15 नवंबर 2021 को श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में हुए ‘एनकाउंटर’ में हुई चार लोगों की मौत के बाद इस पर कई सवाल उठे थे. सेना के श्रीनगर स्थित 15 कॉर्प्स के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से किए ट्वीट में दावा किया गया था कि इस संयुक्त ऑपरेशन को जम्मू कश्मीर पुलिस के ख़ुफ़िया इनपुट के आधार पर अंजाम दिया गया था.
श्रीनगरः हैदरपोरा एनकाउंटर को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा. जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा हाईकोर्ट में दायर हलफनामे से यह तथ्य सामने आया है कि सेना ने उस खुफिया जानकारी को लेकर विरोधाभासी दावा किया था, जिस जानकारी के आधार पर यह कथित एनकाउंटर हुआ.
सुरक्षाबलों के दावे की सत्यता पर मृतकों के परिवार वालों और राजनीतिक दलों ने पहले ही सवाल उठाया है.
सेना के श्रीनगर स्थित 15 कॉर्प्स के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से 15 नवंबर 2021 को किए गए एक ट्वीट में दावा किया गया था कि इस संयुक्त ऑपरेशन को जम्मू कश्मीर पुलिस के खुफिया इनपुट के आधार पर किया गया था.
पुलिस के हलफनामे में सेना द्वारा द्वारा 15 नवंबर को सदर पुलिस थाने में दायर लिखित रिपोर्ट के हवाले से कहा गया कि सेना की दूसरी राष्ट्रीय राइफल्स को इलाके में एक इमारत में आतंकियों के होने की विश्वसनीय जानकारी मिली थी.
हलफनामे में कहा गया, ‘इस मामले के तथ्य यह है कि 15 नवंबर 2021 को सदर पुलिस स्टेशन को एक लिखित रिपोर्ट मिली, जिसमें कहा गया कि आज 5.15 मिनट पर सेना की दूसरी राष्ट्रीय राइफल्स को सदर थानाक्षेत्र में एक इमारत में छिपे आतंकियों की विश्वसनीय सूचना मिली. इन आतंकियों ने सुरक्षाबलों पर हमले की योजना बनाई है.’
हलफनामे में कहा गया, ‘यह जानकारी मिलने पर सेना की दूसरी राष्ट्रीय राइफल्स/घाटी क्यूआरटी/पीसी श्रीनगर ने इलाके को चारों ओर से घेर लिया और आतंकियों को पकड़ने के लिए तलाशी अभियान शुरू किया. तलाशी के दौरान इमारत में छिपे आतंकियों ने तलाशी दल पर अंधाधुंध गोलीबारी करनी शुरू कर दी, जिसका बखूबी जवाब दिया गया और इस दौरान दो आतंकियों को मार गिराया गया और इन आतंकियों के दो सहयोगी भी मारे गए.’
द वायर ने इस पर टिप्पणी के लिए श्रीनगर में सेना अधिकारियों से इस संपर्क किया. इस मामले में संबंधित अधिकारी के जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
मध्य कश्मीर के पुलिस उपमहानिरीक्षक सुजीत कुमार से संपर्क करने पर उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन का खुफिया जानकारी से कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने कहा, ‘इनपुट का मेरी जांच से भी कोई लेना-देना नहीं है. इससे मुश्किल ही कोई फर्क पड़ता है कि किसके इनपुट पर ऑपरेशन को अंजाम दिया गया.’
श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में पिछले साल नवंबर में हुई मुठभेड़ में चार लोगों की मौत हो गई थी. इन सभी को हंदवाड़ा के वाडर पाईन इलाके में दफनाया गया था. इसके बाद दो मृतकों अल्ताफ अहमद भट (जिस इमारत में मुठभेड़ हुई, उसके मालिक) और डॉ. मुदासिर गुल (इमारत से कॉल सेंटर चलाने वाले व्यक्ति) के शवों को उनके परिवारों को सौंपा गया.
इन मौतों को लेकर हुए विरोध के बाद जम्मू कश्मीर प्रशासन ने मुठभेड़ की न्यायिक जांच के आदेश दिए.
अपने हलफनामे में पुलिस ने यह भी कहा कि विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा की गई जांच से सिद्ध होता है कि पाकिस्तान के रहने वाले बिलाल भाई (हैदर और साकिब नामों से भी जाने जाते हैं) और सीरी पोरा तहसील के रहने वाले आमिर लतीफ माग्रे आतंकी थे.
पुलिस ने यह भी कहा कि शुरुआती जांच से पता चलता है कि मुदासिर गुल की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता लेकिन इस पहलू की भी जांच की जा रही है. यह भी दावा किया गया कि मुदासिर को विदेशी आतंकियों ने मार गिराया.
पुलिस के हलफनामें में कहा गया कि चौथे शख्स इमारत के मालिक मुहम्मद अल्ताफ भट की जवाबी गोलीबारी में मौत हुई.
हलफनामे में पुलिस ने कहा कि आमिर माग्रे का शव सौंपने से एक गलत संदेश जाएगा और कानून एवं व्यवस्था और सुरक्षा संबंधी चिंताएं पैदा होंगी.
हलफनामे में कहा गया, ‘इस मामले में शव सौंपे जाने की मांग किसी आम नागरिकों की मांग नहीं है जो सुरक्षाबलों की कार्रवाई में मारे गए हैं बल्कि आतंकी हैं, जिन्हें मुठभेड़ के दौरान ढेर किया गया है. अगर किसी तर्क से आतंकी के शव की वापसी पर विचार किया जाता है तो इससे समाज में गलत संदेश जाएगा और इसके कानून एवं व्यवस्था के समक्ष चुनौतियां खड़ी होंगी.’
हलफनामे में कहा गया कि इस पड़ाव पर शव सौंपने से लोगों के अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे और कानून व्यवस्था की समस्याएं खड़ी होंगी.
हलफनामे में कहा गया, ‘सुप्रीम कोर्ट ने अपने विभिन्न फैसलों में कहा कि मौलिक अधिकारों को अन्य अधिकारों के साथ संतुलित करने की जरूरत है और इस मामले में यह राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता का विषय है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.’
पुलिस ने कहा कि आतंकियों को उनके घरों से दूर दफनाने से लाभ हुआ है क्योंकि खुफिया जानकारी के मुताबिक कानून व्यवस्था की घटनाएं और युवाओं के आतंक से जुड़ने की दर घटी है.
बता दें कि आमिर माग्रे के परिवार ने जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट का रुख कर माग्रे के अवशेषों की मांग की थी ताकि उन्हें उनके पैतृक स्थान पर दफना सके, जिसके बाद पुलिस ने यह हलफनामा दायर कर इसका विरोध किया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)