भारतीय बैंकों को उनके फंसे हुए क़र्ज़ से उबारने के लिए बैड बैंक की स्थापना की जा रही है. इसके तहत फंसे क़र्ज़ को संबंधित बैंक की बैलेंस शीट से हटा दिया जाएगा और वो क़र्ज़ बैड बैंक के पास चला जाएगा. फंसे क़र्ज़ के समाधान के तहत पहले चरण में 50,335 करोड़ रुपये के कम से कम 15 खाते 31 मार्च तक बैड बैंक में हस्तांतरित किए जाएंगे.
नई दिल्ली: केंद्रीय बजट 2022-23 पेश किए जाने में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पिछले साल एक फरवरी को पेश किए गए बजट के दौरान ‘बैड बैंक’ स्थापित करने के प्रस्ताव को हरी झंडी मिल गई है.
भारतीय स्टेट बैंक के प्रमुख दिनेश खारा ने बीते 28 जनवरी को बताया कि प्रस्तावित बैड बैंक को भारतीय रिजर्व बैंक समेत सभी आवश्यक अनुमतियां अब मिल गई हैं. उन्होंने बताया कि यह बैंक 50,335 करोड़ रुपये के 15 मामलों के साथ 31 मार्च से काम शुरू कर देगा.
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक, खारा ने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी राष्ट्रीय संपत्ति पुर्नगठन कंपनी लिमिटेड (एनएआरसीएल) में बहुमत में होगी, जबकि निजी बैंक प्रमुख रूप से भारतीय ऋण समाधान कंपनी लिमिटेड (आईडीआरसीएल) बहुमत में शामिल होंगे.
बता दें कि पिछले साल एक फरवरी को सीतारमण ने अपने बजटीय भाषण में तनावपूर्ण संपत्तियों (Stressed Assets) के समाधान के लिए एक नए ढांचे का प्रस्ताव रखा था, जिसमें सार्वजनिक बैंकों के बहीखातों को तनावग्रस्त संपत्तियों से मुक्त करने के उपायों की रूपरेखा पेश की थी.
स्ट्रेस्ड एसेट्स, नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट्स (गैर-निष्पादित संपत्ति- एनपीए), राइट ऑफ (बट्टे खाते) ऐसेट्स और रिस्ट्रक्चर्ड लोन की तरह ही होते हैं. यानी ऐसे ऋण जिसकी वसूली नहीं हो पाती है.
खारा ने बताया कि इसको लेकर कुछ चिंताएं भी उठाई गई थीं, लेकिन आखिरकार अब एनएआरसीएल और आईडीआरसीएल दोनों अपेक्षित मंजूरी मिल गई है. उन्होंने कहा कि एनएआरसीएल बैंकों से पहचाने गए गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) खातों का अधिग्रहण करेगा और आईडीआरसीएल ऋण समाधान प्रक्रिया को संभालेगा.
खारा ने कहा कि यह एक ऐसी संरचना है जिसकी परिकल्पना पहली बार की गई है और जितना भी समय लिया गया है, वह कुछ ऐसे मुद्दों का समाधान करने के लिए जरूरी था, जो संभवतः भविष्य में सामने आ सकते थे.
उन्होंने बताया कि उन सभी का सही ढंग से समाधान हो गया है. इसलिए अब दोनों संस्थाओं का कामकाज सुचारू रूप से होना चाहिए और वे उस उद्देश्य को प्राप्त करने की स्थिति में हों जिसके लिए उन्हें अस्तित्व में लाया गया है.
उन्होंने समान व्यवहार की दो संस्थाओं एनएआरसीएल और आईडीआरसीएल के काम समझाते हुए बताया कि समाधान के अंतिम अनुमोदन का अधिकार एनएआरसीएल के पास होगा.
रिपोर्ट के अनुसार, परिसंपत्ति समाधान चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा. कुल 82,845 करोड़ रुपये के कुल 38 खातों की पहचान एनएआरसीएल को हस्तांतरित करने के लिए हुई है. पहले चरण में 50,335 करोड़ रुपये के कम से कम 15 खाते 31 मार्च तक बैड बैंक में हस्तांतरित किए जाएंगे.
शुरू में अनुमानित 2 लाख करोड़ रुपये की बैड लोन को बैड बैंक में स्थानांतरित करने की योजना थी. हालांकि, खारा ने कहा कि इनमें से कुछ खातों का समाधान पहले ही किया जा चुका है.
खारा ने उम्मीद जताई कि बैड बैंक की स्थापना के बाद परिसंपत्तियों का समाधान तेजी से होगा.
परिचालन ढांचा समझाते हुए खारा ने बताया कि एनएआरसीएल इन बैंकों के बैड लोन को 15:85 के अनुपात के तहत खरीदेगा, जहां वह 15 प्रतिशत भुगतान नकद करेगा और 85 प्रतिशत के लिए सुरक्षा रसीद (एसआर) जारी करेगा. सुरक्षा रसीद पर गांरटी सरकार देगी.
क्या है बैड बैंक
‘बैड बैंक’ का गठन बैंकों के बैड लोन या फंसे हुए कर्ज को अलग करने के लिए किया जा रहा है. ऐसा करने पर बैड लोन को संबंधित बैंक की बैलेंस शीट से हटा दिया जाता है और बैड बैंक उस फंसे हुए कर्ज को अपने पास ले लेता है.
दूसरे शब्दों में कहें तो बैंक सस्ते में बैंकों के बैड लोन खरीदेगा और उसे बेहतर मूल्य में बेचेगा. उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी बैंक के पास 100 रुपये का बैड लोन पड़ा हुआ है, तो बैड बैंक उसे 70 रुपये में खरीदेगा और इसी चीज को किसी अन्य कंपनी को 75 रुपये में बेच देगा.
पिछले कई सालों से भारत की बैंकिंग व्यवस्था पर बैड लोन के काले बादल मंडरा रहे हैं, जिसके चलते अर्थव्यवस्था में सुस्ती छायी रहती है.
आर्थिक टिप्पणीकार विवेक कौल के अनुसार, अप्रैल 2013 से मार्च 2021 के बीच आठ साल की अवधि में 10.83 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज को बट्टे खाते में डाला गया है, यानी राइट ऑफ किया गया है.
बैड बैंक की उत्पत्ति 1980 के दशक में हुई थी, जब अमेरिका और स्वीडन ने शुरुआत में इसे अपनाया था. बाद में अन्य देशों की सरकारों ने भी इसे अपने यहां लागू किया, जिसके परिणाम अलग-अलग रहे हैं.