मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बुलाई गई अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम मामलों की समीक्षा बैठक में सामने आया कि राज्य में इस क़ानून के तहत बीते 10 सालों में 67,163 मामले दर्ज किए गए. सर्वाधिक 7,574 मामले 2020 में दर्ज किए गए जबकि 2018 में यह संख्या 7,125 और 2017 में 6,826 थी.
पटनाः बीते 10 सालों में बिहार में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत 67,163 मामले दर्ज किए गए.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बुलाई गई एससी-एसटी अधिनियम मामलों की समीक्षा बैठक से पता चला है कि अगर लंबित 39,730 मामलों को जोड़ भी दिया जाए तो कुल मामलों की संख्या 1,06,893 हो जाएगी. इनमें से 44,986 मामले अभी भी लंबित हैं.
बीते 10 सालों में अदालतों ने इस तरह के सिर्फ 872 मामलों में ही फैसला सुनाया है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चार सितंबर 2020 के बाद पहली बार 23 दिसंबर को हुई इस बैठक के बाद मामलों के धीमे निपटारे और इन मामलों में खराब दोषसिद्धि दर को लेकर चिंता जताई है.
नियम के अनुसार, इस तरह की बैठकें हर छह महीने में होनी चाहिए. मुख्यमंत्री ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में त्वरित सुनवाई की मांग की है.
बिहार पुलिस के आंकड़ों से पता चलता है कि इस अधिनियम के तहत सबसे अधिक 7,574 मामले 2020 में दर्ज किए गए जबकि 2018 में यह संख्या 7,125 और 2017 में 6,826 थी.
जनवरी 2011 और नवंबर 2021 के बीच दर्ज 44,150 मामलों में से सिर्फ 872 मामलों में ही फैसला सुनाया गया.
सिर्फ अधिक संख्या में लेकर लंबित मामलों की वजह से ही नहीं बल्कि राज्य सरकार पीड़ितों को मुआवजा देने के मामलों में ही फुर्ती नहीं दिखाती, जो चिंता का विषय है.
हत्या के मामले में पीड़ित परिवारों को 8.5 लाख रुपये का मुआवजा मिलता है. इन मुआवजे के 8,108 मामलों में अब तक सिर्फ 2,876 मामलों का ही निपटान किया गया है जबकि 5,232 मामले लंबित हैं.
अधिकतर मामलों में जिलों ने मुआवजे के भुगतान में देरी के प्रमुख कारणों में फंड की अनुपलब्धता का हवाला दिया है.
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (आपराधिक जांच विभाग-कमजोर वर्ग) अनिल किशोर यादव ने बताया, ‘मुख्यमंत्री पहले ही मामलों की त्वरित सुनवाई पर जोर दे चुके हैं. हमने प्रत्येक जिलों को इन मामलों में त्वरित निगारनी के निर्देश दिए हैं ताकि अधिक से अधिक दोषसिद्धि सुनिश्चित की जा सके.’