और अन्य के खिलाफ धर्म संसद में हेट स्पीच के लिए आईपीसी की धारा 153ए (विभिन्न समूहों के बीच धर्म के आधार पर वैमनस्य को बढ़ावा देना) के तहत एफआईआर दर्ज की गई. इसके दो दिन बाद वीडियो में शामिल दो अन्य लोगों को भी एफआईआर में नामजद किया गया.
पत्र में कहा गया, ‘यह नहीं कहा जा सकता कि ये सिर्फ भाषण थे. 2017 में जब से मौजूदा सरकार सत्ता में आई है, सिलसिलेवार हिंसक घटनाएं हो रही हैं, जहां भीड़ अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों, उनकी दुकानों और उनके पूजास्थलों को निशाना बना रही हैं. एक मामले में विपक्षी पार्टी के कार्यालय को निशाना बनाया गया.’
आगे कहा गया, ‘उत्तराखंड में इस स्तर की हिंसा पहले कभी नहीं देखी गई, फिर भी आपकी सरकार ने हिंसा में शामिल संगठनों के खिलाफ कोई कार्रवाई करती प्रतीत नहीं होती. सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी के मुताबिक दो महीने बाद भी रुड़की हमले में अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई.’
पत्र में कहा गया, ‘हमनें ध्यान दिया है कि चार अक्टूबर को आपकी सरकार ने राज्य में हिंसा की घटनाओं के नाम पर मजिस्ट्रेटों को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत उनकी शक्तियों के विस्तार को न्यायोचित ठहराया लेकिन धर्म संसद की तरह भीड़ को उकसाने वालों के खिलाफ कोई गंभीर कार्रवाई नहीं की गई. इसके बजाय ये तुगलकी फरमान आपकी सरकार के खिलाफ असहमति जताने वालों के मन में डर पैदा करने के उद्देश्य से किए गए.’
हेट स्पीच के मामलों में कार्रवाई की कमी की निंदा करते हुए पत्र में कहा गया, ‘यह दरअसल एक स्पष्ट संदेश भेजने जैसे प्रतीत होता है कि धार्मिक अल्पसंख्यक या कोई भी जो आपकी पार्टी की विचारधारा से सहमत नहीं है, वह राज्य में अपनी संपत्ति, अपनी स्वतंत्रता या अपनी जिंदगी की रक्षा की उम्मीद नहीं कर सका.’
पूर्व अधिकारीयों ने कहा, ‘यह हमारे लोकतंत्र की नींव पर हमला है. इस तरह की गतिविधियों को बढ़ावा देना और उन्हें सहन करना भी राष्ट्र के तौर पर हमारी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है.’
बता दें कि उत्तराखंड के हरिद्वार में 17-19 दिसंबर के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा एक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया था, जिसमें कथित तौर पर मुसलमान एवं अल्पसंख्यकों को ख़िलाफ़ खुलकर नफ़रत भरे भाषण दिए गए, यहां तक कि उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया.
इसके बाद छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी इसी तरह की धर्म संसद का आयोजन किया गया था.
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