सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 से मौत से संबंधित दावों की तुलना में कम संख्या में मुआवज़ा दिए जाने को लेकर राज्य सरकारों की खिंचाई की है. कोविड-19 के कारण मौत संबंधी दावों की कम संख्या और ख़ारिज किए गए आवेदनों की अधिक संख्या को लेकर बिहार सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि ये आंकड़े वास्तविक नहीं, बल्कि सरकारी हैं.
नई दिल्ली: अधिकांश राज्यों में अपेक्षाकृत कम संख्या में मुआवजा दिए जाने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बीते बुधवार को राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे ‘तकनीकी आधार’ पर कोविड-19 मौतों के लिए अनुग्रह राशि भुगतान के किसी भी दावे को खारिज न करें.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि तकनीकी कारणों से दावों को खारिज नहीं किया जाना चाहिए और राज्य सरकार के अधिकारियों को दावेदारों तक पहुंचना चाहिए एवं उनकी गलतियों को सुधारना चाहिए.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने कहा, ‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि तकनीकी आधार पर किसी भी दावे को खारिज नहीं किया जाएगा. दावेदारों को अपने आवेदनों को सुधारने का मौका दिया जाना चाहिए और इस तरह के दावों को आज से एक हफ्ते के भीतर शिकायत निवारण समिति द्वारा देखा जाना चाहिए.’
कोविड-19 हुई मौतों को लेकर मुआवजे की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने पिछले साल जून में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) से अनुग्रह राशि तय करने पर विचार करने को कहा था.
एनडीएमए ने राज्य आपदा राहत कोष से मृतक के परिजनों को 50,000 रुपये के मुआवजे का भुगतान करने की सिफारिश की. इसे अदालत ने पिछले साल अक्टूबर में स्वीकार किया था.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल चार अक्टूबर को कहा था कि कोविड-19 से मृत किसी व्यक्ति के परिजन को 50,000 रुपये का मुआवजा देने से कोई भी सरकार केवल इस आधार पर मना नहीं करेगी कि मृत्यु प्रमाण-पत्र में कारण में वायरस का उल्लेख नहीं है.
अदालत ने यह भी कहा था कि संबंधित जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण या जिला प्रशासन में कोरोना वायरस के कारण मृत्यु के प्रमाण-पत्र और कारण ‘कोविड-19 की वजह से मृत्यु’ प्रमाणित किए जाने के साथ आवेदन करने की तारीख से 30 दिन के अंदर अनुग्रह राशि दी जानी होती है.
उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 के कारण मौत संबंधी दावों की कम संख्या और खारिज किए गए आवेदनों की अधिक संख्या को लेकर केरल और बिहार जैसे कुछ राज्य सरकारों को फटकार लगाते हुए बुधवार को कहा कि पात्र लोगों को अनुग्रह राशि दी जानी चाहिए.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह कोविड-19 से हुई मौत की बिहार द्वारा बताई संख्या को खारिज करती है. उसने कहा कि ये असली नहीं, बल्कि सरकारी आंकड़े हैं.
पीठ ने बिहार सरकार की ओर से पेश हुए वकील से कहा, ‘हमें इस बात पर भरोसा नहीं है कि बिहार में कोविड के कारण केवल 12,000 लोगों की मौत हुई.’
जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘राज्य ने कहा था कि जिन्हें लाभ नहीं मिलता है, उनके अशिक्षित या गरीब होने की संभावना है. इसलिए उन तक पहुंचने के लिए अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता है और प्रयास कागज पर नहीं होना चाहिए. भुगतान वास्तव में किया जाना है.’
बिहार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, राज्य ने 12,090 मौतें दर्ज की गईं. इसके लिए 11,095 दावे प्राप्त किए गए और 9,821 लोगों को मुआवजे का भुगतान किया गया.
पीठ ने इस बात पर गौर किया कि तेलंगाना में मात्र 3,993 लोगों की मौत के मामले दर्ज किए गए, जबकि उसे दावों के लिए 28,969 आवेदन मिले.
केरल ने कहा कि उसने इस साल 10 जनवरी तक 49,300 मौतें दर्ज कीं, और उसे 27,274 दावे प्राप्त हुए, जिनमें से 23,652 का भुगतान किया गया, जबकि 178 को खारिज कर दिया गया और 891 को वापस कर दिया गया.
पीठ ने केरल सरकार से कहा, ‘केरल में क्या हो रहा है? अन्य राज्यों के विपरीत केरल में कम दावे क्यों किए गए? आपने मौत और उनके संबंध में जानकारी दर्ज की है. राज्य सरकार के अधिकारी मुआवजे के लिए मृतकों के परिवारों और संबंधियों तक क्यों नहीं पहुंच सकते?’
