गणतंत्र दिवस परेड: इस साल भी बंगाल की झांकी को नहीं मिली मंज़ूरी, ममता ने पीएम मोदी को लिखा पत्र

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के मौके पर 23 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह शुरू करने के अपने फैसले की घोषणा की है. पिछले साल भी पश्चिम बंगाल की झांकी को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने की मंज़ूरी केंद्र ने नहीं दी थी.

ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी. (फोटो: पीटीआई)

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के मौके पर 23 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह शुरू करने के अपने फैसले की घोषणा की है. पिछले साल भी पश्चिम बंगाल की झांकी को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने की मंज़ूरी केंद्र ने नहीं दी थी.

ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी. (फोटो: पीटीआई)

कोलकाता: केंद्र की मोदी सरकार द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के मौके पर 23 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह शुरू करने के अपने फैसले की घोषणा के एक दिन बाद रविवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राज्य की प्रस्तावित झांकी को बाहर करने के फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया. गणतंत्र दिवस परेड के लिए प्रस्तावित झांकी राज्य के स्वतंत्रता सेनानियों पर आधारित है.

साल 2020 में भी पश्चिम बंगाल की झांकी को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने की मंजूरी नहीं दी गई थी. बंगाल के अलावा महाराष्ट्र, केरल और बिहार की झांकियों को भी अनुमति नहीं मिली थी.

दिल्ली में आगामी गणतंत्र दिवस परेड से स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान पर आधारित पश्चिम बंगाल की झांकी को बाहर करने के केंद्र के फैसले पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हैरानी जताई है.

उन्होंने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर इस निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया, क्योंकि राज्य के लोगों को इस कदम से ‘पीड़ा’ होगी.

बनर्जी ने मोदी को लिखे दो पन्नों के पत्र में कहा, ‘मैं भारत सरकार के आगामी गणतंत्र दिवस परेड से पश्चिम बंगाल सरकार की प्रस्तावित झांकी को अचानक बाहर करने के निर्णय से स्तब्ध और आहत हूं. यह हमारे लिए और भी चौंकाने वाली बात है कि झांकी को बिना कोई कारण या औचित्य बताए खारिज कर दिया गया.’

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रस्तावित झांकी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती वर्ष पर उनके और आजाद हिंद फौज के योगदान की स्मृति में बनाई गई थी.

बनर्जी के पत्र में कहा गया है कि प्रस्तावित झांकी में इसके अलावा ईश्वर चंद्र विद्यासागर, रबींद्रनाथ टैगोर, विवेकानंद, चित्तरंजन दास, श्री अरबिंदो, मातंगिनी हाजरा, बिरसा मुंडा और नजरूल इस्लाम के चित्र थे.

बनर्जी ने पत्र में कहा है, ‘मैं आपको सूचित करना चाहती हूं कि पश्चिम बंगाल के लोग केंद्र सरकार के इस रवैये से बहुत आहत हैं. यह जानकर हैरानी होती है कि यहां के बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को स्वतंत्रता के 75वें वर्ष पर गणतंत्र दिवस समारोह में इस अवसर को मनाने के लिए कोई जगह नहीं मिली है.’

बनर्जी ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा, ‘मैं आपसे इस निर्णय पर पुनर्विचार करने और स्वतंत्रता के 75वें वर्ष पर गणतंत्र दिवस परेड में पश्चिम बंगाल के स्वतंत्रता सेनानियों की झांकी को शामिल कराने का आग्रह करती हूं.’

इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी, जो झांकियों की चयन प्रक्रिया में शामिल रहे हैं, ने कहा कि पूरी प्रक्रिया एक खास दिशानिर्देशों का पालन करती है और कला, वास्तुकला, डिजाइन, संस्कृति तथा संगीत के क्षेत्र के विशेषज्ञों की एक समिति अंतिम निर्णय लेती है.

अधिकारी ने पश्चिम बंगाल के खिलाफ किसी भी पूर्वाग्रह से इनकार किया है. 2016 में बाउल गायकों पर पश्चिम बंगाल की झांकी को सर्वश्रेष्ठ झांकी के रूप में सम्मानित किया गया था.

तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुखेंदु शेखर रॉय और सौगत रॉय ने भी इस संबंध में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि पार्टी केंद्र द्वारा नेताजी को कमतर आंकने के खिलाफ विरोध करेगी.

टीएमसी से जुड़े सूत्रों ने कहा कि यह चौथी बार है जब पश्चिम बंगाल की झांकी का प्रस्ताव पिछले कुछ वर्षों (2015, 2017 और 2020) में खारिज कर दिया गया है.

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी झांकी को मंजूरी नहीं दिए जाने पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा है और इसे ‘पश्चिम बंगाल के लोगों, इसकी सांस्कृतिक विरासत और महान नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अपमान’ बताया है.

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल परेड में प्रदर्शित 32 झांकियों में 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की थीं, जबकि बाकी रक्षा मंत्रालय, सरकारी विभागों और अर्धसैनिक बलों की थीं.

तब उत्तर प्रदेश को सर्वश्रेष्ठ झांकी का पुरस्कार दिया गया था. झांकी में अयोध्या के राम मंदिर की प्रतिकृति को दर्शाया गया था. त्रिपुरा, असम, महाराष्ट्र ऐसे राज्य हैं जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में समान पुरस्कार जीते हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)