उत्तराखंड: विपक्ष, पूर्व अफ़सरों ने राज्यपाल को लिखा- सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के प्रयास रोकें

उत्तराखंड के विपक्षी नेताओं, सौ से अधिक पूर्व सेना, पुलिस और प्रशासनिक अफसरों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) गुरमीत सिंह को एक ज्ञापन भेजकर उनसे 'राज्य में हो रही हिंसक गतिविधियों और देश विरोधी कार्यों' पर रोक लगाने की गुज़ारिश की है.

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हरिद्वार धर्म संसद. (साभार: स्क्रीनग्रैब/यूट्यब)

उत्तराखंड के विपक्षी नेताओं, सौ से अधिक पूर्व सेना, पुलिस और प्रशासनिक अफसरों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) गुरमीत सिंह को एक ज्ञापन भेजकर उनसे ‘राज्य में हो रही हिंसक गतिविधियों और देश विरोधी कार्यों’ पर रोक लगाने की गुज़ारिश की है.

हरिद्वार धर्म संसद. (साभार: स्क्रीनग्रैब/यूट्यब)

नई दिल्ली: उत्तराखंड में हुई धर्म संसद और हिंसा के आह्वान के खिलाफ देशभर के कई समूहों, नागरिक संगठनों ने विरोध के स्वर उठाए हैं. प्रवासी भारतीयों और कई शैक्षणिक संस्थानों ने इसे लेकर प्रधानमंत्री को भी लिखा है.

इसी कड़ी में उत्तराखंड के विपक्षी नेताओं, सौ से अधिक पूर्व सेना, पुलिस और प्रशासनिक अफसरों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत 130 से अधिक लोगों ने राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) गुरमीत सिंह को एक ज्ञापन भेजकर उनसे ‘राज्य में हो रही हिंसक गतिविधियों और देश विरोधी कार्यों’ पर रोक लगाने की गुजारिश की है.

उल्लेखनीय है कि हरिद्वार में 17-19 दिसंबर के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा आयोजित ‘धर्म संसद’ में कथित तौर पर मुसलमान एवं अल्पसंख्यकों को ख़िलाफ़ खुलकर नफ़रत भरे भाषण दिए गए, यहां तक कि उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया.

इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में हिंदू धार्मिक नेताओं, दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं और हिंदुत्व संगठनों ने हिस्सा लिया था. भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय भी इस आयोजन शामिल हुए थे, जिन्हें पहले दिल्ली के जंतर मंतर पर एक कार्यक्रम के आयोजन में मदद करने के लिए गिरफ्तार किया गया था. इस कार्यक्रम में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा का आह्वान करते हुए नारेबाजी की गई थी. भाजपा महिला मोर्चा की नेता उदिता त्यागी भी यहां मौजूद थी.

इसके बाद छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी इसी तरह की धर्म संसद का आयोजन किया गया था.

राज्यपाल को ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ज्ञापन देने वाले इन लोगों में सेना, पुलिस और भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत अफसर, कांग्रेस, उत्तराखंड क्रांति दल, भाकपा, माकपा, समाजवादी पार्टी, भाकपा (माले)), उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी शामिल हैं.

साथ ही वरिष्ठ लेखक सुभाष पंत, वरिष्ठ इतिहासकार शेखर पाठक, वरिष्ठ कवि राजेश पाल, उत्तराखंड लोकवाहिनी, उत्तराखंड महिला मंच, चेतना आंदोलन, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, प्रमुख ट्रेड यूनियन, सत्तर से ज्यादा और पत्रकार, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस ज्ञापन को समर्थन दिया है.

हस्ताक्षरकर्ताओं ने 2017 और 2018 में सतपुली, मसूरी, आराघर, कीर्तिनगर, हरिद्वार, रायवाला, कोटद्वार, चंबा, अगस्त्यमुनि, डोईवाला, घनसाली, रामनगर और अन्य जगहों में भीड़ की हिंसा और 3 अक्टूबर को रुड़की में चर्च पर हमले की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि प्रदेश में लगातार हिंसक कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है.

इससे पहले एक जनवरी को उत्तराखंड के सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारियों के समूह ने राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर हरिद्वार में हाल में हुई धर्म संसद को लेकर सरकार के रुख की आलोचना की थी.

पूर्व अधिकारियों ने धर्म संसद के आयोजकों और इन कार्यक्रमों के वक्ताओं की तुरंत गिरफ्तारी करने और भीड़ हिंसा से बचाव में जुलाई 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने का आह्वान किया था.

अधिकारियों  ने पत्र में कहा था, ‘धर्म संसद के सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध वीडियो में संसद के वक्ताओं ने खुले तौर पर भारत के 20 लाख मुस्लिम नागरिकों के नरसंहार का आह्वान किया था और इस समुदाय के गांवों को सफाए की धमकी दी थी.’

पत्र में कहा गया था, ‘तथ्य यह है कि यह कार्यक्रम आपकी सरकार की कानून एवं व्यवस्था की असफलता है. अब अंतरराष्ट्रीय नाराजगी के बाद भी तीन लोगों के खिलाफ सिर्फ एक धारा में एफआईआर दर्ज की गई है. इससे स्पष्ट है कि आपकी सरकार इन लोगों को बचा रही है.’

अब राज्यपाल को भेजे गए ज्ञापन में भी इन्हीं बातों पर जोर देते हुए कहा गया है कि हरिद्वार में नरसंहार और हिंसा के पक्ष में जो भाषण दिए गए थे, वे सिर्फ भाषण नहीं थे, वह आपराधिक प्रोत्साहन था.

हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि सरकार यह संदेश देना चाह रही है कि अल्पसंख्यकों और कोई व्यक्ति या समूह, जिसका विचार सत्ताधारी दल से नहीं मिलता, उनके लिए राज्य में सुरक्षा नहीं होगी. इससे बड़ा संविधान विरोधी या देश विरोधी काम और कुछ नहीं हो सकता है.

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड हमेशा एक शांतिपूर्ण प्रदेश रहा है जहां जनता लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करती है. सत्ताधारी दल ऐसे काम करे, यह न सिर्फ अल्पसंख्यकों और हमारे संविधान पर हमला है, बल्कि यह इस राज्य की संस्कृति और इतिहास पर भी हमला है.

ज्ञापन देने वालों ने मांग की है कि हरिद्वार में जिन लोगों ने हिंसा भड़काने वाला आपराधिक भाषण दिया, उन्हें तत्काल गिरफ्तार कर उन पर गंभीर धाराओं के अंतर्गत कार्रवाही शुरू की जाए, भीड़ की हिंसा और नफरत की राजनीति फैलाने वाले अराजक तत्वों- उनकी धार्मिक या राजनीतिक संबद्धता से परे जाते हुए उन पर आपराधिक मुकदमे चलाए जाएं, और राज्य में उच्चतम न्यायालय के जुलाई 2018 के भीड़ की हिंसा पर दिए गए फैसले के सारे निर्देशों को तुरंत अमल में लाया जाए.

इस पूरे पत्र को नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ा जा सकता है.

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