उसने केरल सरकार को निर्देश दिया कि वह अपने अधिकारियों के लिए इस संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करे कि वे उन लोगों के परिजन तक पहुंचे और मुआवजे का भुगतान सुनिश्चित करें, जिनकी मौत कोविड-19 के कारण हुई है और जिनकी मौत दर्ज की गई है.
शीर्ष अदालत अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल और कोविड-19 से अपने परिजनों को खोने वाले कुछ लोगों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. मृतकों के परिजनों का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता सुमीर सोढ़ी कर रहे हैं. याचिकाओं के जरिए महामारी से मरने वाले लोगों के परिजन के लिए अनुग्रह राशि की मांग की गई है.
पीठ ने कहा कि यदि राज्य दावेदारों की पहचान नहीं कर सकते हैं, तो यह राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को इस प्रक्रिया में शामिल करेगा, जैसे कि 2001 में आए भूकंप के दौरान गुजरात उच्च न्यायालय ने किया था.
अदालत ने मुआवजे के वितरण के मामले में आंध्र और बिहार के मुख्य सचिवों से तलब किया
उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 से मृत्यु के मामलों में मृतकों के परिजनों को मुआवजा नहीं दिए जाने को लेकर बुधवार को राज्य सरकारों पर अप्रसन्नता जताई और आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा कि क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू की जाए.
शीर्ष अदालत ने यह स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया कि कोविड-19 से मृत्यु के मामलों में परिजनों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि का वितरण उनके राज्यों में कम क्यों हुआ है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता से पीठ ने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस अदालत के निर्देशों को इतने हल्के में लिया गया है. आपके मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री कानून से ऊपर नहीं हैं. लोग आपकी दया पर नहीं हैं.’
अदालत ने आंध्र प्रदेश को उन सभी लोगों तक पहुंचने के लिए कहा, जिनके दावों को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया था और उन्हें अपने आवेदनों को सही करने का मौका दिया. दावों के लिए 36,205 आवेदनों में से राज्य ने केवल 11,464 का भुगतान किया, था, जबकि आधिकारिक मृत्यु संख्या 14,471 थी.
जस्टिस शाह ने कहा ने कहा, ‘यह बहुत गंभीर मसला है कि आपके द्वारा बनाया गया रिकॉर्ड दोषपूर्ण हैं. आप गड़बड़ियों के आधार पर आवेदनों को खारिज कर रहे हैं. कृपया इसकी दोबारा जांच कराएं. पैसा लोगों तक पहुंचना चाहिए और यही हमारा लक्ष्य है.’
आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि लगभग 31,000 दावों को मंजूरी दे दी गई है और जल्द ही भुगतान किया जाएगा.
अदालत ने दावों की अस्वीकृति पर गुजरात पर भी सवाल उठाया और कारण जानने की मांग की. गुजरात में प्राप्त 89,633 दावों में से राज्य ने 58,840 का भुगतान किया है. आधिकारिक मृत्यु संख्या 10,094 है, जो आठ गुना कम है.
पंजाब की ओर से पेश वकील ने कहा कि 8,786 दावे प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 6,667 का भुगतान किया जा चुका है. आधिकारिक मृत्यु संख्या 16,557 है.
जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘सबसे गरीब लोगों को यह जानकारी भी नहीं हो सकती है कि अनुग्रह राशि के लिए कैसे आवेदन करना है.’ उन्होंने राज्यवार विसंगतियों की ओर इशारा करते हुए इसका कारण जानना चाहा.
पीठ ने उन बच्चों को भी संदर्भित किया जो महामारी के दौरान अनाथ हो गए थे, जैसा कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा बनाए गए बाल स्वराज पोर्टल पर परिलक्षित है.
यह कहते हुए कि लगभग 10,000 बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है, पीठ ने कहा कि इन बच्चों के लिए मुआवजे के लिए आवेदन करना मुश्किल होगा.
अदालत ने राज्यों को उन बच्चों तक पहुंचने का निर्देश दिया ताकि उन्हें मुआवजे का भुगतान किया जा सके. इसने स्पष्ट किया कि भुगतान केवल बच्चों को किया जाना चाहिए, न कि किसी अन्य रिश्तेदार को.
पीठ ने मामले में एक सक्रिय दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि पैसे के लिए उन परिवारों तक पहुंचना महत्वपूर्ण है जिन्हें सख्त जरूरत हो सकती है.
शीर्ष अदालत ने कोविड-19 से मृत्यु के मामलों में अनुग्रह राशि के वितरण के लिए बनाए गए पोर्टल के बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं होने पर भी पिछले साल 13 दिसंबर को अप्रसन्नता व्यक्त की थी.
पीठ ने कहा था कि जब तक व्यापक प्रचार नहीं किया जाता, तब तक लोग उस पोर्टल के बारे में नहीं जान पाएंगे, जिस पर वे ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)