भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत 85वें स्थान पर: रिपोर्ट

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी रिपोर्ट में भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े किए गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के ख़िलाफ़ बोलने वाले नागरिक समाज संगठनों को मानहानि, देशद्रोह, अभद्र भाषा, अदालत की अवमानना ​​संबंधी आरोपों और विदेशी फंडिंग पर नियमों के साथ निशाना बनाया गया है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी रिपोर्ट में भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े किए गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के ख़िलाफ़ बोलने वाले नागरिक समाज संगठनों को मानहानि, देशद्रोह, अभद्र भाषा, अदालत की अवमानना ​​संबंधी आरोपों और विदेशी फंडिंग पर नियमों के साथ निशाना बनाया गया है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक (सीपीआई) 2021 में 180 देशों की सूची में भारत को 85वां स्थान मिला है.

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार पिछली बार के मुकाबले भारत की रैंकिंग में एक स्थान का सुधार हुआ है हालांकि रिपोर्ट में भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े किए गए हैं.

विशेषज्ञों और व्यवसायियों के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार के कथित स्तरों के आधार पर 180 देशों और क्षेत्रों की रैंकिंग की सूची तैयार की जाती है.

यह रैंकिंग 0 से 100 अंकों के पैमाने का उपयोग कर तय की जाती है. शून्य अंक प्राप्त करने वाला देश सर्वाधिक भ्रष्ट होता है जबकि 100 अंक प्राप्त करने वाले देश को भ्रष्टाचार की दृष्टि से बेहद स्वच्छ माना जाता है.

भारत को इस सूची में 40 अंकों के साथ 85वां स्थान मिला है. चीन (45), इंडोनेशिया (38), पाकिस्तान (28) और बांग्लादेश (26) अंकों के साथ इस सूची में विभिन्न स्थानों पर हैं. पाकिस्तान को इस सूची में 140वां स्थान दिया गया है.

डेनमार्क, फिनलैंड, न्यूजीलैंड और नॉर्वे ने इस सूची में शीर्ष स्थान हासिल किया है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत का मामला विशेष रूप से चिंताजनक है. जबकि पिछले एक दशक में देश का सूचकांक स्थिर रहा है. कुछ तंत्र जो भ्रष्टाचार में शासन करने में मदद कर सकते हैं, कमजोर हो रहे हैं. देश की लोकतांत्रिक स्थिति पर चिंताएं हैं, क्योंकि मौलिक स्वतंत्रता और संस्थागत नियंत्रण और संतुलन बिगड़ रहे हैं.’

साल 2021 में भारत 40 अंकों के साथ 86वें स्थान पर था. रिपोर्ट ने पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के लिए जोखिम पर चिंताओं को उजागर किया, जो पुलिस, राजनीतिक उग्रवादियों, आपराधिक गिरोहों और भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा हमलों के शिकार रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सरकार के खिलाफ बोलने वाले नागरिक समाज संगठनों को सुरक्षा, मानहानि, देशद्रोह, अभद्र भाषा, अदालत की अवमानना ​​संबंधी आरोपों और विदेशी फंडिंग पर नियमों के साथ निशाना बनाया गया है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)