एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में क़रीब तीन साल बाद ज़मानत पर रिहा हुईं, अधिवक्ता और कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज ने अर्ज़ी देकर ठाणे स्थित मित्र के घर में रहने की अनुमति मांगी थी और कहा था कि मुंबई में घर पाना महंगा है. अदालत ने इसे स्वीकार करते हुए उन्हें हर हफ़्ते ठाणे के वर्तक नगर पुलिस थाने में हाज़िरी देने का निर्देश दिया है.
मुंबई: मुंबई की विशेष अदालत ने बृहस्पतिवार को कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, जिन्हें हाल में एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में जमानत दी गई है, को मुंबई के बजाय पड़ोसी जिले ठाणे में रहने की अनुमति दे दी.
भारद्वाज को गिरफ्तारी के करीब तीन साल बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2021 में जमानत दी थी.
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की विशेष अदालत ने रिहाई का आदेश पारित करते हुए कहा था कि वह बिना अनुमति मुंबई नहीं छोड़ेंगी.
भारद्वाज ने बाद में अर्जी देकर ठाणे स्थित मित्र के घर में रहने की अनुमति मांगी और कहा कि मुंबई में घर पाना महंगा है.
विशेष न्यायाधीश डीई कोठालिकर ने बृहस्पतिवार को भारद्वाज की अर्जी स्वीकार कर ली. अदालत ने उस स्थान का पता भी रिकॉर्ड पर लिया, जहां पर भारद्वाज रहेंगी और निर्देश दिया कि वह हर पखवाड़े ठाणे शहर के वर्तक नगर पुलिस थाने में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगी.
अदालत ने कहा, ‘जांच अधिकारी को स्वतंत्रता है कि वह पते को सत्यापित करे और वर्तक नगर पुलिस थाने के वरिष्ठ निरीक्षक को संबंधित जानकारी दे.’
गौरतलब है कि दिसंबर 2017 में पुणे में हुई एल्गार परिषद की संगोष्ठी के बाद उसके माओवादियों से कथित संबंध होने के आरोप में भारद्वाज सहित कई वाम झुकाव वाले कार्यकर्ताओं और लेखकों को गिरफ्तार किया गया था.
सुधा भारद्वाज को अगस्त 2018 में पुणे पुलिस द्वारा जनवरी 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था.
उन पर हिंसा भड़काने और प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के लिए फंड और मानव संसाधन इकट्ठा करने का आरोप है, जिसे उन्होंने बेबुनियाद और राजनीति से प्रेरित बताया था.
मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली वकील सुधा भारद्वाज ने करीब तीन दशकों तक छत्तीसगढ़ में काम किया है. सुधा पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की राष्ट्रीय सचिव भी हैं.
उल्लेखनीय है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक दिसंबर 2021 को यह कहते हुए अधिवक्ता सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत दी थी कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धारा 43डी (2) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2)के प्रावधानों के तहत जांच और डिटेंशन के समय का विस्तार अदालत द्वारा नहीं किया गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)